आखिर हर बार मॉनसून में क्यों डूबने लगती है मुंबई, जरा वजह जानिए

भले ही ये मौसम लोगों को इंस्टाग्राम स्टोरीज पर रोमांटिक और खुशनुमा दिखाई देता है लेकिन कई लोगों के लिए ये बारिश मजा नहीं बल्कि मुसीबत बन जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि मुंबई के कई इलाकों में तेज बारिश के कारण जलभराव हो जाता है

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मुंबई:

महाराष्ट्र में मॉनसून दस्तक दे चुका है. कई हिस्सों में जमकर बारिश हो रही है. मुंबई में भी रविवार रात से बारिश का कहर जारी है. सोमवार को मॉनसून मुंबई पहुंचा. 107 साल में पहली बार मुंबई में मॉनसून इतनी जल्दी पहुंचा है. 16 दिन पहले इसने मायानगरी में दस्तक दी. मौसम विभाग के मुताबिक मुंबई में 11 जून तक मॉनसून पहुंचने वाला था, लेकिन यह 26 मई को ही पहुंच गया है.

भले ही ये मौसम लोगों को इंस्टाग्राम स्टोरीज पर रोमांटिक और खुशनुमा दिखाई देता है लेकिन कई लोगों के लिए ये बारिश मजा नहीं बल्कि मुसीबत बन जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि मुंबई के कई इलाकों में तेज बारिश के कारण जलभराव हो जाता है और इस वजह से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. इतना ही नहीं कई बार तो कुछ लोगों की बारिश के कारण मौत की दिल दलहा देने वाली कहानियां भी सामने आती हैं. लेकिन ऐसे क्या कारण है कि हर साल मॉनसून के मौसम में मुंबई पानी में डूब जाता है? यहां हम आपको वो पांच कारण बताने वाले हैं जो इसके पीछे अहम भूमिका निभाते हैं. 

यह सोमवार दोपहर मुंबई के बायकुला का नजारा है. 16 दिन पहले ही मायानगरी पहुंचे मॉनसून ने सड़कों को दरिया में बदल दिया.

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भूगोल: इसका क्या मतलब है

मुंबई तटीय शहर है. यहां कई निचले, तो कुछ ऊंचे इलाके हैं. मुंबई दरअसल सात द्वीपों को पाटकर बनाया गया था. मुंबई की जमीन तश्तरी के आकार की है. इसका मतलब यह हुआ कि भारी बारिश होने पर इन इलाकों से स्वाभाविक रूप से पानी भर जाता है. यह पानी पूरी तरह से निकल भी जाता है, लेकिन केवल बारिश के रुकने के बाद ही. इन इलाकों में सायन, अंधेरी सबवे, मिलन सबवे, खार सबवे शामिल हैं, जो भारी बारिश होने के कुछ देर बाद तक भी पानी में डूबे रहते हैं. 

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ज्वार-भाटा: समुद्र के उतार-चढ़ाव

मुंबई में भारी बारिश का पानी समुद्र में ही जाकर मिलता है. ऐसे में जब उच्च ज्वार होता है तो समुद्र का स्तर भी बढ़ जाता है और इस वजह से नालियों के गेट बंद कर दिए जाते हैं, ताकि समुद्र का पानी शहर की जल निकासी प्रणाली में न जा सके. इससे भी बदतर, उच्च ज्वार और भारी बारिश का मतलब है कि जल निकासी पंपों का उपयोग करके ही निकाला जा सकता है. ज्वार कम होने के बाद जल निकासी प्रणाली फिर से काम करना शुरू कर देती है लेकिन इसमें छह घंटे तक का समय लग सकता है.

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रिसकर पानी जमीन में चला जाता है

दुनिया भर के ज़्यादातर शहरों में कम से कम आधा पानी जमीन में रिसकर चला जाता है. हालांकि, मुंबई में, 90 प्रतिशत बारिश का पानी की नालियों के जरिए बाहर निकाला जाता है. इससे जल निकासी व्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है.

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मौसम का मिजाज - भारी और असामान्य

जल निकासी व्यवस्था मॉनसून के समान रूप से फैलने के लिए बनाई जाती है, लेकिन हाल ही के सालों में, मुंबई में कुछ बहुत भारी बारिश हुई है, उसके बाद सूखा पड़ा है और फिर बहुत भारी बारिश हुई है. ऐसे में असामान्य रूप से भारी बारिश के दिनों में, बढ़ी हुई क्षमता वाले नाले भी वास्तव में पानी का बहाव नहीं रोक पाते हैं.

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