रोहनदीप सिंह: बिना दूरी तय किये कहीं दूर आप पहुंच नहीं सकते

उत्तराखंड के शहर कोटद्वार से मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में रोहनदीप सिंह बिष्ट एक सफ़ल फ़िल्म और टीवी निर्माता के साथ ही फ़िल्म वितरक बनकर उभरे हैं.

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नई दिल्ली:

उत्तराखंड के शहर कोटद्वार से मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में रोहनदीप सिंह बिष्ट एक सफ़ल फ़िल्म और टीवी निर्माता के साथ ही फ़िल्म वितरक बनकर उभरे हैं. रोहनदीप ने हिंदी फ़िल्मों के साथ-साथ हॉलीवुड स्टूडियोज़ और मराठी फ़िल्मों में भी फ़िल्म मार्केटिंग और वितरण के नए मानदंड स्थापित किये हैं. एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे रोहनदीप सिंह को आज भी अपने शहर कोटद्वार से बहुत प्यार है. फ़िल्म इंडस्ट्री की व्यस्त दिनचर्या के बाद उन्हें अपने पैतृक शहर में ही सुकून मिलता है. मुंबई में फ़िल्मी हलचल के वयस्तम हिस्से अंधेरी पश्चिम के अपने आफ़िस में रोहनदीप सिंह अपने अब तक के सफ़र पर आत्मविश्वास के साथ बात करते हुए भावुक भी हो जाते हैं.

एक इंजीनियर मास्टर्स को बॉलीवुड में क्या करना था ?
मेरा मूल गांव ताड़केश्वर महादेव के पास चौड़ (पौढ़ी गढ़वाल) है. मेरे दादा स्वर्गीय पान सिंह बिष्ट गांव में अपने समय के सबसे ज़्यादा पढ़े लिखे और विद्वान व्यक्ति थे. मुझे अपने दादा से बहुत प्यार मिलता था. आज भी उनकी यादें मेरे साथ हैं। मेरे पिता युधवीर सिंह बिष्ट और मां माहेश्वरी देवी मुझे हमेशा उच्च संस्कार और पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा देते रहे हैं. सिनेमा के लिए आकर्षण तो बचपन से मेरे अंदर था. हमारे कोटद्वार में गढ़वाल टाकीज़ और दीप टाकीज़ दो सिनेमाघर थे. पर्दे पर हीरो-हिरोइन देखने के लिए लोग कितनी दूर-दूर से आते हैं, मन में सोचता था कि जब यह फ़िल्में बनती होंगी तो कितना अच्छा लगता होगा. लोग बहुत खुश होते होंगे जो बॉलीवुड में काम करते हैं. परिवार में शिक्षा की प्राथमिकता सबसे पहले थी मेरा छोटा भाई हिमांशु बिष्ट कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियर हैं और बड़ी बहन सुनीता रावत भी मास्टर इन बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) किया है. मैंने भी पहले घर वालों की बात मानकर पढ़ाई पूरी करने का निर्णय लिया। कोटद्वार के महर्षि विद्या मंदिर पब्लिक स्कूल से हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद टीसीजी स्कूल में इंटरमिडीएट की शिक्षा पूरी की. फिर इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए हरियाणा चला गया. जेसीडी कालेज सिरसा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की, इस बीच मैंने घर वालों से शुरू में ही कह दिया था कि मुझे फ़िल्म लाइन में कुछ करना है.

बॉलीवुड के सपनों की शुरुआत कैसे हुई?
लेखन के साथ ही मेरी फ़िल्म मार्केटिंग के अन्य पहलुओं जैसे वितरण, प्रमोशन में शुरू से रुचि थी लेकिन मैं पहले ख़ुद को स्थापित करना चाहता था. मेरे पिता मेरे बॉलीवुड करियर को लेकर बहुत आशान्वित नहीं थे इसलिए वह मुझे इसके लिए बहुत प्रोत्साहित नहीं करते थे. मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं पुणे स्थित एंडुरेंस कम्पनी, (बजाज ऑटोमोबाइल समूह) में काम करने लगा. मशीनो में मेरी विशेष रुचि नहीं थी तो थोड़े ही समय में मैंने नौकरी को छोड़ दिया. इसके बाद मैं मुंबई में फ़िल्म वितरण के बिज़नेस से जुड़ गया. जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेहनत, चुनौतियों और संघर्ष का दौर यहां से शुरू होता है. एक क्रिएटिव व्यक्ति को बाज़ार के घाटे-मुनाफ़े के गणित में भी कुछ नया करना था. इस बीच कई फ़िल्म वितरण और फ़िल्म बिज़नेस कम्पनियों से मिला.

