कोविड संक्रमण के दौरान बंद किए गए दिव्यांगों के होस्टल अब तक नहीं खुले, कर्मचारियों को वेतन नहीं

मध्य प्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग दिव्यांग बच्चों के लिए छात्रावास संचालित करता है, स्कूल, कॉलेज तो खुल गए लेकिन इन बच्चों के छात्रावास आज भी बंद

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भोपाल:

मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग दिव्यांग बच्चों के लिए छात्रावास संचालित करता है, जिसे किसी भी और हॉस्टल की तरह कोविड-19 के दौरान बंद कर दिया गया था. फर्क सिर्फ इतना है कि बाकी के स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल तो खुल गए लेकिन इन बच्चों के छात्रावास आज भी बंद हैं जिससे ना सिर्फ बच्चों की पढ़ाई बंद है बल्कि वहां काम करने वाले कर्मचारी भी बेरोजगारी और भुखमरी के संकट से गुजर रहे हैं.

छतरपुर में रहने वाली मेधा तीसरी में पढ़ती है, बोल, सुन नहीं सकती. कोरोना में स्कूल-हॉस्टल बंद बंद है. अब पढ़ाई छूट रही है. पिता किशोर कुमार ने कहा कोरोना में बच्ची घर में रह रही है, पढ़ना-लिखना सब बंद हो गया.

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रीवा में दिव्यांगों के छात्रावास में दीवार पर खाने का मेनू दिख जाएगा, बच्चे या कर्मचारी नहीं. यहां के परियोजना समन्वयक संजय सक्सेना ने कहा कोरोना से पहले एनजीओ छात्रावास चलाता था ... बंद कर दिया, अब नए सत्र में प्रयास है कि शासन स्तर पर स्वंय चलाएं.
     
शहडोल में दिव्यांगों के छात्रावास में  6 से 14 साल के 50 दिव्यांग बच्चे रहते थे, अब यह बंद है. मदन त्रिपाठी जो जिला शिक्षा केन्द्र में परियोजना समन्वयक हैं, का कहना है हमने बच्चों को चिन्हित कर लिया था, कोविड की वजह से ये बंद था लेकिन अब स्कूली सत्र शुरू होने पर खुलेगा.
      
मुरैना के अशोक प्रजापति राजस्थान के बाड़ी में रहते थे, बेटा बोल, सुन नहीं सकता. 7वीं में पढ़ता था छात्रावास बंद है, सो पढ़ाई पर असर पड़ा. मजदूर मां-बाप बेबस हैं. वे कहते हैं 2 साल से हॉस्टल बंद है, पढ़ाई नहीं हो पा रही है. एक व्यक्ति को रहना पड़ता है देखभाल के लिए. 

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इरफान ट्रक चलाते हैं, दोनों बच्चे बोल, सुन नहीं सकते... बेटे सलमान की पढ़ाई लगभग पूरी बंद है... छात्रावास बंद होने से सब परेशान हैं. मुरैना के ही भरत सिंह यादव किसान हैं, चार बच्च हैं एक बेटा बोल सुन नहीं सकता...सातवीं के बाद से छात्रावास बंद तो पढ़ाई भी लगभग बंद सी हो गई.

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पूरे कटनी जिले में दिव्यांग बच्चों के लिए एक मात्र छात्रावास है ... बंद पड़ा है... आठ कर्मचारी यहां काम करते थे, सब भुखमरी के कगार पर हैं. यहां कार्यरत सुरेश तिवारी कहते हैं, हम लोगों से बोल दिया गया कि घर जाओ, कोविड के बाद ना पेमेंट आया, ना कोई आदेश आया, भरण-पोषण कैसे करें परिवार का, समझ नहीं पा रहे हैं. 

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बालाघाट में दिव्यांगों के छात्रावास में आज भी बच्चे नहीं, वैक्सीन लगाने स्वास्थ्यकर्मी बैठे हैं. दरअसल ये बच्चे जब छात्रावास में रहते थे तो उन्हें भोजन कपड़े और दूसरी चीजें सरकार की तरफ से मिलती थीं लेकिन अब वहां ताला जड़ा है तो वे उपेक्षित हो रहे हैं.

पूरे राज्य में ऐसे 60 छात्रावास संचालित हैं, जिनमें लगभग 300 कर्मचारी काम करते थे और 4500 दिव्यांग बच्चे इस योजना का लाभ ले रहे थे.
      
सरकार ने कहा था कोविड-19 में चाहे दैनिक वेतन भोगी हों या मजदूर किसी की तनख्वाह नहीं रोकी जाएगी, लोगों से भी उन्होंने यही गुजारिश की थी... लेकिन दिव्यांगों के छात्रावास में कार्यरत कर्मचारियों के मात्र 7000 के वेतन का भी दो सालों से भुगतान नहीं हुआ और उन्हें दुबारा नौकरी पर बुलाया भी नहीं गया. यानी सरकार इन दिव्यांग बच्चों और कर्मचारियों के लिए अपनी ही बातें भूल गई.

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