जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) करदाताओं की मदद के लिए मासिक कर भुगतान फॉर्म जीएसटीआर-3बी फॉर्म में जल्द ब्याज गणना की सुविधा शुरू करेगी. इससे करदाता विलंबित कर भुगतान के लिए ब्याज की गणना कर सकेंगे. अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के लिए प्रौद्योगिकी नेटवर्क उपलब्ध कराने वाली जीएसटीएन ने एक परामर्श में कहा कि इस नई सुविधा के माध्यम से जीएसटीआर-3बी में करदाताओं द्वारा विशेष कर अवधि के लिए घोषित राशि के आधार पर न्यूनतम ब्याज की गणना की जाएगी.
इसमें कहा गया, ‘करदाताओं को अपने स्तर पर आकलन की सुविधा देने के लिए जीएसटीआर-बी में ब्याज कैलकुलेटर की नई व्यवस्था दी जा रही है. इसके माध्यम से करदाता रिटर्न भरने में विलंब होने पर लगने वाले ब्याज की गणना कर पाएंगे.'
माल एवं सेवा कर (जीएसटी) कानून के मुताबिक, कर समय पर अदा करने में विफल रहने पर 18 प्रतिशत ब्याज लगता है. वहीं इनपुट कर क्रेडिट (आईटीसी) के लिए गैर-वाजिब या अधिक दावा करने पर 24 प्रतिशत का ब्याज लगाया जाता है. परामर्श में कहा गया कि जीएसटी पोर्टल पर यह सुविधा जल्द उपलब्ध होगी और इससे रिटर्न भरना और सुगम होगा.
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वसूली से पहले जीएसटीआर-1, 3बी में विसंगति की वजह स्पष्ट करने को मिलेगा ‘उचित समय'
इसके अलावा कर अधिकारी कम कर चुकाने या कर न चुकाने के चलते वसूली कार्रवाई शुरू करने से पहले बिक्री रिटर्न जीएसटीआर-1 में दर्शाए गए कारोबार में अंतर और कर भुगतान फार्म 3बी में विसंगति की वजह स्पष्ट करने के लिए कारोबारियों को उचित समय देंगे. केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने वसूली कार्रवाई के संबंध में दिशानिर्देश जारी कर कहा कि कर अधिकारी इस तरह की विसंगतियों की वजह समझाने के लिए कारोबारियों को ‘उचित समय' देंगे.
जीएसटी कानून में एक जनवरी से हुए बदलाव के अनुसार कर अधिकारियों को उन व्यवसायों के खिलाफ सीधे वसूली कार्रवाई शुरू करने की इजाजत दी गई थी, जिन्होंने मासिक रिटर्न जीएसटीआर - 1 में अधिक बिक्री दिखाई थी, लेकिन कर भुगतान के दौरान जीएसटीआर - 3बी में इसका उल्लेख नहीं किया.
इस कदम का मकसद फर्जी बिलिंग पर अंकुश लगाना था. फर्जी बिलिंग के जरिये विक्रेता जीएसटीआर - 1 में अधिक बिक्री दिखाते थे, ताकि खरीदार इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा कर सके, जबकि जीएसटीआर - 3बी में घटी हुई बिक्री की दिखाकर जीएसटी देयता को कम कर दिया जाता था. अभी तक जीएसटी कानून के तहत ऐसे मामलों में पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता था, और वसूली की प्रक्रिया शुरू की जाती थी.