मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए न्यायाधीश की कार जबरन लेने के आरोपियों को जमानत से इनकार

विशेष न्यायाधीश संजय गोयल ने एबीवीपी के ग्वालियर सचिव हिमांशु श्रोत्रिय (22) और उप सचिव सुकृत शर्मा (24) की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि कोई भी व्यक्ति विनम्रता से मदद मांगता है, ताकत से नहीं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
ग्वालियर:

मध्य प्रदेश की एक अदालत ने एक निजी विश्वविद्यालय के बीमार कुलपति को रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की कार से जबरन अस्पताल ले जाने के आरोप में गिरफ्तार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के दो कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार कर दिया है. बुधवार को विशेष न्यायाधीश संजय गोयल ने एबीवीपी के ग्वालियर सचिव हिमांशु श्रोत्रिय (22) और उप सचिव सुकृत शर्मा (24) की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि कोई भी व्यक्ति विनम्रता से मदद मांगता है, ताकत से नहीं.

अतिरिक्त सरकारी अभियोजक सचिन अग्रवाल के अनुसार, श्रोत्रिय और शर्मा को सोमवार को गिरफ्तार किया गया और उन पर डकैती-रोधी कानून समेत प्रासंगिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया. आरोपियों ने ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर चालक से कार की चाबी छीन ली और एक बीमार व्यक्ति (कुलपति) को अस्पताल ले गए.

उन्होंने बताया कि उन दोनों को मंगलवार को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

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पुलिस केस डायरी का हवाला देते हुए न्यायाधीश गोयल ने बुधवार को यह भी कहा कि उस समय तक एक एम्बुलेंस वहां पहुंच चुकी थी. अदालत ने कहा, किसी बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस उपयुक्त वाहन है.

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इस बीच, कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई को ‘‘अन्याय'' बताते हुए एबीवीपी ने कहा कि वह राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेगी.

संगठन के मप्र सचिव संदीप वैष्णव ने कहा कि सोमवार को ट्रेन में एक यात्री की तबीयत बिगड़ गई. ट्रेन में दिल्ली से ग्वालियर यात्रा कर रहे एबीवीपी के लोगों ने इसकी जानकारी ग्वालियर स्टेशन पर संगठन के पदाधिकारियों को दी.

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वैष्णव ने दावा किया कि कार्यकर्ताओं ने बीमार व्यक्ति को ग्वालियर स्टेशन पर उतार दिया लेकिन लगभग 25 मिनट तक उसकी मदद के लिए कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंची.

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उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि चूंकि उस व्यक्ति की हालत बिगड़ रही थी, एबीवीपी कार्यकर्ता उसे स्टेशन के बाहर खड़ी एक कार में अस्पताल ले गए, लेकिन उनकी मौत हो गई.

वैष्णव ने कहा कि अगर वह समय पर अस्पताल पहुंच जाते तो उनकी जान बच सकती थी. बाद में, यह पता चला कि जिस वाहन से बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाया गया वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का था.वैष्णव ने कहा कि उन्होंने एक बीमार आदमी की मदद करने की कोशिश की.

एबीवीपी के वकील भानु प्रताप सिंह चौहान ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि उन्होंने बृहस्पतिवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का रुख किया.

ग्वालियर के इंदरगंज शहर के पुलिस अधीक्षक अशोक जादौन ने बताया कि मृतक यात्री रणजीत सिंह (68) उत्तर प्रदेश के झांसी में एक निजी विश्वविद्यालय के कुलपति थे. 

पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, यात्री की मृत्यु हृदय गति रुकने से हुई. हमने मंगलवार को पोस्टमार्टम के बाद शव उनके परिवार के सदस्यों को सौंप दिया.''

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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