कोविड महामारी के दौरान ‘उषा सिलाई स्कूल' की शिक्षिकाओं का अहम योगदान
Updated: 03 दिसंबर, 2021 02:25 PM
जब कोविड-19 महामारी के चलते देश में लॉकडाउन लगाया गया था तब कई घरों में लोग बेरोज़गारी और वित्तीय संकट से जूझ रहे थे, इस दौरान ‘उषा' की महिलाकर्मियों ने मास्क बनाकर न सिर्फ अपने परिवारों का साथ दिया बल्कि, मास्क बनाकर उन्होंने अपने लिए नए रोज़गार की भी शुरुआत की, जिससे आज वह अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी की व्यवस्था करने में सक्षम हैं. यह उनके लिए एक बेहतरीन अवसर की तरह है. महामारी के दौरान मास्क बनाने के लिए महिलाओं को शिक्षित करना न केवल महिलाओं और उनके परिवारों को कोरोनावायरस से बचाना था बल्कि महिलाओं और उनके विद्यार्थियों को संकट की इस घड़ी में आमदनी के नए अवसर देना भी था. गौरी दास, कलावती शर्मा और जयश्री जनार्दन घोडविंदे उन आठ लाख महिलाओं में से हैं, जिन्होंने कोरोनावायरस संकट के दौरान नॉन स्टॉप काम किया, और न केवल खुद को, बल्कि अन्य सिलाई स्कूल के छात्रों और शिक्षकों को भी अपने काम के ज़रिए जोड़े रखा.
असम के दूरस्थ क्षेत्रों में से एक बराक घाटी के गुमराह गांव की 38 वर्षीय गौरी दास तीन बच्चों की मां हैं और एक ‘उषा सिलाई स्कूल' की ट्रेनर हैं. उनके गांव के लोगों का कहना है कि वह एक मजबूत, प्रेरित महिला हैं. वह अपने घर में उषा सिलाई स्कूल चलाती हैं. जब उन्हें गांव के पास उषा द्वारा किए जा रहे एक प्रशिक्षण आयोजन का पता चला तो उन्होंने फौरन खुद को इससे नामांकित करवा लिया.
प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने अपना सिलाई स्कूल शुरू किया. अब तक उन्होंने अपने गांव और आसपास की 100 से अधिक महिलाओं और लड़कियों को प्रशिक्षित किया है.
पिछले साल जब देश को कोविड-19 महामारी के कारण मल्टीपल लॉकडाउन का सामना करना पड़ा था, तब उन्होंने अपने 20 शिक्षार्थियों के साथ बंधन बैंक, ग्राम पंचायत और असम ग्रामीण विकास बैंक को मास्क सप्लाई करके 5 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई की थी.
गौरी दास ने छात्रों के लिए जिस तरह से महामारी के दौरान काम किया है उससे सिलाई स्कूल मॉडल की प्रभावशीलता का पता चलता है, अपने सिलाई स्कूल की वजह से गौरी दास भी अपनी बेटी के प्रशिक्षित डांसर बनने का सपना पूरा कर पा रही हैं.
बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव कस्बे की कलावती शर्मा ने कोविड संकट के दौरान नॉनस्टॉप काम कर मास्क सिलाई भी की और अन्य महिलाओं और लड़कियों को भी इसकी ट्रेनिंग दी. लॉकडाउन के समय परिवार के पुरुषों ने अपनी आजीविका खो दी थी, इसलिए घर की महिलाओं ने घर चलाने का बेड़ा अपने कंधों पर उठाया और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए उषा के साथ मिलकर काम किया.
कलावती शर्मा के अनुसार, कोरोनावायरस संकट के दौरान लॉकडाउन में जो महिलाएं उनके साथ काम कर रही थीं, उन्हें करीब पांच दिनों तक घर पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था क्योंकि उनके पास काम का कोई ऑर्डर नहीं था लिहाजा काम पूरी तरह से ठप हो गया था. इस दौरान उन्हें भविष्य को लेकर काफी चिंता भी होने लगी थी.
उन्होंने बताया कि ग्राम प्रधान से ऑर्डर मिलने के बाद सिलाई स्कूल की महिलाओं को काम मिल गया और वह फिर से कमाने लगी थीं, लेकिन, उन्हें खुद कच्चे माल की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था, चूंकि सभी दुकानें बंद थीं, इसलिए उनके लिए जरूरी कच्चे माल को आसानी से एक्सेस करना मुश्किल था. इस दौरान ऑर्डर पूरा करने के लिए कलावती शर्मा ने दुकानदारों के घरों में जाकर उनसे सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनुरोध किया था.
कलावती शर्मा के साथ काम करने वाली महिलाएं और लड़कियां पैसे कमाने के लिए महामारी के दौरान काम करने को तैयार थीं क्योंकि उनके परिवार के अन्य लोगों ने आजीविका का स्रोत खो दिया था.
कलावती शर्मा ने बताया कि महामारी के दौरान महिला कामगार ने बहुत मेहनत की और प्रतिदिन 1,200 रुपये से लेकर 1,500 रुपये तक की कमाई की.