महाराष्ट्र में मीठी नदी की सफाई सिर्फ कागजों पर, BMC पर जांच में सहयोग न करने का आरोप

विपक्ष का सीधा आरोप है कि बीएमसी कुछ बड़ी मछलियों को बचाने में जुटी है और खुद को भ्रष्टाचार से अलग दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही है.

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क्या वाकई मीठी नदी की सफाई सिर्फ कागजों पर हुई थी. BMC ने मीठी नदी पर 65 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया था, लेकिन जिन जगहों पर सफाई का दावा था, वहां गंदगी और कचरा अब भी मौजूद है. इस खुलासे के बाद ईडी और आर्थिक अपराध शाखा ने जांच शुरू की. दस्तावेजों और टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी की आशंका के साथ अब सवाल उठने लगे है कि BMC के इस जांच में सहयोग क्यों नहीं कर रही है और मॉनसून की तैयारी का हवाला देते हुए अपने अधिकारियों को पूछताछ के लिए भी नहीं भेज रही. 

विपक्ष का सीधा आरोप है कि बीएमसी कुछ बड़ी मछलियों को बचाने में जुटी है और खुद को भ्रष्टाचार से अलग दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही है. मीठी नदी की सफाई के नाम पर 65 करोड़ रुपये के तथकथित घोटाला में कागजों में बड़े अक्षरों पर लिखा गया कि लाखों घनमीटर गाद हटाई जा चुकी है, मगर सैटेलाइट तस्वीरों ने पोल खोल दी, जिन इलाकों में सफाई का दावा था, वहां कचरा जस का तस पड़ा है. अब जब ईडी और EOW ने सवाल उठाए तो बीएमसी की हालत पतली होने लगी है.

शिवसेना (UBT) के प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा कि बीएमसी के बड़े-बड़े बाबू हो या महायुति के नेता हो, किसे बचाना चाह रहे हैं आप? कौन-सी बड़ी मछली फंस जाए इसका डर है आपको. जब मीठी नदी घोटाले की जांच हो रही है, आरोपी पकड़े गए हैं तो बीएमसी क्यों नहीं अपने अधिकारियों को पूछताछ के लिए भेज रही है. जब मोदी जी कहते हैं कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा, लेकिन यहां तो पूरा सिस्टम ही भ्रष्ट नजर आ रहा है. जब बीएमसी के पास 8 महीने थे तब उनके द्वारा काम नहीं किया गया और अब जब मॉनसून आ गया है तब इन्हें काम करना है. याद रखना जनता सब देख रही है. मछली फंस गई है इसलिए जाकर EOW और ED के सवालों का जवाब दो.

घोटाले की गूंज सिर्फ राजनीतिक गलियारों तक सीमित नहीं है. RTI कार्यकर्ता अनिल गलगली ने भी BMC के रवैये पर उंगली उठाई है. सवाल पूछा है कि अगर BMC को कोई डर नहीं तो फिर जांच एजेंसियों से सहयोग क्यों नहीं?

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने कहा कि अगर मीठी नदी में घोटाला सामने आया है तो बीएमसी को जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग करना चाहिए. दस्तावेज छिपाना, जानकारी अधूरी देना ये सब इस बात की तरफ इशारा करता है कि कुछ तो गड़बड़ है. जनता को जवाब चाहिए और जवाबदेही जरूरी है.

BMC आयुक्त भूषण गगरानी ने NDTV से बातचीत में सफाई दी है और कहा है कि SIT मीठी नदी से जुड़े दस्तावेज़ के अलावा हमसे दूसरे दस्तावेज़ मांग रही है, हम कैसे दें? बीएमसी से जिन तीन सालों के दस्तावेज़ मांगे गए थे, हम दे चुके हैं. मांगी गई जानकारी और दस्तावेज़ अगर हम नहीं देते तो FIR कैसे होती? हम सहयोग कर रहे हैं. अभी जारी ताजा साल की जानकारी हम कैसे दें. जांच के दायरे से बाहर की जानकारी मांगी जा रही है. FIR में जिन अधिकारियों के नाम हैं, उनके अलावा दूसरे अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है, जिससे मुंबई में नालों की सफाई के मिशन में बाधा आ रही है.

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तो क्या मीठी नदी घोटाले की जांच भी बाकी भ्रष्टाचार के मामलों की तरह कागजों में दबी रह जाएगी और BMC में बैठे आला अफसरों की जवाबदेही तय होगी या फिर एक और सिस्टम की लीपापोती हमारे सामने होगी. घोटाले की हर परत को खोलने में बीएमसी को अड़चन कैसी, क्योंकि सवाल मीठी नदी का नहीं, व्यवस्था की सच्चाई का है.

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