घर या फ्लैट खरीदने से पहले 3/20/30/40 वाला फॉर्मूला जरूर समझें, नहीं होगी ईएमआई देने में दिक्कत

इस फॉर्मूला को समझने के साथ ही अपने जीवन में उतारने से कम से कम एक आम नागरिक कुछ मामलों में अपने आर्थिक कष्टों को कम कर सकते हैं. 

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घर खरीदने का फॉर्मूला...
नई दिल्ली:

घर वो भी अपना घर, खरीदना हर आदमी का सपना होता है. मेट्रो में रहने वाले लोग इसे फ्लैट भी समझ सकते हैं. हर युवा जैसे ही नौकरी से कमाई करना शुरू करता है तो उसकी कई इच्छाओं में से एक घर या कहें फ्लैट खरीदना हो जाती है. घर खरीदने के लिए पैसे को इकट्ठा करना उसका एक ध्येय होता है और फिर वह घरों के दाम का पता लगाना भी आरंभ कर देता है. घर और फ्लैट कई बार तो इतने महंगे लगते हैं कि सैलरी कम पड़ जाती है. कई लोग अपने सपनों के महल को खरीदने में  कामयाब हो जाते हैं तो कुछ लोग देर से अपना सपना पूरा कर लेते हैं. कुछ लोग किन्हीं कारणों से ऐसा करने में नाकाम हो जाते हैं.

बात जिसका ध्यान रखना चाहिए वह है घर खरीदने में ही सबकुछ न लुटा दिया जाए. घर खरीदने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. ऐसा क्या करना चाहिए कि घर भी खरीद लिया जाए और परिवार की आम जरूरतों में कोई कमी भी न पड़े. फाइनेंशियल प्लानिंग का अभाव कई बार दिक्कतों में डाल देता है. वित्तीय ज्ञान की कमी से कई बार यह समझ नहीं आता कि क्या किया जाए.  क्या कोई फॉर्मूला है जो घर खरीदने के समय ध्यान रखना चाहिए.

जी हां, है. जिन लोगों को वित्तीय ज्ञान है वे इस फॉर्मूला का प्रयोग करते हैं वरना मकान के दलाल से लेकर बैंकों में लोन देने की हड़बड़ी में लगे लोग आपको अपने जाल में फंसा ही लेते हैं. फिर ईएमआई के साथ-साथ घर के खर्चों को चलाना एक मुसीबत सी लगने लगती है. यानी सैलरी कम लगने लगती है. कुछ लोग इसे एक अवसर के रूप में समझाते हैं. उनका तर्क होता है कि जब सैलरी कम लगेगी तब आदमी ज्यादा कमाई के लिए प्रयास करेगा. कुछ लोगों पर यह फॉर्मूला भी सटीक बैठ जाता है लेकिन ज्यादातर लोगों पर यह वास्तविक जीवन में सटीक नहीं होता. 

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आखिर क्या किया जाए और कैसे किया जाए कि घर भी ले लें और आम जरूरत के खर्चों में किसी प्रकार की दिक्कत भी न आए. इसी के लिए वित्तीय प्लानर या वित्त मामलों के जानकारों ने घर खरीदने के लिए लोगों को एक फॉर्मूला भी समझाया है. इस फॉर्मूला को समझने के साथ ही अपने जीवन में उतारने से कम से कम एक आम नागरिक कुछ मामलों में अपने कष्टों को कम कर सकते हैं. 

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यह तो तय है कि सभी फॉर्मूलों का आधार आपकी कमाई होती है. घर या फ्लैट छोटा होगा या बड़ा, यह किसी भी आदमी की तत्कालीन कमाई पर निर्भर करता है. 

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यह फॉर्मूला  3/20/30/40 है. इस फॉर्मूला के तहत 3 यानी घर की कुल लागत. यह किसी भी व्यक्ति की वार्षिक आय का तीन गुणा से अधिक नहीं होनी चाहिए.  यानी 8 लाख रुपये सालाना कमाने वाले व्यक्ति के लिए घर की कीमत 24 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

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दूसरा अंक 20 है . अपने लोन को 20 वर्ष या उससे कम समय तक का ही रखें. लोन जितना कम समय के लिए रखा जाए उतना अच्छा होता है. कोशिश यह भी होनी चाहिए कि लोन कम राशि का हो. जितना कम हो उतना अच्छा होता है. कम अवधि के लिए लोन होगा तो कम ब्याज देना होगा. हालांकि ईएमआई कुछ ज्यादा होगी. कम राशि का लोन होगा तो कम ब्याज देना होगा.

इसके बाद अगला अंक 30 है. यह आपको तय करना है कि आप जो भी महीने में ईएमआई दें वे आपकी कुल मासिक कमाई का 30 फीसदी से ज्यादा न हो. यह आपको ध्यान रखना चाहिए उसमें होम लोन, कार लोन आदि सभी लोन की ईएमआई आ जाए. इसका ध्यान आपको रखना होगा. आप ऐसे समझ सकते हैं कि यदि किसी व्यक्ति की कुल आय 8 लाख रुपये सालाना है तो वह सालाना 240000 की वार्षिक किस्त वहन कर सकता है. यानी वह एक महीने में ज्यादा से ज्यादा 20000 हजार की किस्त दे सकता है. 

फॉर्मूला में अंतिम नंबर 40 है . घर खरीदते समय हमें डाउनपेमेंट करना होता है. यह डाउनपेमेंट कितना हो चाहिए. यह संख्या तय करती है. इस फॉर्मूला के हिसाब से आपको घर खरीदते समय अपने घर की कुल कीमत का 40 फीसदी के करीब डाउन पेमेंट करना चाहिए. यहां यह भी साफ है कि आपके पास कम से कम घर खरीदने से पहले इतनी राशि हो कि आप इतना डाउन पेमेंट कर सकें. ऐसा करने के बाद आप अपनी अन्य जरूरतों  को समय पर बिना किसी समस्या के पूरा कर पाएंगे.

यहां गौर करने की बात  यह है कि बैंक हों या लोन देने वाली कोई और एजेंसी हो वे सभी आपको यह बताएंगे कि आपको केवल 10 फीसदी का अमाउंट ही डाउन पेमेंट करना है. लेकिन यह आपको तय करना है कि आप किस प्रकार अपनी वित्तीय योजना का क्रियान्वयन करते हैं. 

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