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मुश्किल लेकिन सबक़ सिखाने वाला समय -
यह एक ऐसा समय था जब मुझे थोड़े मीठे और बहुत कड़वे अनुभवों से गुज़रना पड़ा. कई फ़िल्में व्यवसायिक असफ़ल हुईं तो कई फ़िल्मों के व्यापार में पारम्परिक वितरण के नुक़सान ने बिज़नेस के नए सबक़ दिए. मुश्किल के समय में इस शहर ने सबसे बड़ा सबक़ दिया कि यहां किसी के लिए किसी के पास टाईम नहीं है. कोई भी किसी के लिए बिना स्वार्थ कुछ भी नहीं करता है और अपना फ़ायदा सबसे पहले तय किया जाता है. फ़िल्म इंडस्ट्री में विश्वास और परम्परा जैसे शब्द भी बहुत मायने नहीं रखते जिसका सिक्का चल रहा है, सब उसकी जय बोलते हैं. मुंबई और बॉलीवुड में सिर्फ़ उगते सूरज को सलाम किया जाता है. उन दिनों ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा सबक़ था। निराशा भरे उन दिनों में, मैं एक बार फिर दिल्ली चला गया.

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मुंबई बॉलीवुड के सपनों का अकेला ठिकाना 
फ़िल्म के सपनों को पूरा करने के लिए वापस मुंबई आना ही पड़ता है लेकिन मेरे लिए यह आसान नहीं था. कोटद्वार से मुंबई वाया दिल्ली की योजना काम में नहीं आयी. दिल्ली में साल भर से अधिक समय तक कई फ़िल्मों के वितरण से जुड़ा रहा लेकिन ऐसा लगता था बहुत कुछ करने के लिए नहीं है. अब घर वालों को मुंबई के लिए फिर से तैयार किया. फ़िल्म वितरण के अनुभव को इस बार मैंने बाज़ार के प्रोफ़ेशनल नियम के साथ जोड़ दिया. यहां प्रोफ़ेशनल का मतलब है कि आपको प्रोड्यूसर की फ़िल्म के मन की करनी है और उससे ज़रूरी है सिनेमाहाल में फ़िल्म को रिलीज़ करना. यह जानते हुए कि फ़िल्म के बॉक्स आफ़िस पर चमकने के चांसेज़ कम हैं फिर भी प्रमोशन और वितरण के लिए भारी बजट खर्चा किया जाएगा. मुझे पहली सफलता इंडिपेंडेट डिस्ट्रीब्यूशन करके फ़िल्म 'खाप' से मिली, उसके बाद फ़िल्मों के सफल वितरण का सिलसिला चल पड़ा. अब मैं एक परफ़ेक्ट प्रक्टिकल आदमी बन गया था जिसे फ़िल्म वितरण में पैसा कैसे बनाया जाता है इसकी चाबी मिल गयी थी. अपनी वितरण कंपनी ‘जम्पिंग टोमेटो प्राइवेट लिमिटेड' द्वारा कई हॉलीवुड और बॉलीवुड फ़िल्मों जैसे, खाप, बम्बू, लिसेन अमाया, राजधानी एक्सप्रेस, शॉर्टकट रोमियो, व्हाट द फिश, टॉयलेट एक प्रेम कथा, डेथ विश, गॉडज़िला 2, नोटबुक, ट्रॉय, जुमांजी, फ़ाइनल एक्ज़िट का वितरण किया. मैं मराठी सिनेमा के कंटेंट से बहुत प्रभावित हुआ और अपने बैनर तले वॉट्सअप लव, बेरीज वजाबाकी, डॉम, मिस यु मिस, पीटर और ओह माय घोस्ट जैसी फ़िल्मों का निर्माण और डिट्रिब्यूशन किया. फ़िल्मों के मार्केटिंग और वितरण में कुछ ऐसी फ़िल्में भी आती थीं जिनका ट्रेलर देखकर ही फ़िल्म के कमज़ोर और असफल होने का अंदाज़ा हो जाता था, ऐसी फ़िल्मों से मुझे बहुत शिकायत रहती थी. लेकिन इन्हीं फ़िल्मों से अच्छी फ़िल्म बनाने की प्रेरणा मिली और प्रोडक्शन की शुरुआत हुई.

