महायुति की 'महा-सुनामी' में साफ हुआ विपक्ष, क्या 15 जनवरी को 'ठाकरे गढ़' में भी होगा बड़ा खेल?

महाराष्‍ट्र में नगर परिषदों और नगर पंचायतों के नतीजों में महायुति ने जबरदस्‍त जीत दर्ज की है. इसके बाद महायुति के हौसले बुलंद है और अब उसकी नजर 15 जनवरी 2026 को होने वाले नगर निगम चुनावों पर है. इन परिणामों ने विपक्ष के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

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  • महाराष्ट्र नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों में महायुति ने 207 निकायों पर कब्जा जमाकर विपक्ष को हराया है.
  • बीजेपी ने 117 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर शहरी वोट शेयर को 11% से बढ़ाकर 30% से ऊपर पहुंचा दिया है.
  • 15 जनवरी को नगर निगम चुनावों में महायुति के संगठनात्मक आधार के कारण MVA की चुनौती बढ़ सकती है.
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मुंबई:

महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार का दिन विरोधियों के लिए किसी “ब्लैक संडे” से कम नहीं रहा. 288 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के नतीजों ने न केवल वर्तमान की तस्वीर साफ कर दी है, बल्कि 15 जनवरी 2026 को होने वाले नगर निगम चुनावों के “महासंग्राम” के लिए खतरे की घंटी भी बजा दी है. इन नतीजों को सत्ताधारी गठबंधन 'महायुति' के लिए एक ट्रेलर माना जा रहा है तो विपक्ष के लिए जमीनी स्तर पर अस्तित्व बचाने की आखिरी चेतावनी भी माना जा रहा है. 288 स्थानीय निकायों के नतीजों ने साफ कर दिया है कि सूबे में फिलहाल महायुति का एकछत्र राज है.

नगर परिषद चुनावों में बीजेपी 117 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. महायुति (बीजेपी, शिंदे शिवसेना, और अजित पवार) ने कुल 207 निकायों पर कब्जा जमाकर विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया है, MVA गठबंधन की सीटें (44) , अकेले शिंदे सेना (53) के नतीजों से भी कम आंकड़ों में सिमट गईं.

Photo Credit: IANS

जीत के पीछे 'लाड़की बहिन योजना': माइनकर

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जयंत माइनकर कहते हैं, “इस जीत के पीछे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे की 'लाड़की बहिन योजना' का जबरदस्त असर दिख रहा है. विधानसभा के बाद निकाय चुनावों में भी महिलाओं ने एकतरफा वोटिंग कर विरोधियों के 'विकास' वाले नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया है.”

मतदान से पहले ही बीजेपी ने दावा किया था कि उनके सौ पार्षद निर्विरोध चुने गए थे. स्थानीय चुनावों में यह महाराष्ट्र के इतिहास में बीजेपी का अब तक का सबसे मजबूत प्रदर्शन माना जा रहा है. जानकारी के मुताबिक, बीजेपी का शहरी वोट शेयर जो कभी 11% हुआ करता था, अब बढ़कर 30% के पार पहुंचता दिख रहा है.

Photo Credit: IANS

“कमल” के नीचे विलीन होतीं क्षेत्रीय पार्टियां

महाराष्ट्र के इन निकाय चुनावों के नतीजे स्पष्ट रूप से क्षेत्रीय दलों को कमजोर बता रही हैं और बीजेपी के बढ़े वर्चस्व की ओर इशारा कर रही हैं, जिस तरह बीजेपी ने 117 सीटें जीतकर अपना शहरी वोट शेयर 11% से बढ़ाकर 30% के पार पहुंचाया है, उससे साफ है कि वह अब सहयोगियों की बैसाखी के बिना 'एकला चलो रे' की राह पर बढ़ रही है.

क्षेत्रीय राजनीति के दो सबसे बड़े स्तंभ “ठाकरे और पवार” अपने ही गढ़ों में संघर्ष करते दिख रहे हैं. शिवसेना (UBT) का मात्र 9 सीटों पर सिमटना ये साबित करता है कि शिंदे सेना (53 सीटें) ने न केवल उनके संगठन को तोड़ा है, बल्कि जमीनी स्तर पर शिवसेना के पारंपरिक मराठी मानुष और कट्टर शिवसैनिक के आधार को भी बीजेपी के हिंदुत्व मॉडल की ओर मोड़ दिया है.

अजित पवार और शिंदे सेना की जीत भले ही आज महायुति की जीत दिख रही हो, लेकिन गहराई से देखें तो बीजेपी ने इन क्षेत्रीय गुटों के सहारे विपक्ष MVA को तो खत्म किया ही साथ ही अपने सहयोगी दलों को भी खुद के बढ़ते कद तले दबा दिया है, ये नतीजे बताते हैं कि बीजेपी अब महाराष्ट्र में केवल एक राष्ट्रीय पार्टी नहीं बल्कि क्षेत्रीय पहचान का भी हिस्सा बनते हुए सबसे बड़ी शक्ति बन गई है, जो धीरे-धीरे अन्य स्थानीय अस्तित्वों को अपने “कमल” के नीचे विलीन कर रही है.

