मध्‍य प्रदेश में 'अजीब खेल', श्रमिक कल्‍याण फंड के करोड़ों रु. बिजली विभाग को 'डायवर्ट', मंत्रीजी दे रहे यह तर्क...

श्रम विभाग का तर्क है कि संबल योजना में पंजीकृत 3 लाख मजदूरों को 100 रुपए में बिजली मिलती है इसलिये ये पैसा दिया गया है.

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भोपाल:

Madhya Pradesh: सरकारी नारों में मज़दूर किसानों की खूब बातें होती हैं लेकिन हकीकत में इनके नाम पर बड़े-बड़े खेल हो जाते हैं और नियम-कायदे-कानून सबको ताक पर रख दिया जाता है. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh)में श्रमिकों के कल्याण के लिये बने फंड के करोड़ों रुपये बिजली विभाग को डायवर्ट कर दिये गये है. तर्क ये दिया जा रहा है कि ये खर्च श्रमिकों को राहत देने के लिये भी किया गया. राज्‍य में बिल्डिंग निर्माण में जुटे श्रमिकों के कल्याण के 416.33 करोड़ रुपए ऊर्जा विभाग के सब्सिडी खाते में डाल दिये गए हैं. दरअसल, राज्य में जितने भी सरकारी या निजी भवन बनते हैं उसकी लागत का एक फीसद संनिर्माण कर्मकार बोर्ड को जाता है. इससे श्रमिकों के लिये करीब 19 योजनाएं चलती हैं जैसे पंजीबद्ध निर्माण श्रमिक के पुत्र/पुत्री/पत्नी नियमित अध्यनरत हों, ता उनको कक्षा 1 से स्नातकोत्तर एवं शोध कार्य करने हेतु रुपये 500/- से 10,000/- तक की राशि का हितलाभ प्राप्त करने की पात्रता है.

योजना के अंतर्गत सामान्य मृत्यु होने पर आयु 45 वर्ष या उससे कम होने पर रु. 75 हजार, आयु 45 वर्ष से अधिक होने पर रु. 25 हजार, दुर्घटना में मृत्यु होने पर रु. 1 लाख की सहायता राशि देय है. निर्माण कार्य के दौरान दुर्घटना मे मृत्यु की दशा में 200000/- राशि देय है. मौत होने पर 5000/- की तात्कालिक अन्त्येष्टि सहायता भी देय है.पंजीबद्ध निर्माण श्रमिकों को राज्य शासन की जननी सुरक्षा योजना, दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना, राज्य/जिला बीमारी सहायता निधि, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले पंजीबद्ध असंगठित निर्माण श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना, शासन के अन्य कोई जीवन बीमा, स्वास्थ्य सहायता योजना जिसमे पंजीबद्ध निर्माण श्रमिकों की पात्रता आती हो, लाभ प्राप्त होते हैं! इन योजनाओं के प्रावधान अनुसार संबन्धित विभाग द्वारा देय लाभ प्राप्त न होने की दशा मे मण्डल द्वारा समकक्ष इस योजना का लाभ अधिकतम तीन प्रसूति तक देय है. 45 दिन का न्यूनतन वेतन पंजीकृत महिला श्रमिकों हेतु, तथा 1400 रू. पोषण भत्ता ग्रामीण क्षेत्र हेतु एवं 1000 रू. शहरी क्षेत्र के लिये तथा 15 दिन का न्यूनतम वेतन पंजीकृत पुरुष श्रमिक हेतु देय है.

ऐसी कई योजनाएं इस फंड से चलती हैं, लेकिन भोपाल के नेहरू नगर में एक निर्माणाधीन परियोजना में मिस्त्री का काम करने वाले प्रकाश चौरे को इसकी जानकारी ही नहीं है. 16 साल से प्रकाश कार्यरत है, 5 लोगों के परिवार में रोज़ाना 500 रु. कमाते हैं, ऐसे ही श्रमिकों के श्रम सुरक्षा और कल्याण के नाम पर मध्यप्रदेश भवन और संनिर्माण कर्मकार बोर्ड बना है, इनकी मेहनत से निकले पसीने का एक फीसद यहां जमा होता है लेकिन वो कहते हैं "मुझे जानकारी ही नहीं है, रहती भी तो अपने को कौन पूछता काम बड़ी मुश्किल से मिलता है हफ्ते में ज्यादा से ज्यादा 4 दिन ... कोई दुर्घटना हो गई किसी को मिलता है किसी को मिलता भी नहीं है."

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रहमान जैसे कई श्रमिक हैं लोहे का काम करते हैं, इन्हें भी नहीं पता कि वेलफेयर बोर्ड में कितनी राशि थी और गई तो कैसे "मजदूर के लिये है तो मजदूरों को मिलना था कभी मिला ही नहीं." वहीं मानसिंह कहते हैं "हम लोगों को जानकारी ही नहीं है कोई बताता भी नहीं कि आप लोगों का पैसा है, ये गलत है कि हमारे कल्याण का पैसा कहीं और दे दो".

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हालांकि श्रम विभाग का तर्क है कि संबल योजना में पंजीकृत 3 लाख मजदूरों को 100 रुपए में बिजली मिलती है इसलिये ये पैसा दिया गया है. दरअसल ऊर्जा विभाग हर साल अलग-अलग मदों में 21000 करोड़ रु. की सब्सिडी देता है, सूत्रों के मुताबिक बिजली विभाग ने सब्सिडी के लिये नोटशीट लिखी थी जिसके बाद तीन सालों का पैसा दिया गया.ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने पहले पैसे मिलने से इंकार किया फिर कहा-दिया भी तो गलत नहीं है, हम किसी विषम परिस्थिति में दे भी सकते हैं और निजात पा सकते हैं. हालांकि नियमों के मुताबिक बोर्ड के फंड का उपयोग केवल श्रमिकों के कल्याण के लिये चलाई गई योजनाओं में हो सकता है, योजनाओं पर व्यय की गई राशि सिर्फ 5 % प्रशासनिक कामों के मद में खर्च हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट के भी इस मामले में निर्देश स्पष्ट हैं. लेकिन सरकार कह रही सब नियमों के तहत ही हुआ उनके वेलफेयर में कोई कमी नहीं है. कैबिनेट के प्रवक्ता और गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने कहा "उनके वेलफेयर में तो कोई कमी नहीं है न जहां जरूरत है साधन मुहैया करा रहे हैं, पैसा रखा होगा तो इस्तेमाल कर लिया क्या दिक्कत है," जब एनडीटीवी ने कहा कानूनन ऐसा नहीं किया जा सकता तो उनका कहना था "जो किया कानून के तहत ही, ये शिवराज सिंह की सरकार है."

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि उपकर के रूप में प्राप्त राशि केवल और केवल श्रमिकों के हितार्थ जो बोर्ड योजनाएं चला रहा है उस पर ही खर्च की जा सकती है यह राशि ना किसी विभाग को डायवर्ट की जाएगी और ना ही बिना अधिनियम के प्रावधान के विपरीत व्यय की जाएगी. सरकार ने गरीबों के लिये 100 रुपए में सौ यूनिट बिजली की स्कीम का खूब ढिंढोरा पीटा ये योजना सभी के लिए एक जैसी थी.फिर सवाल ये उठता है कि श्रमिकों के कल्याण का पैसा सब्सिडी में क्यों दिया गया वो भी सारे नियमों को ताक पर रखकर क्या सिर्फ इसलिये कि ये गरीब मजदूर हैं और ये किसी बाबू से तनकर सीधा सवाल नहीं पूछ सकते.

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