20 साल बाद 1 करोड़ की वैल्यू कितनी रह जाएगी? रिटायरमेंट प्लानिंग से पहले समझें ये जरूरी फॉर्मूला

purchasing power parity calculator: अगर आप आज के हिसाब से सोच रहे हैं कि 20 साल बाद 1 करोड़ रुपए आपके लिए काफी होंगे तो पहले जान लीजिए कि इतने सालों बाद 1 करोड़ रुपए की असल कीमत कितनी कम हो जाएगी. कहने का मतलब है कि आज जो रकम आपको बहुत बड़ी लग रही है, उसकी कीमत भविष्य में उतनी नहीं रहेगी.

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Purchasing power and inflation: आपके लिए ये जानना जरूरी है कि महंगाई समय के साथ आपकी सेविंग और पैसे की वैल्यू को कैसे कम करती है.
नई दिल्ली:

Retirement Planning Tips: हर कोई चाहता है कि अपने रिटायरमेंट के लिए वो अच्छी-खासी रकम जुटा ले, ताकि उस दौरान आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े. इसलिए अपने  रिटायरमेंट के लिए लोग सालों पहले से सेविंग (Savings) और कई तरह के इन्वेस्टमेंट (Investments) करने लगते हैं. लेकिन ऐसा करते हुए अक्सर हम एक गलती कर देते हैं. हम आज रुपये की जो वैल्यू है उसके हिसाब से प्लानिंग करते हैं. जैसे आज अगर आप 50 हजार रुपये में महीने का खर्च आसानी से चला सकते हैं तो 20 साल बाद भी इसी रकम को ध्यान में रखकर प्लानिंग करते हैं. 

लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आपके पैसे की 20-30 साल बाद उतनी ही वैल्यू नहीं रहेगी. बढ़ती महंगाई धीरे-धीरे हमारी परचेजिंग पावर को कम करती है, यानी आज भले ही आपको 50 हजार रुपये एक महीने के लिए काफी लगें लेकिन 20 साल बाद महीने का खर्च चलाने के लिए ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं.

महंगाई का असर (Effect of inflation on purchasing power)

हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर महंगाई का बहुत गहरा असर पड़ता है, क्योंकि यह हमारी पर्चेजिंग पावर को धीरे-धीरे कम करती है. अगर आप आज के हिसाब से सोच रहे हैं कि 20 साल बाद 1 करोड़ रुपए आपके लिए काफी होंगे तो पहले जान लीजिए कि इतने सालों बाद 1 करोड़ रुपए की असल कीमत कितनी कम हो जाएगी. कहने का मतलब है कि आज जो रकम आपको बहुत बड़ी लग रही है, उसकी कीमत भविष्य में उतनी नहीं रहेगी.

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चलिए आपको ये बात एक उदाहरण देकर समझाते हैं, साल 2010 में गैस सिलेंडर की कीमत 350 रुपये थी, लेकिन अब देश के कुछ हिस्सों में साल 2025 में इसकी कीमत लगभग 1,050 रुपये है. यानी इसके एवरेज प्राइस में सालाना 7.6% की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह, 2009 में, आप जहां 100 रुपये में 2 लीटर पेट्रोल खरीद लेते थे, वहीं आज, उतनी ही रकम से, आप सिर्फ 1 लीटर पेट्रोल खरीद सकते हैं. इससे पता चलता है कि इस अवधि के दौरान महंगाई ने आपकी पर्चेजिंग पावर (purchasing power) को लगभग आधा कर दिया है.

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महंगाई को कैसे मापते हैं? (How is inflation measured?)

सरकार महंगाई को मापने के लिए कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (Consumer Price Index - CPI)  का यूज करती है. CPI डेटा में खाना, कपड़े, घर, ट्रांसपोर्ट, हेल्थ, इलेक्ट्रिसिटी, एजूकेशन आदि जैसी जरूरी वस्तुओं (Essential items) की कीमतों में वृद्धि शामिल होती है. फरवरी 2025 में भारत का CPI-बेस्ड इन्फ्लेशन रेट 3.61% था, लेकिन पिछले सालों में यह औसतन 5% से ज्यादा रहा है. CPI इन्फ्लेशन रेट 2013 में 12.2% के उच्चतम स्तर पर था और 2017 में गिरकर 1.5% हो गया.

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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का टारगेट इंफ्लेशन रेट को 4% पर रखने का  है, जिसमें दोनों तरफ 2% का फ्लेक्सिबल बैंड होता है. लेकिन आवश्यक वस्तुओं की वास्तविक लागत अक्सर RBI द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों से ज्यादा होती है.

