राज ठाकरे को इतनी तबज्जो क्यों मिल रही.
जो राज ठाकरे अपनी सियासी नैया खुद नहीं खींच नहीं पा रहे, उनकी नांव में हर बड़ा नेता क्यों बैठना चाहता है. एक तरफ उद्धव इंतज़ार में हैं तो दूसरी ओर फड़णवीस और शिंदे भी मिलाप की आस में हैं. मुलाकातें और बातों से ऐसा लगता है की इससे सिर्फ राज ठाकरे (Raj Thackeray) को सुर्ख़ियां मिल रही हैं. पर राज ठाकरे किस डाली बैठेंगे. एमएनएस नए तेवर में दिख रही है. उद्धव से गठबंधन के सवाल पर कहती है, अभी मुद्दे बड़े हैं, युति पर चर्चा बाद में.
क्या मिलेंगी राज-उद्धव की राहें?
ना जाने इन मुलाकातों और बयानों से महाराष्ट्र के बड़े नेता अपनी पार्टी को या सिर्फ राज ठाकरे को मज़बूत बना रहे हैं. उद्धव के ऑफर के बीच संजय राउत का कहना है कि एक भाई दूसरे भाई से हाथ मिलाता है तो आपको क्यों जलन हो रही है. ये जलन अपनी (शिंदे) नहीं बल्कि मोदी,शाह और फड़णवीस की है. उद्धव और उनके नेताओं के ताजा बयानों और एमएनएस से करीबी देखकर तो ऐसा ही लगा रहा है कि दो दशक दुश्मन की तरह रहे भाई-भाई “उद्धव-राज” अब जल्द भरत मिलाप कर लेंगे. पर वहीं फड़णवीस से मिलकर राज ठाकरे उद्धव की उम्मीदों पर पानी फेर रहे हैं.
सभी बड़े MNS से गठबंधन को बेताब क्यों?
इनसे पहले एकनाथ शिंदे भी राज ठाकरे से मिलने पहुंचे थे. इन मुलाकातों से एमएनएस के मुखिया राज ठाकरे इतनी सुर्खियां बटोर चुके हैं कि अब उन कारणों का मंथन जारी है कि आखिर राज ठाकरे से गठबंधन की बेताबी सभी बड़े में नेताओं में क्यों मची है.जबकि राज ठाकरे चुनावों में खुद असरदार नहीं हैं.
उद्धव की आस पर MNS ने फेरा पानी!
उद्धव के बयान ने जैसे एमएनएस में नई जान फूंक दी है. लेकिन उद्धव की आस को किनारे रखते हुए पार्टी ने कहा और भी बड़े मुद्दे हैं. अभी गठबंधन पर चर्चा का समय नहीं है. बता दें कि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज ठाकरे चुनाव नहीं जीतते लेकिन वोट काटने और मुद्दों को हवा देने में उनसे ऊपर कोई ब्रांड नेता नहीं. इसलिए आने वाले निकाय चुनाव से पहले सबकी नजर उनपर है.
अब राज ठाकरे किस डाली बैठेंगे इसकी भनक किसी को नहीं है. उनके करीबी नेता भी ये बात नहीं जानते हैं. फिलहाल राज ठाकरे सिर्फ मुलाकातों और चर्चाओं का मजा ले रहे हैं. राज ठाकरे गठबंधन पर एमएनएस नेता बाला नंदगांवकर ने कहा कि मैं भी राज साहब को पूछ रहा हूं कि आपके मन में क्या चल रहा है? लेकिन मुझे अभी तक इसका जवाब नहीं मिल पाया है. जब मुझे जवाब मिल जाएगा, तो मैं आपको जरूर बताऊंगा, चिंता न करें. बालासाहेब के होते हुए मैंने उद्धव और राज को साथ लाने की कोशिश की थी. लेकिन मुझे नहीं पता कि आगे क्या होगा.
चुनावों में फुस्स, फिर भी डिमांड में है MNS
बता दें कि राज ठाकरे ने 2009 में महाराष्ट्र चुनाव से अपना चुनावी डेब्यू किया था. तब पार्टी को 5.7% वोट शेयर के साथ 13 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि इसके बाद पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट आती गई.
2014 के महाराष्ट्र चुनाव में 219 सीटों पर राज ठाकरे ने उम्मीदवार उतारे और केवल एक ही जीत पाए. तब पार्टी का वोट शेयर पिछले चुनाव के 5.7% से गिरकर 3.2 % पर आ गया. 2019 में पार्टी 2.3% वोट शेयर के साथ केवल एक सीट ही जीत सकी थी. 2024 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में MNS ने फिर से खराब प्रदर्शन किया. 125 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई. यहां तक कि राज ठाकरे के बेटे अमित भी चुनाव हार गए थे.
कई मुद्दों पर वह बीजेपी आंखें दिखा रहे राज ठाकरे
वैसे राजनीति की रेस में टॉपर बीजेपी के साथ राज ठाकरे हालिया जुड़ाव बना कर देख चुके हैं, उन्हें खास फ़ायदा इसका नहीं पहुंचा. इसलिए कई मुद्दों पर वह बीजेपी आंखें दिखा रहे हैं. वहीं महायुति में पहले के मुकाबले ढीली पड़ी शिंदे की शिवसेना भी राज ठाकरे को कोई बड़ा फ़ायदा शायद ही पहुंचा पाये. पर दो भाई अगर साथ आयें तो “ठाकरे ब्रांड” में जरूर नई जान आएगी. जिसकी उद्धव और राज दोनों को ज़रूरत है.