एक प्यारी-सी अनजान लड़की है,
थोड़ी-सी ज़िद्दी पर नादान हँसी हँसती है,
नाक लाल जैसे मुझसे नाराज़ हो,
पर रूठी हुई भी कितना जँचती है।
बाल उड़ें हवा में, अंगारों को भड़काते हैं
नर्म होंठ पानी बन,
उसी आग को बुझाते हैं ।
आँखें बड़ी-सी, गहरी,
जैसे साज़िश रचती हों,
माथे पे बिंदिया
हुस्न की बारिश करती हों।
रंग गोरा शिव की गौरा के जैसा,
बात-बात में वो पार्वती-सी लगती है,
कौन-सी स्याही से बनाई है सूरत,
ब्रह्मा ने शिव से
वरदान में पाई लगती है।
जब वो चलती है
तो धरती ठहर-सी जाती है,
उसकी एक नज़र में
कायनात सिमटी लगती है।
न ज़्यादा बोलती है,
न राज़ कुछ कहती है,
ख़ामोशी में भी
पूरी कहानी सी रहती है।
दिल पूछता है हर रोज़
ये कौन-सा नशा है,
जो उसे देखे बिना
दिन भी अधूरा लगता है।
वो मेरी नहीं है,
फिर भी मेरी-सी लगती है,
शायद कुछ ख़्वाबों में
पहले से मिलती है।
एक प्यारी-सी अनजान लड़की है…
बड़ी प्यारी सी अनजान लड़की है
- अजय शर्मा














