महिलाओं के लिए विरासत (Inheritance) की योजना कानून, परिवार और चुप्पी के ताने-बाने में उलझी रहती है. इसका नतीजा सिर्फ कंफ्यूजन नहीं होता, बल्कि ऐसी गलतफहमियां होती हैं, जिनकी कीमत उन्हें बाद में चुकानी पड़ती है. अक्सर ये गलतियां किसी की मौत के बाद सामने आती हैं, जब उन्हें सुधारा नहीं जा सकता. कानून के जानकारों का कहना है कि असली समस्या गलत सलाह नहीं है, बल्कि यह है कि महिलाओं को यह बताया ही नहीं जाता कि सिस्टम असल में काम कैसे करता है.
यहां ऐसी पांच आम गलतफहमियां बताई जा रही हैं, जिनकी वजह से महिलाएं अपनी संपत्ति पर नियंत्रण खो देती हैं.
“विरासत के लिए एक ही कानून होता है”
कई लोगों को लगता है कि भारत में विरासत के लिए एक ही कानून लागू होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. Cyril Amarchand Mangaldas की पार्टनर शैशवी कडाकिया कहती हैं कि भारत में कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं है. इसलिए विरासत के मामलों में मृत व्यक्ति पर लागू होने वाला पर्सनल लॉ देखा जाता है.
भारत में यह मामला और इसलिए उलझ जाता है, क्योंकि यहां कई धर्म के लोग रहते हैं. इनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी सहित कई शामिल हैं. मुस्लिम व्यक्ति के मामलों में भी सुन्नी और शिया कानून अलग होते हैं. शादी भी कानून बदल सकती है. अगर कोई हिंदू व्यक्ति किसी ईसाई से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करता है, तो उस पर हिंदू कानून लागू नहीं होता. कडाकिया के अनुसार, ज्यादातर लोग इन चीजों को समझ ही नहीं पाते हैं.
“सारी संपत्ति एक ही तरीके से ट्रांसफर हो जाती है”
देश में कानूनी वारिस को पहचानना तो आसान है. लेकिन भारत में कोई सेंट्रल एसेट रजिस्टर नहीं है. इसका मतलब यह है कि कई बार कानूनी वारिसों को यह भी नहीं पता होता कि मृत व्यक्ति ने कौन-कौन सी संपत्ति या कर्ज उनके लिए छोड़ा है.
डॉक्युमेंट्स भी अक्सर सही तरीके से नहीं रखे जाते. बैंक खाते, डीमैट अकाउंट, म्यूचुअल फंड, बैंक लॉकर, EPF, PPF, ग्रेच्युटी, जीवन बीमा, फ्लैट, जमीन जैसी हर संपत्ति के लिए अलग-अलग कागजी प्रक्रिया होती है. हर एसेट के लिए अलग संस्था या अधिकारी से संपर्क करना पड़ता है, जिससे प्रक्रिया और मुश्किल हो जाती है.
“मां-बाप की संपत्ति मांगना लालच है”
यह सोच कई महिलाओं को शुरुआत से ही रोक देती है. वकील और लीगल इंफ्लुएंसर तान्या अप्पाचू कौल के मुताबिक, 'कई महिलाएं डरती हैं कि अगर वे अपने माता-पिता की संपत्ति की बात करेंगी, तो समाज उन्हें जज करेगा'.
कई महिलाओं को तो यह भी नहीं पता होता कि वे अपने माता-पिता की संपत्ति की हकदार हैं. उल्टा उन्हें यह सिखाया जाता है कि शादी के बाद उन्हें पति की संपत्ति मिल जाएगी. लेकिन सच्चाई इसके उलट है. कानून के अनुसार, महिला अपने माता-पिता की संपत्ति की हकदार होती है, लेकिन पति की संपत्ति पर उसका अपने आप कोई अधिकार नहीं होता.
“वसीयत बना देने से कोई विवाद नहीं होगा”
वसीयत जरूर एक मजबूत दस्तावेज होती है, लेकिन इसे पूरी तरह अटल नहीं माना जा सकता. वकील तान्या अप्पाचू कौल कहती हैं कि वसीयत को भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. अगर कोई वारिस खुद को नुकसान में महसूस करता है, तो उसे अदालत जाने से रोका नहीं जा सकता.
अक्सर वसीयत को इस आधार पर चुनौती दी जाती है कि वसीयत बनाने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से सक्षम नहीं था, उस पर किसी का दबाव था, उसे मजबूर किया गया था या फिर किसी तरह की धोखाधड़ी हुई थी. ऐसे आरोप सामने आने पर मामला कानूनी विवाद में बदल सकता है.
इसी वजह से वसीयत में साफ और स्पष्ट भाषा होना बहुत जरूरी है. अगर वसीयत में सिर्फ इतना लिखा हो कि 'मेरे पास जो गहने हैं, वे मेरे बच्चों को दिए जाएं और वे आपस में तय कर लें कि कौन क्या लेगा', तो यह साफ नहीं माना जाएगा. ऐसी स्थिति में वसीयत को चुनौती दी जा सकती है.
“विरासत की बात बाद में भी हो सकती है”
विरासत को लेकर बातचीत टालना ही अक्सर आगे चलकर विवाद की वजह बनता है. शैशवी कडाकिया कहती हैं कि यह बातचीत जरूर मुश्किल होती है, लेकिन इसे किसी भी कीमत पर करनी चाहिए. जिंदगी अनिश्चित है और व्यक्ति को यह तय कर लेना चाहिए कि उसके न रहने पर उसकी संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा.
यह गलतफहमियां दिखाती है कि विरासत से जुड़ी सही जानकारी न होने की कीमत महिलाओं को कैसे चुकानी पड़ती है. समय रहते कानून को समझना और सवाल पूछना महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है.














