किताबों की दुनिया में कहा गया है-अगर आपको लगता है कि कोई किताब है जो अब तक नहीं लिखी गयी है तो वो किताब आपको लिखनी चाहिए. संगीत और कलाओं के जाने पहचाने अध्येता यतीन्द्र मिश्र की ताज़ा किताब अख़्तरी इस क़ौल पर सादिक़ आती है. अख़्तरी ग़ज़ल गायिकी की पहचान बेगम अख़्तर पर केन्द्रित किताब है. इससे पहले हिन्दी में बेगम अख़्तर पर बुरी किताबें भी न के बराबर थीं अच्छी किताब तो एक भी नहीं थी. इस किताब को पढ़ने के बाद एक बिलाशक एक जुमले में कहा जा सकता है कि अख़्तरी बेगम अख़्तर पर हिन्दी में पहली और अकेली अच्छी किताब है, और इस लिहाज़ से देखें तो अख़्तरी ने हिन्दी को और समृद्ध किया है. यतीन्द्र की पहचान लंबे वक़्त से प्राथमिक तौर पर एक कवि की रही है. वो ख़ुद भी अपने आप को कवि ही पहले मानते रहे हैं. हालांकि कला और संगीत पर उनकी गद्य पुस्तकें लंबे वक़्त से आती रही हैं, इनमें सुर की बारादरी, विस्मय का बखान, गिरिजा आदि प्रमुख हैं. मगर अपनी पिछली किताब लता सुरगाथा और अब इस किताब अख़्तरी से वो हिन्दी में कला-संस्कृति पर लिखने वाले मुस्तनद नाम बन रहे हैं.
लता सुर गाथा इस अर्थ में ऐतिहासिक किताब है कि इसमें लता मंगेशकर का 369 पन्नों का एक विस्तृत और आत्मीय इंटरव्यू शामिल है जो कि न तो इससे पहले कभी मुमकिन हुआ न इससे बाद में मुमकिन होगा. ताज़ा किताब अख़्तरी बेगम अख़्तर की शख़्सियत और उनके फ़न पर अलग-अलग ज़ावियों से बात करती है. यतीन्द्र इस किताब में संपादक की भूमिका में है. इस किताब के सन्दर्भ में अगर देखें तो ये भूमिका निभाना बहुत मुश्किल था मगर यतीन्द्र ने इसे कामयाबी से निभाया है. इस किताब में संगीत और कला के अनेक पारखी लोगों जैसे- सलीम किदवई, इक़बाल रिज़वी, रक्षंदा जलील, डॉ. प्रवीन झा, सुशोभित सक्तावत आदि ने बेगम अख़्तर की कला और जीवन की विवेचना करते हुए बेहतरीन लेख लिखे हैं, वहीं इसमें अलग अलग लोगों के हवाले से बेगम अख़्तर के कई रोचक और आत्मीय संस्मरण भी दर्ज़ किए गए हैं.
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किताब की तीसरी ख़ास बात है इसमें शामिल साक्षात्कार. इनमें बेगम अख़्तर का आचार्य बृहस्पति द्वारा लिया गया अति दुर्लभ साक्षात्कार तो है ही साथ ही बेगम अख़्तर की दो प्रमुख शिष्याओं शांति हीरानंद और रीता गांगुली का भी विस्तृत साक्षात्कार है. इसके अलावा बेगम की गायिकी के तकनीकी पक्ष को गहनता से विश्लेषित करता मशहूर गायिका शुभा मुद्गल का भी एक बेहतरीन लेख है. इस किताब के संपादन का काम मुश्किल इसलिए रहा होगा क्योंकि किताब के लिए न सिर्फ़ मौजूदा दौर के अलग अलग कला-पारखियों से लिखवाया गया बल्कि बेगम अख़्तर पर केन्द्रित कुछ पुराने लेखों को भी शामिल किया गया जिनमें से कुछ अनुवादित भी हैं. इसी तरह उनकी शिष्याओं से एक विस्तृत और स्तरीय बात करना भी सबसे बस की बात नहीं लगती. बेशुमार लोगों के बेगम के बारे में बेशुमार संस्मरण यकजा करना भी एक दुश्वार काम है. सो इस पूरे उद्यम को बग़ौर देखे जाने की ज़रूरत है.
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किताब की साज-सज्जा और कवर भी ख़ूबसूरत किताब के हुस्न में इज़ाफ़ा करने वाला है. लेखन और संपादन के अलावा इस किताब में हमें यतीन्द्र मिश्र एक बेहतरीन कैलीग्राफर के तौर पर भी नज़र आते हैं. किताब बेगम अख़तर और संगीत के चाहने वालों के लिए तो अनिवार्य ही है मगर इसे हर उस इंसान को पढ़ना चाहिए जो हिन्दुस्तानी तहज़ीब की गहराई में उतरना चाहता है.
(हिमांशु बाजपेयी)
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