मध्यप्रदेश में कफ सिरप पीने से 23 बच्चों की मौत की खबर ने देश को झकझोर कर रख दिया था. वहीं इससे पहले 18 दिसंबर, 2024 को मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश की गई CAG की अहम रिपोर्ट में छिंदवाड़ा जिले की दवा दुकानों के मिस मैनेजमेंट को उजागर किया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2018-22 के दौरान छिंदवाड़ा आयुर्विज्ञान संस्थान (CIMS) में एक बार भी स्टोर का फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं किया गया था.
CAG रिपोर्ट की अहम बातें
मध्य प्रदेश भंडार क्रय एवं सेवा उपार्जन नियम 2015 के अनुसार, सभी भंडारों का भौतिक सत्यापन वर्ष में एक बार किया जाना चाहिए. लेखापरीक्षा में पाया गया कि हमीदिया अस्पताल, भोपाल के सुल्तानिया जनाना अस्पताल और सिम्स छिंदवाड़ा में औषधि भंडार का भौतिक सत्यापन 2018-22 के दौरान नहीं किया गया.
दवाईयों की मिली कमी
हमीदिया अस्पताल, भोपाल, जेएएच, ग्वालियर और छिंदवाड़ा आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स), छिंदवाड़ा में 2017-18 से 2021-22 के दौरान 108.11 लाख रुपये की लागत वाली 263 प्रकार की दवाएं खत्म हो गईं. यह अस्पताल अधीक्षकों द्वारा दवाओं और उपभोग्य सामग्रियों के स्टॉक के उचित प्रबंधन के अभाव को दर्शाता है.
तापमान चार्ट के रखरखाव का रजिस्टर नहीं था मौजूद
लोक निर्माण विभाग द्वारा घोषित (अप्रैल 2015) के अनुसार, जेएएच ग्वालियर का केंद्रीय भंडार 100 वर्ष से भी अधिक पुराना और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था. नमूना-जाँच की गई इकाइयों में से किसी भी फार्मेसी में लेबल लगे शेल्फ/रैक, शीत भंडारण क्षेत्र का 24 घंटे तापमान रिकॉर्ड, डीप फ्रीजर के तापमान चार्ट के रखरखाव का रजिस्टर आदि नहीं था.
स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की कमी
भारतीय लोक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) दिशानिर्देशों के अनुसार 182 पदों को स्वीकृत नहीं किए जाने के कारण स्वास्थ्य संस्थानों (एचआई) में 22,845 स्वास्थ्य कर्मियों की कमी देखी गई. इसके अलावा, स्वीकृत पदों के मुकाबले, 1,775 स्वास्थ्य केंद्रों में 11,535 स्वास्थ्य कर्मी कम तैनात थे.
डॉक्टरों/विशेषज्ञों की मिली कमी
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की सबसे अधिक कमी थी. मध्य प्रदेश सरकार ने स्वीकृत पदों के अनुसार डॉक्टरों/विशेषज्ञों की तैनाती नहीं की. जिला अस्पतालों (डीएच) में डॉक्टरों की कमी छह से 92 प्रतिशत, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में 19 से 86 प्रतिशत और उप-स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) में 27 से 81 प्रतिशत के बीच थी.
स्वास्थ्य सेवा के सभी संवर्गों में कर्मचारियों की कमी थी, जो मेडिकल कॉलेजों में 27 से 43 प्रतिशत के बीच थी और आयुष विभाग में यह 28 से 59 प्रतिशत के बीच थी.
नर्सिंग कैडर में स्वीकृत पदों के मुकाबले जिला स्वास्थ्य केंद्रों में तीन से 69 प्रतिशत, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में चार से 73 प्रतिशत और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में दो से 51 प्रतिशत तक नर्सों की कमी थी. इसके अलावा, मेडिकल कॉलेजों में 27 प्रतिशत और आयुष विभाग के अंतर्गत आने वाले स्वास्थ्य संस्थानों में 59 प्रतिशत तक नर्सों की कमी थी.