आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने श्रावण मास के मौके पर नागपुर के दीनदयाल नगर स्थित पांडुरंगेश्वर शिव मंदिर में अभिषेक और पूजा के बाद श्रद्धालुओं को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने मराठी में अपने विचार साझा करते हुए जीवन के मूल्यों और शिव के आदर्शों पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया. आरएसएस सरसंघचालक भागवत ने कहा कि कई लोग सोचते हैं कि इतने वर्षों तक मेहनत की, अब अच्छे दिन आए हैं तो हमें भी कुछ मिलना चाहिए. यह सोच शिव वृत्ति नहीं है. शिव का स्वभाव अपने लिए कुछ पाने का नहीं, बल्कि दुनिया के विष को स्वयं स्वीकार करने का है."
उन्होंने कहा कि जीवन में त्याग और सेवा की भावना ही सच्चा आध्यात्मिक मार्ग है. मानव जीवन का एक उन्नत स्वरूप केवल भारतीयों के नेतृत्व में ही स्थापित हो सकता है. उन्होंने इस विचार को भारतीय संस्कृति की विशेषता बताते हुए कहा कि भारत की आध्यात्मिक परंपरा ही विश्व को दिशा देने का जरिया है. श्रावण मास के इस विशेष अवसर पर सरसंघचालक द्वारा दिया गया यह संदेश न केवल धार्मिक संदर्भ में, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. उनके विचारों में स्पष्टता और दृढ़ता साफ झलक रही थी, जो संघ की विचारधारा और भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को दर्शाते हैं.
(एनडीटीवी के लिए संजय तिवारी की रिपोर्ट)