Mahayuti BJP and Shiv Sena: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए वोटों की गिनती के छह घंटे बाद जो स्थिति बनी है उसमें भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति इस साल के लोकसभा चुनावों में अपने झटके से जोरदार वापसी करते हुए भारी जीत की ओर बढ़ती दिख रही है. महायुति वर्तमान में 288 विधानसभा सीटों में से 229 पर आगे चल रही है, और विपक्षी गुट महा विकास अघाड़ी पर बड़ी जीत हासिल कर रही है, जो 54 सीटों पर आगे हैं. दोनों ही गठबंधनों में बड़ा अंतर दिख रहा है . महायुति को इसके सहयोगियों - एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी से अच्छा समर्थन मिला है. दोनों ही इस चुनाव में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के नेतृत्व वाले अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों से आगे निकल गए हैं. इससे यह साबित करने की लड़ाई में अब विराम लग रहा है कि कौन सा गुट 'असली सेना' और 'असली एनसीपी' है.
2019 की ये समस्या कहीं फिर पैदा न कर दे मुसीबत
हालांकि महायुति कैंप में आज जश्न मनाने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन आगे कुछ समस्या इंतज़ार में हैं. और ये जटिलताएं 2019 के महाराष्ट्र चुनाव के बाद उभरी जटिलताओं के समान हैं, जिसमें एनडीए ने जीत हासिल की थी.
कौन बनेगा मुख्यमंत्री
एनडीए की जीत के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? देवेंद्र फड़णवीस और एकनाथ शिंदे दोनों क्रमशः नागपुर दक्षिण-पश्चिम और कोपड़ी पचपखाड़ी सीटों पर आसान जीत की ओर बढ़ रहे हैं.
बीजेपी का शानदार स्ट्राइक रेट
बीजेपी महायुति गठबंधन की प्रमुख पार्टी है और उसने एनडीए के सभी सहयोगियों के बीच सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट भी हासिल किया है. ऐसे में पार्टी मुख्यमंत्री पद के लिए बड़ी दावेदार है. इसमें वरिष्ठ नेता देवेन्द्र फड़णवीस उसकी साफ पसंह होगें, लेकिन शिंदे सेना अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा सकती है और तर्क दे सकती है कि महायुति इस चुनाव एकनाथ शिंदे के चेहरे के साथ उतरी थी और राज्य सरकार की नीतियों और वादों ने इस चुनाव में जो भारी जनादेश दिलाया है उसके पीछे शिंदे का महत्वपूर्ण योगदान है.
इस बार बीजेपी नहीं उठाएगी रिस्क
इससे पहले, जब शिंदे के नेतृत्व में विद्रोह से उद्धव ठाकरे की सरकार गिरी थी और शिवसेना का विभाजन हुआ तब भाजपा ने मुख्यमंत्री पद छोड़कर नैतिक रूप से उच्च नैतिकता दिखाई थी. लेकिन, 120 से अधिक विधायकों के साथ, वे इस बार बीजेपी इतनी उदार नहीं होगी.
मंत्री पदों पर होगी सौदेबाजी
इसके साथ महायुति के तीनों सहयोगियों के अपने अपने चुनावी सीटों पर बढ़िया प्रदर्शन मंत्री पदों पर कड़ी सौदेबाजी के होने की संभावना भी दर्शाता है.
2019 की पुनरावृत्ति
दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र के नतीजे पांच साल पहले चुनाव के बाद की स्थिति जैसी स्थिति पैदा कर सकते हैं. 2019 के राज्य चुनावों में, बीजेपी ने 105 सीटें और अविभाजित शिवसेना ने 63 सीटें जीती थीं. नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेद पैदा हो गए थे. जबकि उद्धव ठाकरे ने बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद पर सहमति का दावा किया, बीजेपी ने ऐसे किसी भी समझौते से इनकार किया है. आख़िरकार, सेना ने गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के इतिहास में सबसे स्थायी गठबंधनों में से एक ख़त्म हो गया.
उद्धव जहां थे वहां पहुंचे शिंदे
अब पांच साल बाद, महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में कई और खिलाड़ी हैं. इनमें शिवसेना और एनसीपी के दो-दो गुट पहचान की लड़ाई लड़ रहे थे. और इस बार जिस तरह से परिणाम आए हैं, बीजेपी और एकनाथ शिंदे वहीं हैं जहां पांच साल पहले बीजेपी और उद्धव ठाकरे थे. ऐसे में सवाल यह है कि क्या शिंदे पलक झपकेंगे या यह जीत बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर देगी? मुख्यमंत्री पद छोड़ना एक पद छोड़ने के रूप में देखा जा सकता है और इसके लिए जोर देने से गठबंधन में दरार का खतरा बन सकता है.
हालांकि, 2019 की तुलना में इस बार एक बड़ा अंतर है. अजित पवार की एनसीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया है. भाजपा को जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए अपने दो सहयोगियों में से केवल एक की जरूरत है. शिंदे सेना को किसी भी सौदेबाजी पर जोर देते समय इसे ध्यान में रखना होगा.
रुझानों में एनडीए को स्पष्ट बढ़त मिलने पर मीडिया से बात करते हुए एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री के सवाल का सावधानीपूर्वक जवाब दिया. उन्होंने कहा, ''हम बैठेंगे और फैसला करेंगे.'' उन्होंने कहा, ''(प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी जी हमारे वरिष्ठ हैं.''
इंडिया गठबंधन को झटका
इस चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को करारा झटका लगा है. इसने महीनों पहले लोकसभा चुनावों में 48 लोकसभा सीटों में से 30 सीटें जीती थीं. महा विकास अघाड़ी अब विधानसभा चुनाव में केवल 52 सीटों पर आगे है, जबकि कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) क्रमशः 19, 19 और 14 सीटों पर आगे हैं.
बता दें कि लोकसभा चुनावों में अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर, कांग्रेस ने सीट-बंटवारे के दौरान सबसे अच्छा सौदा पाने के लिए कड़ी सौदेबाजी की थी. अब चुनाव में सीटों को जीत में बदलने में विफल रहने के कारण कांग्रेस को आलोचना का सामना करना पड़ेगा और उस पर गठबंधन को डुबोने का आरोप लगाया जा सकता है. राजनीतिक रूप से यह चुनाव अपनी पार्टी की पहचान की लड़ाई में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए एक बड़ा झटका है. दोनों नेता, जो विद्रोह के बाद अपनी पार्टी को विभाजित करने के बाद उबरने की कोशिश कर रहे हैं, अब पहचान के संकट का सामना कर रहे हैं क्योंकि अलग हुए गुटों का स्कोर उनके खेमों से कहीं बेहतर है.