शेयर बाजार से पैसे कमाना चाहते हैं तो यूं फंडामेंटल एनालिसिस कर चुन सकते हैं मल्टीबैगर स्टॉक्स

आप अधिकतर मल्टीबैगर स्टॉक्स के बारे में अखबारों में लेख देख रहे हैं. यह सब इसी तरह देखकर पता किया जाता है. 

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शेयरों में फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें.
नई दिल्ली:

आम तौर पर कोई भी अपने परिचित को पैसा देता है तो यह जरूर देख लेता है कि वह वापस कर पाएगा या नहीं. कितने दिनों में वापस करेगा. कहीं पैसा डूब तो नहीं जाएगा. कहीं वह पैसा लेकर भाग तो नहीं जाएगा. तमाम बातों पर गौर किया जाता है. देखा जाए तो आप यह देख रहे होते हैं कि आपका पैसा कितना सुरक्षित है. आप उस आदमी का फंडामेंटल एनालिसिस कर रहे हैं. शेयर बाजार में भी यदि स्टॉक्स खरीदने से पहले कोई उस कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस कर ले तो नुकसान होने की संभावना नगण्य हो जाती है. आज इसी फंडामेंटल एनालिसिस को समझाने का प्रयास किया जा रहा है. यह सब कोशिश इसीलिए होती है ताकि बेहतर रिटर्न की संभाववाएं कितनी हैं. इसी रिसर्च के काम को जो किसी बिजनेस की सही वैल्यू निकालने के लिए किया जाता है उसे ही फंडामेंटल एनालिसिस कहा जाता है.

फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis of Share or stocks)

अमूमन जब भी शेयर बाजार के किसी एक्सपर्ट से बात होती है तो उनका कहना होता है कि किसी शेयर को खरीदने से पहले उसका फंडामेंटल एनालिसिस करना बहुत जरूरी है. इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति कैसी है, शेयर का मूल्य सही है, कंपनी के भविष्य कैसा रह सकता है... आदि सवालों के जवाब मिल जाते हैं. फंडामेंटल एनालिसिस रिसर्च से शेयर की बारीकियों को समझने में सहूलियत होती है. 

फंडामेंटल एनालिसिस का अर्थ होता है कि कंपनी के फंडामेंटल के बारे में जानकारी करना. यानि निवेश से पहले कंपनी की स्थिति के बारे में समझना ताकि रिटर्न की उम्मीद की जा सके. अब यह साफ हो गया होगा  कि फंडामेंटल एनालिसिस वह माध्यम है जिससे कोई भी किसी शेयर की सही कीमत का अंदाजा लगा सकता है. यानी किसी कंपनी के शेयर फंडामेंटल एनालिसिस करने का मतलब हुआ कि उसके मैनेजमेंट, बिजनेस मॉडल, बैलेंस शीट, फाइनेंशियल स्टेटमेंट को पढ़कर कंपनी का वैल्यूएशन करना. 

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शेयर बाजार में ट्रेड लेने वाले जानते हैं कि बाजार में दो तरह से एनालिसिस होती है. एक फंडामेंटल एनालिसिस और दूसरा टेक्निकल एनालिसिस.

जब लोग कुछ अवधि के लिए पैसा निवेश के तौर पर स्टॉक्स में लगाना चाहते हैं तो वे फंडामेंटल एनालिसिस करके यह काम करते हैं. और अगर ऑप्शंस में ट्रेडिंग करते हैं तो टेक्निकल एनालिसिस करते हैं. 

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यहां पर आज बात फंडामेंटल एनालिसिस की हो रही है. टेक्निकल एनालिसिस पर चर्चा अगले किसी लेख में होगी...

किसी स्टॉक का फंडामेंटल एनालिसिस करते समय इन बातों पर ध्यान देना जरूरी होता है.

किसी भी स्टॉक को लेने से पहले उसका प्राइस और उसकी वैल्यू देखनी होती है. इसक मतलब यह हुआ कि जब कोई स्टॉक खरीदा गया है तो उसकी एक कीमत चुकाई गई है. वह स्टॉक की प्राइस हो गई. जब वह स्टॉक कुछ बढ़ा तो वैल्यू मिलती है. यानी रिटर्न मिलता है. जिसे जितना ज्यादा वैल्यू मिली यानी उतना अच्छा स्टॉक हुआ. 

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किसी कंपनी के शेयर के फंडामेंटल चेक करते समय कुछ बातों पर ध्यान देना होता है. इनमें कंपनी का बिजनेस मॉडल,
इंडस्ट्री एनालिसिस , कंपीटीशन से तुलना, कितना रेवेन्यू आ रहा है, प्रॉफिट मार्जिन कितना है, सेक्टर में कंपनी का मार्केट शेयर कितना है, सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी कौन सी है, शेयर के फाइनेंसियल स्टेटमेंट देखना, फाइनेंशियल रेश्यो देखना, कैश का इस्तेमाल करने का तरीका, कंपनी की सेल्स और मुनाफा, मैनेजमेंट एनालिसिस , कंपनी की भविष्य योजना, एनुअल रिपोर्ट , क्वाटर्ली रिजल्ट, प्रमोटर्स की शेयर होल्डिंग आदि देखना जरूरी है. 

