मध्य प्रदेश में CM शिवराज सिंह चौहान ने 1 साल के भीतर 1 लाख सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया

ये और बात है कि मध्य प्रदेश में बेरोजगारों से करोड़ों की कमाई हो रही है, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है, चाहे प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड हो या पीएएससी. परीक्षा फीस के नाम पर बेरोजगारों से करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है, लेकिन ना तो उन्हें नौकरी मिल रही है ना ही परीक्षाएं हो रही हैं, हो जाने पर रिजल्ट वक्त पर नहीं आ रहा है.

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शिवराज सिंह चौहान ने 1 साल में 1 लाख नौकरियां देने की घोषणा की...

लगभग 20 साल सत्ता में रहने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से राज्य में 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि इसके साथ ही 20 लाख लोगों को रोजगार देंगे. कुछ ऐसा ही वायदा मध्य प्रदेश में बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है, यहां भी लगभग 20 साल से सत्ता की कमान उनके हाथों में हैं, फिर भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शिवराज ने कहा कि मध्यप्रदेश के युवाओं के सामने अपना एक और संकल्प व्यक्त करता हूं. मेरे बेटे-बेटियों को रोजगार बड़ी समस्या है. हमने फैसला किया है एक साल के अंदर एक लाख सरकारी पदों पर भर्तियां की जाएंगी.

ये और बात है कि मध्य प्रदेश में बेरोजगारों से करोड़ों की कमाई हो रही है, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है, चाहे प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड हो या पीएएससी. परीक्षा फीस के नाम पर बेरोजगारों से करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है, लेकिन ना तो उन्हें नौकरी मिल रही है ना ही परीक्षाएं हो रही हैं, हो जाने पर रिजल्ट वक्त पर नहीं आ रहा है. सरकार कह रही है कि तकनीक के दौर में सारे सरकारी पद भरे जाने जरूरी नहीं हैं.

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कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश राज्य सेवा आयोग के बाहर हजारों छात्रों ने तिरंगा लेकर प्रदर्शन किया था. नाराजगी की वजह जायज हैं, पिछले 4 साल में पीएएसी ने 68.46 करोड़ खर्चे हैं. उम्मीदवारों से 28 करोड़ वसूले हैं. 1400 पदों के लिए 7.54 लाख उम्मीदवारों ने फॉर्म भरे हैं. 10 परीक्षा आयोजित कीं, लेकिन चार साल बाद भी एक भी नौकरी नहीं दे पाया है, जिससे प्रशासनिक ढांचा भी चरमरा गया है. क्लास-1, क्लास-2 के 40 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं. तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के लगभग 50 फीसदी पद खाली हैं. राज्य प्रशासनिक में डिप्टी कलेक्टर 873 में 400 पद खाली हैं. डीएसपी के 1007 में 337 पद खाली हैं. 1.50 लाख से ज्यादा तो सरकारी नौकरियां ही खाली हैं. 

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प्रदर्शन कर रहे एक छात्र ने हमें बताया कि हर साल 15-20 लाख विद्यार्थी पास होकर निकल रहे हैं, लेकिन पिछले 5 साल से कोई नियुक्ति नहीं हुई हैं. वहीं 2019 में एमपीपीएससी की लिखित परीक्षा पास कर चुकी एक महिला उम्मीदवार ने गुस्से से कहा कि मैं 5 साल एमपीएससी की तैयारी कर रही हूं. 2019 से इंटरव्यू कॉल है, साढ़े 3 साल से रिजल्ट नहीं आ रहा है, हम बहुत परेशान हो रहे हैं, ना पटवारी की परीक्षा हो रही है, ना एसआई की नाम एमपीपीएससी.

सरकार कह रही है कि जरूरी नहीं कि तकनीक के दौर में हर सरकारी पद भरा जाए. कैबिनेट मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि अभी तकनीक का युग है, पहले जिस काम को 100 लोग करते थे वो अब एक कंप्यूटर करता है, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. अभी है अभी हमें न्यू टेक्नोलॉजी का अधिकतम उपयोग करना पड़ेगा और दूसरा ये करना पड़ेगा कि सरकार की पॉलिसी ऐसी हो कि निजी क्षेत्र में अधिकतर रोजगार मिले, निजी क्षेत्र में ज्यादार कारखाने खुलें. लोग भी अपना रोजगार स्थापित कर सकें, ऐसी संरचना बने.

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 परीक्षा नहीं हो रही, नौकरी नहीं मिल रही लेकिन पैसे वसूलने में सरकार पीछे नहीं है, कुछ महीने पहले सरकार ने विधानसभा में बताया था कि बेरोज़गार युवकों की भर्ती परीक्षा पर कर्मचारी चयन आयोग ने पिछले 10 सालों में 1046 करोड़ की फीस वसूली है, जबकि खर्च किए हैं मात्र 502 करोड़. यानी बेरोज़गारों से 544 करोड़ रु. की कमाई.  बीजेपी ने अपने दृष्टि पत्र में हर साल 10 लाख नौकरियों का वायदा किया था वो तो छोड़िये,रजिस्टर्ड बेरोजगार ही 10 लाख से ज्यादा बढ़ गये हैं, पटवारी,टीचर,पीएसी उम्मीदवार सब नौकरी की बाट जोह रही है. परीक्षा के नाम पर बस ऐसे दफ्तर उम्मीदवार से पैसे बटोर कर चमक रहे हैं, और सरकारें वायदा कर रही हैं.

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