क्या होता है PM 2.5 और PM 10 - जानें, किस आंकड़े पर प्रदूषण की स्थिति होती है गंभीर

Delhi Air Quality, particulate matter : दिल्ली-एनसीआर में सर्दियां शुरू होती है देखा जाने लगता है कि वायु की गुणवत्ता क्या है. PM 2.5 और PM 10 जैसे टर्म सुनाई देने लगते हैं. हो सकता है कि आपको इन दोनों टर्म के बारे में अच्छे से पता हो और अगर नहीं पता है तो इस लेख में हम इसी बारे में बात कर रहे हैं.

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Delhi Air Pollution : दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की विकट समस्या (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

दिल्ली का वायु प्रदूषण कुख्यात है. हर साल सर्दियां शुरू होते ही शहर धुंध की चादर लपेट लेता है और लोग साफ हवा के लिए घुटकर रह जाते हैं. शिकागो यूनिवर्सिटी के ताजा रिसर्च में सामने आया है कि दिल्ली में बाहर ही नहीं घरों के अंदर भी वायु प्रदूषण है. यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के नए शोध में पाया गया है कि दिल्ली में कम-आय और अधिक-आय वाले परिवारों के लिए इनडोर PM 2.5 का स्तर सर्दियों के दौरान बहुत अधिक था. इस दौरान उपरोक्त परिवारों में औसत सांद्रता (मीन कंसंट्रेशन) WHO द्वारा तय सुरक्षित सीमा 10μg/ m³ से क्रमश: 23 और 29 गुना अधिक थी.

अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि उच्च-आय वाले घरों में कम-आय वाले घरों की तुलना में एयर प्यूरीफायर रखने की संभावना 13 गुना अधिक है. इसके बावजूद उच्च-आय वाले घरों में इनडोर वायु प्रदूषण का स्तर कम-आय वाले घरों की तुलना में केवल 10% कम था.

दिल्ली-एनसीआर में सर्दियां शुरू होती है देखा जाने लगता है कि वायु की गुणवत्ता क्या है. PM 2.5 और PM 10 जैसे टर्म सुनाई देने लगते हैं. हो सकता है कि आपको इन दोनों टर्म के बारे में अच्छे से पता हो और अगर नहीं पता है तो इस लेख में हम इसी बारे में बात कर रहे हैं. आखिर PM 2.5 और PM 10 क्या होते हैं, ये कितने खतरनाक होते हैं और शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं.

अलग-अलग AQI लेवल

लेकिन उसके पहले देख लेते हैं कि एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक पर किस श्रेणी में वायु प्रदूषण किस स्तर पर होता है. अगर AQI ज़ीरो से 50 के बीच हो तो इसे 'अच्छी', 51 से 100 के बीच हो तो 'संतोषजनक', 101 से 200 के बीच हो तो 'ठीक-ठाक', 201 से 300 हो तो 'खराब' 301 से 400 के बीच हो तो 'बहुत खराब' और 401 से 500 के बीच हो तो 'गंभीर' होता है. 

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क्या होते हैं PM 2.5 और PM 10?
हवा में धूल-धक्कड़ तो आप देख ही लेते होंगे. धूल गले, आंखों, नाक में घुस जाए तो कितनी दिक्कत होती है. लेकिन घातक वायु प्रदूषण के पीछे PM 2.5 और PM 10 का बड़ा हाथ होता है. PM का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 और 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. दिखने वाली धूल आपको नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाती है, लेकिन इसे आप धुलकर साफ कर सकते हैं, लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि यह आंखों के लिए अदृश्य होता है, और इस अदृश्य दुश्मन के खतरे बड़े होते हैं. यह हमारी बॉडी के नेचुरल फिल्टरेशन प्रोसेस से आराम से बच निकलता है. 

कितने छोटे होते हैं पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10
पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 माइक्रोस्कोपिक डस्ट पार्टिकल होते हैं, यानी इतने सूक्ष्म कि देखने के लिए माइक्रोस्कोप यानी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ जाए. हालांकि, इनके लिए हमारी बॉडी में घुसना और नुकसान पहुंचाना बहुत आसान होता है.

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पार्टिकुलेट मैटर कितना सूक्ष्म होता है, इसे ऐसे समझिए. इंसानी बाल की मोटाई या रेत के कण का आकार आप देख ही रहें हैं, सोचिए वो कितना पतला और छोटा होता है, लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 इससे भी कहीं...कहीं ज्यादा छोटे होते हैं. बालों की मोटाई लगभग 50 से 70 माइक्रॉन होती है, वहीं एक पार्टिकुलेट मैटर की मोटाई 2.5 और 10 होती है. एक रेत का कण 80 से 90 माइक्रॉन का होता है. ऐसे में इनके मुकाबले पार्टिकुलेट मैटर 2.5, 2.5 माइक्रॉन और पार्टिकुलेट मैटर 10 , 10 माइक्रॉन का होता है, सोचिए कितना सूक्ष्म.

कैसे फैलता है पार्टिकुलेट मैटर का प्रदूषण
PM 2.5 और 10 प्राकृतिक कारणों और ज्यादातर मानवीय कारणों से फैल सकते हैं. प्राकृतिक कारण जैसे कि जंगल में लगी आग, ज्वालामुखी विस्फोट, रेतीला तूफान वगैरह हो सकते हैं. वहीं मानवीय कारणों में उद्योगों से निकल रहा प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों का अनुचित निस्तारण, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, वगैरह आते हैं. कभी-कभी हवा में मौजूद अलग-अलग गैसों के सम्मिश्रण के केमिकल रिएक्शन से भी जहरीले पार्टिकुलेट मैटर बन जाते हैं.

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शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं पार्टिकुलेट मैटर
ये मैटर शरीर में घुसकर सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़ों को पहुंचाते हैं. इनसे फेफड़ों की बाहरी सतह क्षतिग्रस्त होती है. फेफड़े कमजोर होते जाते हैं और श्वसन रोग से जुड़ी कई समस्या हो सकती हैं. इससे कोविड का खतरा भी रहता है. पार्टिकुलेट मैटर हमारे खून में भी घुल सकता है और अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, दिल की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. बाहरी लक्षणों में इसमें नाक, आंख में खुजली, दर्द और छींके आने जैसी समस्याएं आ सकती हैं. लगातार ऐसी स्थिति बने रहने पर इंसान किसी क्रोनिक बीमारी का शिकार भी हो सकता है.

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