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दूसरी बातें जो किसी शेयर को खरीदने से पहले देखना होता है उनमें शेयर की इंटरिंसिक वैल्यू की जानकारी करना, 

फंडामेंटल एनालिसिस दो प्रकार की होती है. एक क्वालीटेटिव और दूसरी क्वांटीटेटिव. 
क्वालीटेटिव एनालिसिस में के बिजनेस मॉडल, ब्रांड वैल्यू, लीडरशिप, मोनोपोली, कंपनी की परफॉर्मेंस आदि के आधार पर की जाती है . क्वांटीटेटिव एनालिसिस में बैलेंस शीट, कैश फ्लो स्टेटमेंट, पीएंडएल स्टेटमेंट और फाइनेंशियल रेश्यो एनालिसिस की जाती है. 

आप अधिकतर मल्टीबैगर स्टॉक्स के बारे में अखबारों में लेख देख रहे हैं. यह सब इसी तरह देखकर पता किया जाता है. 

किसी कंपनी के फंडामेंटल में उस कंपनी का बिजनेस मॉडल काफी अहम रोल अदा करता है. इसलिए जिस कंपनी का बिजनेस मॉडल समझ में आए उसमें निवेश चिंता को दूर रखता है. कहा जाता है कि यदि किसी निवेशक को कंपनी का बिजनेस मॉडल पता होगा तो शॉर्ट टर्म में कंपनी के शेयर प्राइस में हो रहे उतार-चढ़ाव से चिंता नहीं होगी. कम जानकार ऐसे समय पैनिक में घाटे में अपने शेयर बेच देते हैं और जानकार ऐसे मौकों पर शेयर खरीदकर पैसा बनाते हैं. 

फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी के मैनेजमेंट का एनालिसिस करना, उनके बारे में जानना बहुत अहम होता है. उनका बैकग्राउंड समझना और विचार करना भी बेहद अहम होता है. कंपनी के अहम पदों पर बैठे लोगों के बारे में, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के बारे में जरूरी जानकारी एकत्र कर लेना चाहिए. 

जानकार कहते हैं कि कंपनी की एनुअल रिपोर्ट को देखना चाहिए. समझना चाहिए. मैनेजमेंट की सैलरी देखनी चाहिए. कंपनी के टॉप मैनेजमेंट पर बैठे लोग कुल मुनाफे के 1% से ज्यादा सैलरी ले रहे हैं तो मतलब साफ है कि मैनेजमेंट अपनी सोच रहा है. 

शेयर बाजार में किसी शेयर में निवेश से पहले फाइनेंशियल रेशियो देखना चाहिए. शेयर मार्केट में कई फाइनेंशियल रेशियो होते हैं लेकिन उनमें से 3 अहम होते हैं. इनमें पीई रेशियो (P/E Ratio, Price to Earning Ratio), पीबी रेशियो (P/B Ratio Price to book Value ratio, डेट टू इक्विटी रेशियो (Debt to Equity Ratio) शामिल हैं. 

सबसे पहली बात P/E Ratio की. पीई रेश्यो का तात्पर्य है Price to Earning Ratio. इसका मतलब यह हुआ कि आप जो प्राइस कीमत दे रहे हैं उसके बदले कंपनी कितना कमा रही है.

पीई रेश्यो को देखकर पता चलता है कि शेयर सस्ता है या महंगा.

बाजार के कुछ जानकार कहते हैं कि अगर PE Ratio 20 प्रतिशत से कम है तो उसे एक अच्छा पीई रेशियो समझा जाता है. यहां जो बात ध्यान रखना चाहिए वो यह है कि शेयर के सेक्टर का पीई रेशियो भी देखना चाहिए. सेक्टर के पीई रेशियो से तुलना करने के बाद ही शेयर खरीदना चाहिए. देखना चाहिए कि अगर शेयर का पीई रेशियो सेक्टर के पीई रेशियो से कम है तो कंपनी बेहतर है. 

वैसे बाजार में ऐसा भी होता है कि हाई पीई रेशियो वाली कंपनी के शेयरों को लोगों का समर्थन मिलता है. इसका मतलब यह होता है कि बाजार को कंपनी की कमाई पर भरोसा है. यानी बाजार को लगता है कि उस कंपनी का मुनाफा आगे भी बढ़ता रहेगा और इसलिए बाजार उस कंपनी को हाई वैल्यूएशन देता है. 

इसे यूं भी समझा जा सकता है कि किसी भी कंपनी का जितना अधिक पीई रेशियो होगा, उसका शेयर उतना ही महंगा होता है. मतलब वह शेयर मुनाफे के नजरिए से बेहतर नहीं होगा. वहीं पीई रेशियो जितना कम होगा, शेयर उतना ही सस्ता होगा. इस शेयर को खरीदने पर मुनाफे की गुंजाइश अधिक होगी. यहां पर हाई पीई रेशियो बताता है कि उस शेयर की बाजार में डिमांड अधिक है, इसलिए वैल्यूएशन हाई है.


