- निवेश से पहले म्यूचुअल फंड का चयन करते समय निवेश के उद्देश्य और समय अवधि का स्पष्ट निर्धारण आवश्यक होता है
- निवेशक को म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले प्लेटफॉर्म की फीस और नियमों को पूरी तरह समझ लेना चाहिए
- टैक्स बेनिफिट्स को ध्यान में रखकर निवेश योजना बनाना चाहिए ताकि लंबी अवधि में रिटर्न सुरक्षित रह सके
निवेश के लिए म्यूचुअल फंड और इक्विटी मार्केट में निवेशकों का भरोसा बढ़ रहा है. म्यूचुअल फंड की बात करें तो शेयर मार्केट के मुकाबले यहां रिस्क थोड़ा कम होता है, इसलिए नए निवेशक अपने निवेश की यात्रा इसके जरिए करते हैं. म्यूचुअल फंड में कई प्लान ऐसे हैं, जहां से आप अच्छा रिटर्न बना सकते हैं, पर कुछ गलतियों की वजह से इस रिटर्न से हाथ धोना पड़ता है. इस खबर में आपको बताते हैं कि इन गलतियों को कम करके आप रिटर्न को हाई कर सकते हैं.
फंड का सलेक्शन गलत करना
कई निवेशक अपने फंड का सलेक्शन करने में ही गलती कर देते हैं. दरअसल हमेशा म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले आपको ये पता होना चाहिए कि किस काम के लिए निवेश कर रहे हैं. अगर टारगेट सेट नहीं होता तो निवेश के पीरियड के बारे में पता नहीं कर सकते. जैसे अगर बच्चों की शादी के लिए आपको सेविंग करनी है तो आप लॉन्ग टर्म में किसी मिड कैप या लार्ज कैप फंड का चुनाव कर सकते हैं.
फीस को ठीक से ना समझना
कई निवेशक जिस प्लेटफॉर्म से म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं, उसकी फीस को समझने में गलती कर जाते हैं, जो आगे जाकर उनके लिए एक घाटे का सौदा बन सकती है. ऐसे में निवेश से पहले अपने प्लेटफॉर्म की डिटेल्स और नियम जरूर जान लें.
टैक्स को अनदेखा करना
ऐसा भी देखा गया है कि नए निवेशक रिटर्न कमाने के चक्कर में टैक्स को अनदेखा कर देते हैं. ऐसे में लॉन्ग टर्म के समय रिटर्न को लेकर उनका मामला फंस सकता है. इसलिए प्लान कौन सा ले रहे हैं, उसमें टैक्स बेनिफिट को लेकर जरूर अपनी सारी रिसर्च कर लें.
पोर्टफोलियो में अलग-अलग सेक्टर का ना होना
कई बार तो ये देखा गया है कि निवेशक अपने पोर्टफोलियो में एक ही सेक्टर के फंड का सलेक्शन कर लेते हैं, जिससे जब मार्केट गिरता है तो विविधता नहीं होनी की वजह से उन्हें लॉस का ज्यादा सामना करना पड़ता है.