बोफोर्स का 'जिन्न' फिर आया बाहर! क्या है लेटर रोगेटरी जिसके जरिए भारत ने अमेरिका से मांगा सहयोग

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध भेजकर निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगी है, जिन्होंने 1980 के दशक के 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत कांड के बारे में महत्वपूर्ण विवरण भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की थी.

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बोफोर्स का 'जिन्न' एक बार फिर 38 साल बाद बाहर आता दिख रहा है. इस मामले में 64 करोड़ की जिस दलाली की बात कही गई थी, उसको लेकर भारत सरकार ने अमेरिका से जानकारी मांगी है. दरअसल, इस मामले में एक और किरदार सामने आया है- हर्शमैन. ये हर्शमैन फेयरफैक्स ग्रुप के प्रमुख हैं.

लेटर रोगेटरी क्या होता है?

हर्शमैन ने दावा किया था कि 64 करोड़ की दलाली के इस मामले की जांच में वो मदद कर सकते हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि बोफोर्स से मिला कमीशन का पैसा एक बैंक में जमा कराया गया था. अब सीबीआई ने अमेरिका को एक लेटर ऑफ रोगेटरी भेजा है जिसमें बोफोर्स के निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन से जुड़ी जानकारी मांगी है. रोगेटरी एक औपचारिक अनुरोध होता है जिसमें एक देश की न्यायिक एजेंसियां दूसरे देश से किसी आपराधिक मामले में मदद मांग सकती हैं.

बोफोर्स घोटाला : दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को SC में चुनौती

बोफोर्स घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई है, जिसमें जल्द सुनवाई की मांग की गई है. यह अर्जी 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देती है, जिसमें हिंदुजा बंधुओं को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था. इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट से तत्काल सुनवाई का आग्रह किया गया है.

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‘लेटर रोगेटरी' की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि आठ नवंबर, 2023, 21 दिसंबर, 2023, 13 मई, 2024 और 14 अगस्त, 2024 को अमेरिकी प्राधिकारियों को भेजे गए पत्रों और स्मरणपत्रों से कोई जानकारी नहीं मिली.

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सीबीआई को इस साल 14 जनवरी को गृह मंत्रालय से अमेरिका को ‘लेटर रोगेटरी' भेजने के लिए हरी झंडी मिल गई थी. एजेंसी ने विशेष अदालत को इसकी जानकारी दी, जिसने 11 फरवरी को सीबीआई के ‘लेटर रोगेटरी' आवेदन को मंजूरी दे दी.

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वहीं, बोफोर्स मामला है, जिसने राजीव गांधी की सरकार को हिला कर रख दिया. 1989 के आम चुनावों में राजीव गांधी 400 पार सीटों से सीधे करीब 200 सीटों तक चले आए. हालांकि 2004-05 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपों को खारिज कर दिया था. फिर बोर्फोस एक शानदार तोप साबित हुई, जिसकी बदौलत भारतीय सेना ने 1999 में करगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भागाया. बोफोर्स तोप घोटाला मामला 1986-87 का है, जिसमें 400 बोफोर्स तोपों के लिए स्वीडन की कंपनी पर भारतीय राजनेता और रक्षा अधिकारियों पर घूस देने का आरोप है. सीबीआई ने जिस तरह से अमेरिका से नई जानकारी मांगी है. उससे लगता है कि सरकार एक बार फिर बोफोर्स की फाइल खोलने की तैयारी में है.

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हर्शमैन के बारे में...

‘फेयरफैक्स ग्रुप' के प्रमुख हर्शमैन 2017 में निजी जासूसों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे. इस दौरान वह विभिन्न मंचों पर दिखाई दिए और उन्होंने आरोप लगाया कि घोटाले की जांच कांग्रेस सरकार द्वारा पटरी से उतार दी गई थी. हर्शमैन ने कहा है कि वह सीबीआई के साथ विवरण साझा करने के लिए तैयार हैं. एजेंसी ने विशेष अदालत को सूचित किया कि हर्शमैन के खुलासे के बाद, वह जांच को फिर से खोलने की योजना बना रही है.

हाई कोर्ट ने राजीव गांधी को कर दिया था बरी

दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बोफोर्स घोटाले में बरी कर दिया था. इसके एक साल बाद कोर्ट ने हिंदुजा बंधुओं सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया था. इसके अलावा, इतालवी व्यवसायी ओत्तावियो क्वात्रोची को भी 2011 में एक अदालत ने बरी कर दिया था और सीबीआई को उनके खिलाफ अभियोजन वापस लेने की अनुमति दी थी.

करगिल युद्ध के दौरान हॉवित्जर तोपों ने निभाई थी अहम भूमिका

1980 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान स्वीडन की कंपनी ‘बोफोर्स' के साथ 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोप लगे थे. यह सौदा 400 हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए किया गया था, जिसने करगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह मामला 2011 में बंद कर दिया गया था. हालांकि, इस मामले पर उस समय काफी राजनीति हुई थी. कांग्रेस पर विपक्षियों ने कई आरोप लगाए थे. 

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