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वरिष्ठ पत्रकार एजाज अहमद कहते हैं, “भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, वास्तव में महाराष्ट्र के नगरपालिका चुनावों में पार्टी का अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन है. भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और राकांपा (अजित पवार) को मिलाकर बनी महायुति—विदर्भ से कोंकण और नासिक से मराठवाड़ा तक सभी छह प्रशासनिक विभागों के 200 से अधिक स्थानीय निकायों में आगे है. यह व्यापक जीत महाराष्ट्र के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की उपस्थिति और प्रभाव का विस्तार करेगी, जिससे 15 जनवरी को होने वाले महत्वपूर्ण नगर निगम चुनावों से पहले पार्टी का संगठनात्मक आधार मजबूत होगा. विपक्षी महा विकास अघाड़ी पूरी तरह से हाशिए पर आ गई है, जो केवल 44 स्थानीय निकायों तक सिमट गई है, जो उनके राजनीतिक विमर्श की निर्णायक अस्वीकृति को दर्शाता है.”

Photo Credit: IANS

महायुति को उद्धव के गढ़ को ढहाने की मिली संजीवनी!

राज्य चुनाव आयोग ने 15 जनवरी 2026 को मुंबई (BMC) सहित 29 नगर निगमों के चुनाव की तारीख घोषित कर दी है. रविवार के नतीजों का इन चुनावों पर महा-प्रभाव पड़ सकता है.

पिछले दो साल से प्रशासक के अधीन चल रही 74,000 करोड़ बजट वाली देश की सबसे अमीर नगर पालिका BMC में उद्धव ठाकरे के 25 साल से जमे गढ़ को ढहाने के लिए महायुति को संजीवनी मिल गई है. वहीं पुणे, ठाणे, नागपुर, नासिक और नवी मुंबई जैसे बड़े शहरों में महायुति का मनोबल सातवें आसमान पर है, विपक्षी गठबंधन MVA के लिए अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना अब बड़ी चुनौती होगी.

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नगर परिषदों की जीत ने साबित किया है कि 'एंटी-इंकंबेंसी' यानी सत्ता विरोधी लहर जैसा कोई कारक महायुति के खिलाफ काम नहीं कर रहा.

ठाकरे ब्रदर्स के लिए यह परिणाम 'वेक अप कॉल'!

उधर, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 'मराठी अस्मिता' के नाम पर साथ तो आए हैं, लेकिन नगर परिषदों के नतीजों ने उनकी धड़कनों को जरूर बढ़ा दिया होगा. राजनीतिक विश्लेषक इस नतीजे को ठाकरे ब्रदर्स के लिए “वेक-अप कॉल” और महाविकास अघाड़ी के लिए “वार्निंग” बता रहे हैं.

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वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जयंत माइनकर कहते हैं, “BJP 117 तो 53 सीटें शिंदे सेना जीत गई और 37 अजित पवार के गुट ने जीत ली. कांग्रेस (28) उसके बाद रही, उसके बाद उद्धव शिवसेना (9) और सबसे नीचे शरद पवार (7) का ग्रुप रहा. एक प्रकार से ठाकरे ब्रदर्स की 25 साल की मुंबई में जो सुपर पावर थी, उसके लिए यह एक चैलेंज है. हो सकता है वॉर्निंग बेल है और हो सकता है कि 15 जनवरी में कुछ एक पूरा चेंज भी हो सकता है क्योंकि शिंदे सेना का रोल इसमें बहुत इम्पॉर्टेंट रहेगा, जो भी ठाकरे ब्रदर्स के वोट हैं, जिसकी वजह से कांग्रेस बाहर चली गई, कांग्रेस का कहना ये था कि हमारे वोट्स जो मुस्लिम और दलित हैं वो तो ठाकरे सेना को ट्रांसफर होते हैं लेकिन शिवसेना के ठाकरेज के जो वोट्स होते हैं वो हमको ट्रांसफर नहीं होते और वो बीजेपी को या शिंदे सेना को चले जाते हैं. अब ये ना हो इसी के लिए कांग्रेस ने एक सोलो रास्ता चुन लिया है यानी ट्रायंगुलर कॉन्टेस्ट होने वाला है.”

वरिष्ठ पत्रकार एजाज अहमद मानते हैं कि कांग्रेस का “एकला चलो रे” फैसला महाविकास अघाड़ी को नगर निगम चुनावों में और तोड़ देगा. उन्‍होंने कहा, “महायुति के चुनावी लाभ को बढ़ाते हुए, बीएमसी चुनाव एक संयुक्त एमवीए मोर्चे के बजाय स्वतंत्र रूप से लड़ने का कांग्रेस का हालिया फैसला एक रणनीतिक चूक है, जो विपक्ष की संयुक्त ताकत को काफी कमजोर कर देगा. यह निर्णय मुंबई में महायुति-विरोधी वोटों को विभाजित करेगा, जिससे अनजाने में भाजपा और पूरे महायुति गठबंधन को लाभ होगा. हालांकि कांग्रेस विशिष्ट क्षेत्रों में कुछ परिषदें जीतने में सफल रही है. एमवीए के नेतृत्व वाले 53 निकायों में से 36, लेकिन उनकी स्वतंत्र बीएमसी रणनीति उनके वोट शेयर को कम कर देगी और भारत की वित्तीय राजधानी में महायुति को स्पष्ट चुनावी बढ़त प्रदान करेगी.”

नगर परिषद और नगर पंचायत के इन नतीजों की यही लहर बरकरार रही तो महाराष्ट्र के बड़े नगर निगमों पर महायुति का भगवा फहराना तय माना जा रहा है. 288 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में से 207 पर कब्जा करना कोई छोटी बात नहीं है. यह लगभग 72% स्ट्राइक रेट है.

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