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फ़िल्म प्रोडक्शन को कैसे देखते हैं आप?
सह-निर्माता के तौर पर मैंने हिंदी फ़िल्म 'शॉर्टकट रोमियों' का निर्माण भी किया। प्रोडक्शन, डिस्ट्रीब्यूशन और प्रेज़ेंटर के तौर पर मेरी फ़िल्म 'थोड़ी थोड़ी-सी मनमानियां' को उत्तराखंड सरकार ने टैक्स फ़्री किया. बतौर सह-निर्माता मैंने लोकप्रिय टेलीविज़न शो 'हिटलर दीदी' का निर्माण भी किया. यह एक अच्छा अनुभव रहा. इस साल प्रोडक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन दोनों पर तेज़ी से काम चल रहा है. फ़िल्म और टीवी शोज़ के साथ ही वेब सीरिज़ के लिये हमारी टीम आज के दर्शकों को ध्यान में रखते हुए कंटेंट बना रही है. एक अच्छे कंटेंट को ही दर्शकों का प्यार मिलता है, फिर मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. दो बड़ी मराठी फ़िल्में ‘पीटर' और ‘ओह माय घोस्ट' की सफल रिलीज़ के बाद हम अब और उम्दा फ़िल्मों की घोषणा जल्द ही करने वाले हैं.

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बतौर लेखक एक ऐसा पहलू जिसके बारे में कम बात करते हैं -
लोग रोहनदीप सिंह को उनके सिनेमा के व्यवसाय से जानते हैं, लेकिन मेरा एक भावनात्मक और स्थापित लेखक का रचनात्मक पक्ष भी है. 2015 में मेरे पहले उपन्यास ‘स्टिल वेटिंग फॉर यू' को बहुत सराहा गया था. इन दिनों मैं ‘मजनू मस्ताना' नामक अपने दूसरे उपन्यास को प्रकाशित करने की योजना पर कार्य कर रहा हूं. संभवतः अगस्त 2021 में यह प्रकाशित होगी.

मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट 100 डेज़ इन हेवन -
आजकल रोहनदीप सिंह अपने नए टेलीविज़न शो ‘हण्ड्रेड डेज़ इन हेवन' नए रियलिटी शो के साथ खबरों में हैं. यह एडवेंचरस शो उत्तराखंड के प्राकृतिक सुन्दर स्थानों पर फ़िल्माया जाएगा. शो की मुंबई शेड्यूल की शूटिंग पहले ही पूरी हो चुकी है और अब बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में शूट किया जायेगा.

अपने नए शो और आगामी योजनाओं में बारे में रोहनदीप सिंह बताते हैं कि उत्तराखंड में फ़िल्माया जाने वाला भव्य टीवी शो ‘100 ड़ेज इन हेवन' में भारत के साथ ही विश्व के सबसे बड़े माउंटिनियर फ़ीचर होंगे. ‘100 डेज़ इन हेवन' शो अवधेश भट्ट का सपना है. इस साल ओटीटी के लिए भी दो बड़ी वेब सीरिज़ का निर्माण किया जा रहा है. स्टोरी अप्रुवल के बाद अब वेब सीरिज़ के लिए कास्टिंग शुरू हो गयी है. हमने इसके लिए ज़ी नेटवर्क के साथ अनुबंध साइन किया है. उत्तराखंड सरकार भी इस शो में जुड़ी है. इस शो का मूल आयडिया मेरे बिज़नेस पार्टनर और माउंटेनियर (पर्वतारोही) अवधेश भट्ट का है. हम सब इस शो को अंतर्राष्ट्रीय स्टैंडर्ड का बनाने वाले हैं. दुनिया के टेलिविज़न इतिहास में ‘100 डेज़ इन हेवेन' अब तक का सबसे बड़ा माउंटेन एडवेंचर बेस्ड शो होगा.

बॉलीवुड में नए आने वालों युवाओं के लिए संदेश -
मायानगरी मुंबई और बॉलीवुड में सफलता रातों रात मिलती है - बस यही फ़ार्मूले की वजह से सबसे बड़ी भूल हो जाती है. रातों रात सफलता एक झूठ है. आपकी सफलता के लिए धर्य चाहिए. प्रतिभा को मेहनत और धैर्य की ज़रूरत होती है. आप छोटे या बड़े शहर से आए हैं. इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, सबसे ज़रूरी है कि फ़िल्म इंडस्ट्री में आने के बाद भी अपने पारिवारिक मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए. आपके माता-पिता की शिक्षा और आपके संस्कार, मुश्किल और संघर्ष के समय में आपकी सबसे बड़ी ताक़त होते हैं.

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