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इन्वेस्टमेंट पर रियल vs नॉमिनल रिटर्न

बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), EPFO, पोस्ट ऑफिस सेविंग्स और सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) जैसी ट्रेडिशनल फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टमेंट स्कीम आम तौर पर 6% से 8.25% तक का सालाना रिटर्न देती हैं. इन्फ्लेशन को एडजस्ट करने के बाद, इन इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट से मिलने वाला वास्तविक रिटर्न केवल 2-3% रह जाता है.

दूसरी ओर, इक्विटी-लिंक्ड इन्वेस्टमेंट, जैसे कि म्यूचुअल फंड इसकी तुलना में थोड़ा बेहतर रिटर्न देते हैं. अगर इसके पिछले रिटर्न को देखें तो इक्विटी म्यूचुअल फंड ने आमतौर पर 12% से 15% तक का सालाना रिटर्न दिया है. लेकिन महंगाई को ध्यान में रखने के बाद, म्यूचुअल फंड का वास्तविक रिटर्न यानी रियल रिटर्न 6-9% आता है.

इंफ्लेशन-एडजस्टेड रिटायरमेंट फंड कैलकुलेशन

चलिए एक उदाहरण के जरिए समझते हैं कि कैसे महंगाई समय के साथ आपकी सेविंग और पैसे की वैल्यू को कम करती है.मान लीजिए कि 40 साल का कोई व्यक्ति 60 साल की उम्र में रिटायरमेंट के लिए आज 1 करोड़ रुपये का कॉर्पस बनाना चाहता है. अगर हम 5% का एवरेज एनुअल इन्फ्लेशन रेट मानते हैं, तो इस व्यक्ति को अपने इस टारगेट को अचीव करने के लिए 18,000 रुपये प्रति माह म्यूचुअल फंड में SIP के जरिए निवेश करना होगा. हम SIP पर 15% सालाना रिटर्न मानकर चल रहे हैं. ध्यान रहें कि सालाना रिटर्न इससे कम या ज्यादा हो सकता है.

इंफ्लेशन एडजस्टेड कैलकुलेशन:

मंथली SIP: 18,000 रुपये
इन्वेस्टमेंट पीरियड : 20 साल
अनुमानित सालाना रिटर्न: 15%
टोटल इन्वेस्टमेंट : 43.2 लाख रुपये
टोटल रिटर्न (इंफ्लेशन-एडजस्टेड): 59.64 लाख रुपये
फ्यूचर वैल्यू (20 साल बाद): 1.02 करोड़ रुपये

इस तरह, इन्फ्लेशन यानी महंगाई को एडजस्ट करने के बाद 20 साल बाद फ्यूचर अमाउंट 1.02 करोड़ रुपये हो जाता है.

नॉमिनल कैलकुलेशन (इंफ्लेशन एडजस्टमेंट के बिना):

मंथली SIP: 18,000 रुपये
इन्वेस्टमेंट पीरियड: 20 साल
अनुमानित सालाना रिटर्न: 15%
टोटल इन्वेस्टमेंट: 43.2 लाख रुपये
टोटल रिटर्न (नॉमिनल वैल्यू): 2.23 करोड़ रुपये
फ्यूचर वैल्यू (20 साल बाद): 2.73 करोड़ रुपये

इसका मतलब यह है कि 20 साल बाद 2.73 करोड़ रुपये की रकम वास्तव में आज के 1 करोड़ रुपये के बराबर होगी. यानी आज अगर कोई 1 करोड़ रुपये से जो चीजें खरीद सकता है, तो उसे 20 साल बाद वही चीजें खरीदने के लिए 2.73 करोड़ रुपये की जरूरत होगी.

फाइनेंशियल प्लानिंग करते समय इन्फ्लेशन का रखें ध्यान

इससे अब आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि रिटायरमेंट और दूसरे फाइनेंशियल गोल के लिए प्लानिंग करते समय इन्फ्लेशन रेट यानी महंगाई दर को ध्यान में रखना कितना जरूरी है. कई निवेशक महंगाई को ध्यान में रखे बिना ही अपना टारगेट कॉर्पस सेट कर लेते हैं और बाद में उन्हें पता चलता है कि उनकी जुटाई पूंजी का वास्तविक मूल्य काफी कम हो गया है. इसलिए फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए, इन्वेस्टर्स को फाइनेंशियल गोल सेट करते समय महंगाई को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए.

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