TDS और TCS में अंतर क्या है? हर महीने कटता है पैसा, लेकिन ज्यादातर लोग नहीं जानते सही मतलब

TDS vs TCS Explained: बता दें कि TDS और TCS दोनों ही ऐसे टैक्स हैं जिन्हें सरकार इनकम या खरीदारी के समय ही वसूल कर लेती है. TDS में टैक्स काटने वाला पेमेंट कर रहा होता है, जबकि TCS में टैक्स लेने वाला कोई चीज या सर्विस बेच रहा होता है.

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Difference between TDS and TCS: ज्यादातर लोग TDS और TCS जैसे शब्दों का मतलब नहीं जानते.
नई दिल्ली:

हम में से बहुत से लोग टैक्स भरते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग TDS और TCS जैसे शब्दों का मतलब नहीं जानते. दोनों ही ऐसे टैक्स हैं जो आपकी इनकम या किसी बड़ी खरीदारी के वक्त सीधे वहीं से काट लिए जाते हैं. इन दोनों टैक्स के लागू होने की जगह और का तरीका अलग-अलग होता है. टैक्स सिस्टम (Tax System) को बेहतर तरीके से समझने के लिए TDS  और TCS के बीच अंतर (Difference Between TDS and TCS) को समझना जरूरी है. यहां हम इन दोनों के बीच फर्क के बारे में डिटेल में बताने जा रहे हैं...

क्या होता है TDS?

TDS( Tax Deducted at Source) यानी आपकी सैलरी या किसी भी तरह की इनकम पर पहले ही टैक्स काट लिया जाए. यह टैक्स उस समय लगाया जाता है जब पेमेंट हो रही हो. TDS काटने की जिम्मेदारी पेमेंट करने वाले की होती है  यानी कंपनी, संस्थान या व्यक्ति जो आपको पेमेंट कर रहा है. इस टैक्स को इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 192 के तहत लागू किया जाता है और इसे हर महीने की 7 तारीख तक जमा करना होता है.

टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स (TCS) क्या है ?

TCS (Tax Collected at Source) यानी जब आप कोई बड़ी चीज खरीदते हैं या विदेश यात्रा पर जा रहे होते हैं, तो उस पर टैक्स लिया जाता है. TCS वो व्यक्ति वसूलता है जो सामान या सर्विस बेच रहा होता है . जैसे शोरूम, टूर ऑपरेटर या डीलर. यह टैक्स भी पेमेंट के समय ही लिया जाता है और सेक्शन 206C के तहत आता है. इसे हर महीने के आखिरी दिन के सात दिन के अंदर सरकार को जमा करना होता है.

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TDS और TCS में अंतर (Difference between TDS and TCS)

TDS और TCS दोनों ही ऐसे टैक्स हैं जिन्हें सरकार इनकम या खरीदारी के समय ही वसूल कर लेती है, लेकिन इन दोनों की प्रक्रिया और लागू होने की स्थिति अलग होती है.

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TDS यानी Tax Deducted at Source तब लगाया जाता है जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी को पेमेंट कर रही होती है  जैसे सैलरी, किराया, ब्याज या कोई प्रोफेशनल फीस. इसमें टैक्स उस व्यक्ति द्वारा काटा जाता है जो पेमेंट कर रहा है, और यह टैक्स सीधे सरकार के पास जमा किया जाता है. TDS आमतौर पर सैलरी, किराए, बैंक के ब्याज या फ्रीलांस फीस जैसी इनकम पर लागू होता है. इसे इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 192 के तहत लागू किया जाता है और हर महीने की 7 तारीख तक जमा करना होता है.

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TCS यानी Tax Collected at Source उस समय लिया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी सामान या सर्विस को बेच रहा होता है जैसे कार शोरूम, टूर ऑपरेटर या व्यापारी. इसमें विक्रेता ग्राहक से तय सीमा से ऊपर के अमाउंट पर टैक्स लेता है और फिर उसे सरकार को जमा करता है. TCS की प्रक्रिया इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 206C के तहत आती है और इसे हर महीने के आखिरी दिन के बाद 7 दिन के भीतर जमा करना होता है.

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इस तरह, TDS में टैक्स काटने वाला पेमेंट कर रहा होता है, जबकि TCS में टैक्स लेने वाला कोई चीज या सर्विस बेच रहा होता है. एक इनकम पर और दूसरा खरीदारी पर लागू होता है.

क्या आप TDS का रिफंड क्लेम कर सकते हैं?

अगर आपकी कुल आमदनी पर जितना टैक्स बनता है, उससे ज्यादा TDS काट लिया गया है, तो आप रिफंड क्लेम कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपकी सैलरी टैक्स फ्री लिमिट में आती है लेकिन आपके इंप्लॉयर ने TDS काट लिया, तो आप ITR भरकर अपना पैसा वापस ले सकते हैं. इतना ही नहीं, अगर रिफंड में देर होती है तो इनकम टैक्स विभाग आपको उस रकम पर 6% सालाना ब्याज भी देता है.

अब जब आप TDS और TCS का फर्क जानते हैं, तो अगली बार कोई भी ट्रांजैक्शन करते वक्त इन नियमों को ध्यान में रखें.

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