BMC चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला, किसको होगा फायदा और किसको नुकसान

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को ये अहसास हो गया है कि गठबंधन में रहने पर उसकी जमीन खिसक रही है. मुंबई में उद्धव गुट हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहता है, कांग्रेस को डर था कि गठबंधन में उसे कम सीटें मिलेंगी .

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बीएमसी चुनाव अकेले लड़ेगी कांग्रेस
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  • कांग्रेस ने BMC चुनाव में अकेले लड़ने का फैसला किया है, जिससे महाविकास अघाड़ी गठबंधन कमजोर हुआ है
  • कांग्रेस का यह कदम शिवसेना और NCP दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा और गठबंधन की एकता पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा
  • कांग्रेस का मानना है कि मुंबई में भाजपा और उद्धव गुट दोनों के खिलाफ चुनाव लड़ना उनके हित में है
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मुंबई:

बृहन्मुंबई महानगर पालिका चुनाव (BMC) ने महाराष्ट्र की सियासत को बड़ी दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है.सीटों की खींचतान की ख़बरों के बीच कांग्रेस ने मुंबई महानगरपालिका चुनाव को लेकर ऐसा दांव चला है जिससे विपक्षी गठबंधन 'महाविकास अघाड़ी' आर्थिक राजधानी में बिखरती दिख रही है.कांग्रेस के बड़े नेता और महाराष्ट्र प्रभारी रमेश चेन्नीथला ने साफ कर दिया है कि मुंबई की 227 सीटों पर कांग्रेस किसी के साथ नहीं,बल्कि अकेले चुनाव लड़ेगी.कांग्रेस का ये फ़ैसला उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और शरद पवार की NCP को सकते में डाल सकता है. 

चेन्नीथला के बयान ने साफ कर दिया है कि विधानसभा और लोकसभा में जो एकजुटता दिखी थी, वो अब इतिहास की बात हो गई है. जब चेन्नीथला कहते हैं कि हम बीजेपी और यूबीटी (उद्धव गुट) दोनों के खिलाफ लड़ेंगे, तो इसका सीधा मतलब है कि कांग्रेस ने अपने साथियों को भी प्रतिद्वंद्वी मान लिया है!सवाल यह है कि जिस मुंबई को उद्धव अपना किला मानते हैं,वहीं कांग्रेस ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलकर क्या गठबंधन की नींव हिलाई है? 

किसका होगा फायदा, किसका नुकसान?

मुंबई की जंग द्विपक्षीय नहीं बल्कि त्रिकोणीय दिख रही है. जब भी विपक्ष का वोट बंटता है, उसका सीधा फायदा सत्तारूढ़ गठबंधन को मिलता है ऐसे में कांग्रेस का यह फैसला बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए फ़ायदा साबित होगा या कांग्रेस अपना पुराना वजूद वापस पाएगी,देखना दिलचस्प होगा.

क्यों अकेले जाने पर मजबूर हुई कांग्रेस?

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को ये अहसास हो गया है कि गठबंधन में रहने पर उसकी जमीन खिसक रही है. मुंबई में उद्धव गुट हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहता है, कांग्रेस को डर था कि गठबंधन में उसे कम सीटें मिलेंगी . चेन्नीथला ने कहा कि वे BMC के भ्रष्टाचार का 'पंचनामा' करेंगे, अब पिछले 25 सालों से तो BMC पर शिवसेना का ही कब्जा रहा है,ऐसे में उद्धव के साथ रहकर कांग्रेस भ्रष्टाचार पर सवाल कैसे उठाती?

चेन्नीथला का दावा है कि मुस्लिम मतदाता उनके साथ हैं. उन्हें लगता है कि 'हिंदू-मुस्लिम' की राजनीति के बीच कांग्रेस ही धर्मनिरपेक्ष विकल्प है,जिसमें उद्धव सेंधमारी कर रहे थे.अब कांग्रेस ये नुक़सान स्थानीय चुनावों में नहीं झेलना चाहती.महानगरपालिका की इस जंग में राज ठाकरे की MNS भी कांग्रेस के “एकला चलो” के फैसले के पीछे एक बड़ा साइकोलॉजिकल फैक्टर है! कांग्रेस को डर है कि अगर वह उद्धव गुट के साथ गठबंधन में रहती, तो भाजपा और मनसे मिलकर 'मराठी अस्मिता' और 'प्रखर हिंदुत्व'के मुद्दे पर उसे हाशिए पर धकेल देते. 

राज ठाकरे अक्सर कांग्रेस पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते रहे हैं,ऐसे में अकेले लड़कर कांग्रेस खुद को हिंदुत्व की इस नूरा-कुश्ती से दूर रखकर अपने कोर वोट बैंक (मुस्लिम और उत्तर भारतीय) को ये संदेश देना चाहती है कि वो मनसे की “कट्टर” राजनीति के सामने घुटने नहीं टेकेगी! कांग्रेस के लिए MNS एक ऐसी चुनौती है जो गठबंधन की स्थिति में उसके वोटों में सेंध लगा सकती थी,इसलिए कांग्रेस ने त्रिकोणीय मुकाबले में अपनी स्वतंत्र पहचान बचाना ही बेहतर समझा होगा.

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शरद पवार की NCP अब क्या करेगी?

शरद पवार की राजनीति हमेशा “वेट एंड वॉच” की रही है. लेकिन कांग्रेस के इस फैसले के बाद शरद पवार भी परेशान बताए जा रहे हैं.उनके पास दो विकल्प दिखते हैं या तो वे उद्धव ठाकरे के साथ डटे रहें और कांग्रेस के खिलाफ लड़ें या फिर वे भी कुछ सीटों पर अपना अलग दांव खेलें!हालांकि, मुंबई में शरद पवार की पार्टी की ताकत सीमित है,इसलिए वे उद्धव का साथ छोड़कर अपनी प्रासंगिकता खोने का जोखिम शायद नहीं उठाएंगे.

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