'उद्धव ठाकरे गद्दार है', मातोश्री के सामने मचा गदर

बीएमसी चुनाव 2026 से पहले ‘मातोश्री’ के बाहर बड़ा बवाल. शिवसेना (UBT) में टिकट वितरण को लेकर कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूटा और उद्धव ठाकरे पर ‘गद्दारी’ के आरोप लगे. वार्ड 202 में श्रद्धा जाधव के टिकट पर तीखा विरोध, महिलाओं ने बकाया रकम और उपेक्षा के आरोप भी लगाए. मनसे गठबंधन चर्चाओं के बीच पार्टी में विद्रोह गहराया.

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Uddhav Thackeray Controversy: मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव के बिगुल बजते ही महाराष्ट्र की राजनीति का गढ़ माना जाने वाला 'मातोश्री' एक बार फिर सुर्खियों में है. लेकिन इस बार यह सुर्खियां किसी रणनीतिक बैठक या गठबंधन के लिए नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर उपजे जबरदस्त असंतोष और विद्रोह के लिए हैं.

शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे के निवास स्थान 'मातोश्री' के बाहर मंगलवार को जो दृश्य देखने को मिला, उसने पार्टी के आंतरिक संकट को पूरी तरह उजागर कर दिया है. टिकट वितरण से नाराज शिवसैनिकों ने न केवल हंगामा किया, बल्कि उद्धव ठाकरे पर 'गद्दारी' का आरोप लगाकर सबको हतप्रभ कर दिया.

मुंबई निकाय चुनाव के लिए शिवसेना (UBT) और राज ठाकरे की मनसे (MNS) के बीच गठबंधन की चर्चाओं ने पहले ही माहौल गरमाया हुआ है. बगावत की आशंका को देखते हुए उद्धव ठाकरे ने इस बार उम्मीदवारों को सार्वजनिक रूप से घोषित करने के बजाय, चुपचाप 'मातोश्री' बुलाकर एबी फॉर्म (AB Form) देना शुरू किया था.

सोमवार शाम तक करीब 125 उम्मीदवारों को फॉर्म सौंपे गए थे. पार्टी का मानना था कि इस गोपनीय तरीके से असंतोष को रोका जा सकेगा, लेकिन मंगलवार सुबह होते ही स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई. नाराज कार्यकर्ताओं के जत्थे मातोश्री पहुंचने लगे और विद्रोह का बिगुल फूंक दिया.  

​"क्या हम सिर्फ झंडे लगाने के लिए हैं?"

सबसे तीव्र विरोध वार्ड संख्या 202 को लेकर देखा गया, जहां से पूर्व मेयर श्रद्धा जाधव को फिर से उम्मीदवार बनाया गया है. श्रद्धा जाधव ने अपने बेटे पवन जाधव के लिए टिकट का पुरजोर आग्रह किया था. अंततः उद्धव ठाकरे ने श्रद्धा जाधव के नाम पर मुहर लगा दी, जिससे स्थानीय कार्यकर्ता आगबबूला हो गए. ​करीब 36 साल से पार्टी के लिए समर्पित एक शाखा प्रमुख ने चिल्लाते हुए अपना दर्द बयां किया. 

उन्होंने कहा कि "हम सामान्य शिवसैनिक हैं, दशकों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं. क्या हमारा काम केवल झंडे लगाना ही रह गया है? श्रद्धा जाधव तो अपनी शाखा का बिजली बिल और मेंटेनेंस तक नहीं भरतीं. वह कभी कार्यकर्ताओं के बीच नहीं आतीं. जब सभी सर्वे रिपोर्ट उनके खिलाफ थीं, तो उन्हें फिर से टिकट क्यों दिया गया? अगर परिवार के ही सभी सदस्यों (पति, बेटे, ससुर) को टिकट चाहिए, तो हम जैसे कार्यकर्ताओं का अस्तित्व क्या है?"

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वड़ापाव बेचने वाली महिला का आक्रोश

हंगामे के दौरान एक ऐसा वाकया हुआ जिसने सबको भावुक कर दिया. एक महिला शिवसैनिक ने श्रद्धा जाधव पर गंभीर आर्थिक आरोप लगाते हुए अपना दुखड़ा सुनाया. उसने कहा कि मैं सड़क पर वड़ापाव बेचकर अपना गुजारा करती हूं. 2017 के चुनाव के दौरान श्रद्धा जाधव ने महिलाओं को बांटने के लिए मुझसे साड़ियां ली थीं, जिनका 3 लाख रुपया आज तक नहीं चुकाया. मैंने अपने गहने गिरवी रखकर वो साड़ियां खरीदी थीं. 

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गरीब आदमी का पैसा मारते हुए उन्हें शर्म नहीं आई? दुसरी एक महिला ने कहा कि आज श्रद्धा जाधव को फिर टिकट देकर उद्धव साहब ने हमारे साथ गद्दारी की है. इस महिला कार्यकर्ता ने कहां कि जब कार्यकर्ता धूप में तपकर मेहनत करता है, तभी शिवसेना का उम्मीदवार जीतता है. क्या उद्धव साहब के लिए हम सिर्फ 'चिंदी' (मामूली) बनकर रह गए हैं?

​'गद्दार' शब्द का प्रहार अब खुद पर

शिवसेना में दो फाड़ होने के बाद से उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे लगातार एकनाथ शिंदे गुट को 'गद्दार' कहकर निशाना साधते रहे हैं. लेकिन मंगलवार को पासा पलट गया. खुद को कट्टर शिवसैनिक कहने वाले लोग ही मातोश्री के द्वार पर खड़े होकर कह रहे थे कि उद्धव ठाकरे ने हमारे साथ गद्दारी की है.  

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मुंबई महानगरपालिका चुनाव उद्धव ठाकरे के राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई है. ऐसे में घर के बाहर शुरू हुई यह बगावत पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है. कार्यकर्ताओं का यह सामूहिक आक्रोश दर्शाता है कि टिकटों के वितरण में 'निष्ठा' के बजाय 'रसूख' को प्राथमिकता दी है.

देवेंद्र कोल्हटकर की रिपोर्ट

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