- बुधवार को भारतीय रुपये ने डॉलर के मुकाबले पहली बार 90.13 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छुआ, जो ऑल टाइम लो है
- रुपये में गिरावट के पीछे की वजह कमजोर ट्रेड फ्लो और भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील में देरी बताई गई
- रुपया-डॉलर एक्सचेंज रेट, विदेशी निवेश, आयात-निर्यात संतुलन और अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों से भी प्रभावित होता है
भारतीय रुपया आज बुधवार को चर्चा में बना हुआ है और इसकी वजह है, रुपये का रिकॉर्ड निचला स्तर. बुधवार को तेज गिरावट के बाद रुपया पहली बार डॉलर के मुकाबले 90 के पार अपने निचले स्तर पर आ गई. डॉलर के मुकाबले रुपया 90.13 स्तर पर एक नए रिकॉर्ड लो पर पहुंच गया. इससे पहले कारोबारी दिन रुपये ने डॉलर के मुकाबले 89.94 स्तर को छू कर अपना ऑल-टाइम लो बनाया था, जो बुधवार को ब्रेक हो गया.
डॉलर के मुकाबले रुपया रोज ऊपर‑नीचे होता है, लेकिन क्या इसका असर आम आदमी की जेब पर भी पड़ता है? आइए समझने की कोशिश करते हैं.
सबसे पहले रुपये में गिरावट की हालिया वजह जान लीजिए.
भारतीय करेंसी में यह गिरावट कमजोर ट्रेड और पोर्टफोलियो फ्लो के बीच देखी जा रही है. वहीं, भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील के लेकर बढ़ती अनिश्चितता भी इसका एक प्रमुख कारण है. इन कारकों ने करेंसी को कारोबारी सत्र में लगातार दबाव में बनाए रखा.
इंटरनेशनल पॉलिसी पर नजर रखने वाले प्रभात सिन्हा ने NDTV से बातचीत में बताया कि ट्रेडर्स की निगाहें रुपये में स्थिरता के संकेतों और भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर स्पष्टता पर बनी हुई हैं, जिससे मार्केट का मूड तनावपूर्ण बना हुआ है.
सिन्हा ने बताया, 'भारत-अमेरिका व्यापार समझौता होने पर रुपये में गिरावट रुक जाएगी और स्थिति उलट भी सकती है, जो कि इसी महीने होने की संभावना है. हालांकि ये, दोनों देशों के बीच डील होने के बाद टैरिफ से जुड़ी डिटेल्स पर भी बहुत हद निर्भर करेगा.'
अब जानिए रुपया-डॉलर का रेट बदलता कैसे है?
रुपया और डॉलर का रेट तय होने का भी एक बाजार है, जिसे फॉरेक्स मार्केट कहते हैं. यहां बैंक, बड़ी कंपनियां और निवेशक डॉलर खरीदते‑बेचते हैं. जब डॉलर की मांग ज्यादा होती है और बाजार में डॉलर कम मिलते हैं, तो डॉलर महंगा और रुपया सस्ता हो जाता है.
प्रभात सिन्हा
इसे ऐसे समझिए जैसे निर्यात, विदेशी निवेश, एनआरआई की रेमिटेंस वगैरह के जरिये अगर भारत में ज्यादा डॉलर आते हैं तो रुपया मजबूत होता है. इसकी उलट स्थिति यानी ज्यादा आयात, विदेशी निवेशकों का भारतीय कंपनियों से निवेश वापस खींचने जैसी स्थितियों में रुपया कमजोर होता है.
गिरते रुपये का आम आदमी पर असर
प्रभात सिन्हा ने बताया, 'भारत पेट्रोल‑डीजल और रसोई के तेल से लेकर मोबाइल, टीवी, मशीनरी जैसे सामानों और बहुत कुछ का आयात आयात करता है. रुपया कमजोर होते ही इन्हें खरीदने के लिए ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं, इसलिए पेट्रोल‑डीजल, गैस, हवाई टिकट, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंपोर्टेड दवाएं और गाड़ियां महंगी होने लगती हैं.'
सिन्हा ने बताया कि इसके अलावा विदेश में पढ़ाई, इलाज या घूमने के लिए विदेश जाने वालों पर असर और साफ दिखता है. ट्यूशन फीस, हॉस्टल, टिकट सब डॉलर में तय होते हैं, इसलिए रुपया गिरने पर सेम कोर्स की फीस, भारतीय परिवारों को लाखों रुपये ज्यादा लगती है. विदेश से ऑनलाइन शॉपिंग, ऐप सब्सक्रिप्शन, जैसी सेवाएं भी धीरे‑धीरे महंगी लगने लगती हैं.
केवल नुकसान ही या कुछ को फायदे भी होते हैं?
सिन्हा बताते हैं कि रुपया गिरने से सभी को नुकसान ही नहीं होता, कुछ निर्यातकों को फायदे भी होते हैं. जो कंपनी या एक्सपोर्टर विदेश में सामान बेचते हैं, उन्हें अगर डॉलर में पेमेंट मिलता है, तो वे रुपये गिरने की स्थिति में भी फायदे में होते हैं. विदेशों से पेमेंट में मिले डॉलर को जब वे रुपये में बदलते हैं तो उन्हें पहले से ज्यादा रुपये मिलते हैं. टेक्सटाइल, आईटी सर्विस, फूड प्रोसेसिंग जैसे सेक्टर को इसमें थोड़ी बढ़त मिलती है.
RBI-MPC मीटिंग के फैसलों पर है नजर
प्रभात सिन्हा ने कहा कि RBI के म्यूट इंटरवेंशन यानी डिफेंसिव(रक्षात्मक) कदम न उठाए जाने से भी रुपये में गिरावट बढ़ी है. हालांकि, केंद्रीय बैंक रुपये की मजबूती के लिए कोई बड़ा कदम उठाएगा या नहीं, इस बारे में शुक्रवार को पता चल पाएगा, जब गवर्नर संजय मल्होत्रा मॉनिटरी पॉलिसी मीटिंग में लिए गए फैसलों के बारे में बताएंगे.
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