पीबी रेशियो क्या है. पीबी रेश्यो का मतलब है प्राइस टू बुक वैल्यू रेशो (Price to book Value ratio).  बुक वैल्यू का मतलब होता है अगर कंपनी अपनी सारी लायबिलिटी को चुका दे तो उसके बाद कंपनी के पास जो एसेट बचेंगे उनकी वैल्यू ही बुक वैल्यू होती है. बाजार में माना जाता है कि पीबी रेशियो जितना कम हो उतना अच्छा होगा. लेकिन आईटी कंपनी में यह देखा जाता है कि उनका पीबी रेशियो ज्यादा होता है क्योंकि उनके टैंजिबल एसेट कम होते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि हाई पीबी रेशियो है तो आईटी कंपनियां बेकार हैं. इन कंपनियों में इनटैंजिबल एसेट ज्यादा होते हैं जिनमें ब्रांड वैल्यू, गुडविल, पेटेंट, लाइसेंस, सॉफ्टवेयर आदि आते हैं. ऐसे में इन सभी की कोई फिजिकल वैल्यू नहीं होती है इसीलिए इन कंपनियों के पीबी रेशियो ज्यादा होते हैं. 

इसीलिए यह जरूरी हो जाता है कि एक ही सेक्टर की दो कंपनियों के पीबी रेशियो की तुलना होनी चाहिए. 

जानकार बताते हैं कि पीबी रेशियो निकालने के लिए कंपनी के कुल शेयर के मार्केट प्राइस को उसकी बुक वैल्यू से भाग या कहें डिवाइड करना होता है. अगर पीबी रेशियो 1 से ज्यादा है तो वह कम्पनी ओवर वैल्यूड है और अगर यह रेशियो 1 से कम है तो वह कम्पनी अंडर वैल्यूड मानी जाती है. 

डीई रेशियो क्या है (Debt to Equity Ratio). कंपनी को तरक्की के लिए कर्ज की जरूरत होती है. डीई रेशियो कंपनी में कर्ज की स्थिति को दर्शाता है. अगर डेट इक्विटी रेशों 1 से कम है तो अच्छा माना जाता है. लेकिन अगर यह 1 से ज्यादा है तो नुकसान के आसार बढ़ जाते हैं. 

अभी तक तीन अहम रेशियो के बारे में बात हो गई है. इनके अलावा आरओई (Return on Equity ROE), ROCE (रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड), करेंट रेशियो (Current Ratio), इंटरेस्ट कवरेज रेशियो (Interest coverage ratio) को भी अगर देख लिया जाए तो अच्छा रहेगा. इन चारों पर बात फिर कभी...

किसी कंपनी के फाइनेंसियल स्टेटमेंट तीन पेपर अहम होते हैं. बैलेंस शीट, प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट (P and L statement),  और कैश फ्लो स्टेटमेंट cash flow statement.

बैलेंस शीट: बता दें कि किसी कंपनी की बैलेंस शीट उस कंपनी के पास कितने एसेट और लाएबिलिटीज के बारे में बताती है.

बैलेंस शीट देखकर कंपनी की बुक वैल्यू कितनी है और वह किन चीजों की वजह से है, पता चलती है. बैलेंस शीट पढ़कर किसी भी कंपनी की आर्थिक स्थिति का पता चलता है.

इसमें कंपनी के शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म लोन के बारे में पता चलता है. बैलेंस शीट पर आगे बात विस्तार से...

पीएल स्टेटमेंट: यह किसी कंपनी के सालाना सेल्स और प्रॉफिट को दिखाता है.यहां पर कंपनी के रेवेन्यू, ऑपरेटिंग प्रॉफिट, ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन, एबिट्डा और एबिट्डा मार्जिन पता लगता है. डेप्रिशिएशन और एमोर्टाइजेशन पता चलता है. नेट प्रोफिट और नेट प्रोफिट मार्जिन पता चलता है. इससे कंपनी के सेल्स और प्रॉफिट ग्रोथ का पता चलता है. नेगेटिव ग्रोथ वाली कंपनी के शेयर खरीदने से बचना चाहिए. 

कैश फ्लो स्टेटमेंट: इस कैश फ्लो स्टेटमेंट देख कर पता चलता है कि कंपनी में कितना कैश आ रहा है और कितना कैश कंपनी से बाहर जा रहा है. इसमें हर साल कंपनी ने जो सामान बेचा है उसमें से कितना सामान उधार पर और कितना कैश में बेचकर लिया है.

अब आप समझ ही गए होंगे कि शेयर बाजार में सही शेयर चुनना आसान नहीं होता है. इसलिए शेयर बाजार के जानकार अपने हिसाब से शेयरों की सलाह दिया करते हैं. अच्छा होगा कि सही शेयर चुनें. सही सलाह लें.

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