राजस्थान में जहां कभी बहती थी सरस्वती नदी, वहां से निकाली जा रही 'जांगल यात्रा', क्या है इसका मकसद?

श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने के लिए 'जांगल यात्रा' निकाली जा रही है. लैला-मजनूं मजार से शुरू हुई यात्रा को उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी का समर्थन मिला है. पढ़ें दीपक अग्रवाल की रिपोर्ट.

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श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़: पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 'जांगल यात्रा' शुरू, लैला-मजनूं मजार पर हुआ स्वागत

Rajasthan News: विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर, राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों के ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए एक विशेष 'जांगल यात्रा' का आयोजन किया जा रहा है. सूरतगढ़ के शिक्षाविद प्रवीण भाटिया के नेतृत्व में शुरू हुई यह यात्रा, न केवल पर्यटन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, बल्कि इसका उद्देश्य युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना और उन्हें नशे से दूर रखना भी है. 

'उपमुख्यमंत्री ने दिया आश्वासन'

शनिवार को सूरतगढ़ से शुरू हुई यह यात्रा अनूपगढ़ के बरोर क्षेत्र से होते हुए ऐतिहासिक लैला-मजनूं की मजार पर पहुंची. लैला-मजनूं की मजार पर महक फाउंडेशन सोसाइटी और श्रीकरणपुर के ईओ संदीप बिश्नोई ने जांगल यात्रा में शामिल गणमान्य लोगों का भव्य स्वागत किया. यात्रा का नेतृत्व कर रहे प्रवीण भाटिया ने बताया कि इस क्षेत्र के पर्यटन स्थलों को विकसित करने और राष्ट्रीय धरोहर के संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने इन प्रयासों को समर्थन देते हुए इस क्षेत्र के विकास का आश्वासन भी दिया है.

'एक तरफ रेगिस्तान, दूसरी तरफ सरस्वती नदी'

प्रवीण भाटिया ने इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वैदिक काल में इस पूरे इलाके को 'जांगल प्रदेश' के नाम से जाना जाता था. उन्होंने कहा कि उस समय यह क्षेत्र बड़ी-बड़ी कंटीली झाड़ियों और रेगिस्तान से भरा था, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह था कि यहां पवित्र सरस्वती नदी बहा करती थी. भाटिया ने बताया कि एक तरफ रेगिस्तान और दूसरी तरफ पवित्र नदी का यह अनोखा संगम ही इस क्षेत्र को 'जांगल प्रदेश' नाम देता था.

'यही हुई ऋग्वेद के अनेके मंत्रों की रचना हुई'

भाटिया का दावा है कि अनूपगढ़ के आस-पास का यह क्षेत्र न केवल प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी अपार है. उनका दावा है कि इसी क्षेत्र में ऋग्वेद के अनेक मंत्रों की रचना हुई थी. अनूपगढ़ के 86 जीबी गांव और तरखान वाला क्षेत्र आर्य सभ्यता की उपस्थिति को प्रमाणित करते हैं. सरस्वती नदी के किनारे यहां विनषण तीर्थ और शंख तीर्थ जैसे अनेक प्राचीन तीर्थ स्थल स्थापित थे. इन सभी दावों को ताण्ड्य ब्राह्मण, महाभारत और वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही आधुनिक खोजों में मिले प्रमाणों से बल मिलता है.

'जांगल यात्रा' का एक मुख्य उद्देश्य इन्हीं प्राचीन धरोहरों पर ध्यान केंद्रित करना और उनके संरक्षण को सुनिश्चित करना है.

दो जिलों में व्यापक यात्रा का रूट

यह 'जांगल यात्रा' दो दिनों तक श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों के प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को कवर करेगी. आज यह यात्रा सूरतगढ़ के मानकसर से सरस्वती नदी का पूजन कर शुरू हुई. इसके बाद यह अनूपगढ़ के बरोर, लैला-मजनूं मजार, चक 86 जीबी, तरखान वाला डेरा, श्री करनपुर में नगी बॉर्डर पर वार मेमोरियल, बुद्धा जोहड़ में गुरुद्वारा साहिब, और डाबला में बिश्नोई मंदिर जैसे ऐतिहासिक स्थलों से गुजरी. जबकि कल (रविवार) को यात्रा सूरतगढ़ से शुरू होकर कालीबंगा, भटनेर किला, मां भद्रकाली मंदिर, गोगामेडी, और रंग महल जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर पहुंचेगी. 

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