अब सिर्फ रजिस्ट्री से नहीं मिलेगा घर का मालिकाना हक! सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिए नियम, जानें कौन-कौन से पेपर जरूरी

Property Registry vs Ownership: अब प्रॉपर्टी खरीदने से पहले हर खरीदार को पहले से ज्यादा सतर्क रहना होगा.सिर्फ प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री हो जाना, यह साबित नहीं करता कि आप उस जमीन या फ्लैट के मालिक हैं.

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Property Registry सिर्फ इस बात का रिकॉर्ड है कि किसी ट्रांजैक्शन को ऑफिशियल रूप से दर्ज किया गया है.
नई दिल्ली:

अगर आप नए घर की रजिस्ट्री कराने वाले हैं तो ये खबर आपके लिए है.सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने प्रॉपर्टी खरीदने वालों और रियल एस्टेट सेक्टर को चौंका दिया. इसी साल अप्रैल के महीने में आए इस फैसले के मुताबिक- सिर्फ प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री हो जाना, यह साबित नहीं करता कि आप उस जमीन या फ्लैट के मालिक हैं. इसका असर सिर्फ लीगल मामलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अब प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने की प्रक्रिया और ज्यादा सख्त, लंबी और खर्चीली हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

दरअसल, ये फैसला महनूर फातिमा इमरान बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना केस में आया. केस कुछ इस तरह था कि साल 1982 में हैदराबाद की एक को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी ने एक जमीन अनरजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट के जरिए खरीदी थी. बाद में 2006 में इसे असिस्टेंट रजिस्ट्रार ने वैलिड तो कर दिया, लेकिन इसकी रजिस्ट्री कभी नहीं करवाई गई. इसके बाद उस जमीन को आगे कई लोगों को बेच दिया गया, जिनमें महनूर फातिमा और कुछ अन्य लोग भी थे. उन्होंने इस जमीन पर कब्जे का दावा करते हुए कोर्ट का रुख किया.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर किसी जमीन की पहली खरीद अनरजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट के बेस पर हुई है, तो उसके बाद की कोई भी रजिस्टर्ड डील या कब्जा, लीगल ओनरशिप नहीं माना जाएगा. यानी अगर पहली ट्रांजैक्शन लीगल नहीं थी, तो उस पर बनी बाकी सारी डील्स भी सवालों के घेरे में आ जाएंगी.

रजिस्ट्री का मतलब ओनरशिप क्यों नहीं है?

रजिस्ट्री सिर्फ इस बात का रिकॉर्ड है कि किसी ट्रांजैक्शन को ऑफिशियल रूप से दर्ज किया गया है. लेकिन अगर वो ट्रांजैक्शन ही सही तरीके से नहीं हुआ था, जैसे पहले मालिक के पास ही क्लियर ओनरशिप नहीं थी, तो आपके पास रजिस्ट्री होने के बावजूद आप लीगल मालिक नहीं माने जाएंगे. ओनरशिप साबित करने के लिए आपको दूसरी जरूरी डाक्यूमेंट्स और सबूत भी देने होंगे.

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ओनरशिप साबित करने के लिए जरूरी डॉक्युमेंट्स 

किसी प्रॉपर्टी का मालिकाना हक के लिए, सेल डीड और टाइटल डीड सबसे जरूरी डॉक्युमेंट्स होते हैं. इनके अलावा एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट, म्युटेशन सर्टिफिकेट, प्रॉपर्टी टैक्स की रसीदें, पजेशन लेटर, एलॉटमेंट लेटर, सक्सेशन सर्टिफिकेट या विल जैसी चीजें भी ओनरशिप को सपोर्ट करती हैं. अगर प्रॉपर्टी किसी गिफ्ट या विल के जरिए मिली है, तो उससे जुड़े डॉक्युमेंट्स भी जरूरी होते हैं.

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रजिस्ट्री का मतलब क्या है?

रजिस्ट्री से ये पक्का होता है कि प्रॉपर्टी की ट्रांजैक्शन ऑफिशियल रिकॉर्ड में दर्ज हो गई है. इससे बाद में अगर कोई लीगल विवाद होता है, तो रजिस्ट्री मदद करती है. यह सरकार को प्रॉपर्टी टैक्स कलेक्ट करने में भी काम आती है और फेक क्लेम्स को रोकती है. साथ ही, अगर डॉक्युमेंट खो जाए या खराब हो जाए, तो उसकी कॉपी रजिस्ट्री ऑफिस से मिल सकती है.

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 प्रॉपर्टी खरीदारों और रियल एस्टेट पर क्या असर पड़ेगा?

अब प्रॉपर्टी खरीदने से पहले हर खरीदार को पहले से ज्यादा सतर्क रहना होगा. सिर्फ ये देखना काफी नहीं होगा कि रजिस्ट्री हो गई है. ये भी देखना पड़ेगा कि क्या उस प्रॉपर्टी का टाइटल क्लियर है, क्या वो बिना किसी लीगल रोक के बेची जा सकती है, और क्या उस पर कोई लोन या क्लेम तो नहीं है. रियल एस्टेट एजेंट्स और डिवेलपर्स के लिए भी काम आसान नहीं रहेगा. उन्हें भी पूरी चेन ऑफ ओनरशिप चेक करनी पड़ेगी और ज्यादा लीगल जांच-पड़ताल करनी होगी. इससे डॉक्युमेंटेशन लंबा हो सकता है, खर्च भी बढ़ सकता है और प्रॉपर्टी डील पूरी होने में ज्यादा वक्त लग सकता है.

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कुल मिलाकर अब प्रॉपर्टी के मामले में सिर्फ प्राइस और लोकेशन देखकर फैसला नहीं चलेगा. खरीदारों को सेल डीड से लेकर टाइटल क्लेरिटी, टैक्स रसीद और पुराने ओनर के डॉक्युमेंट्स तक हर पहलू देखना होगा. कोई भी डील करने से पहले एक्सपर्ट से लीगल चेक करवाना बेहतर होगा.

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