नई दिल्ली : दुनिया में जंगलों और वन्य जीव-जंतुओं को बचाने की जिम्मेदारी वन रेंजरों के कंधों पर होती है. रेंजर्स की जिंदगी बड़ी ही कठिन होने के साथ प्रतिदिन चुनौतियों से भरी हुई होती है. उन्हें एक तरफ घने जंगल, गहरे पानी और ऊंचे पर्वतों में हर मौसम में वन्य जीवों के साथ वनों की भी रक्षा करनी पड़ती है. दूसरी तरफ जंगल के खूंखार जानवरों से खुद की भी रक्षा करनी पड़ती है. कई बार वन रेंजर्स खूंखार जानवरों के बीच उनकी देखभाल करते हुए उन्हीं का शिकार भी बन जाते हैं. इन बहादुर जांबाज वन रेंजर्स को सम्मान देने के लिए 31 जुलाई को पूरी दुनिया में वर्ल्ड रेंजर्स डे मनाया जाता है. इस दिन उन वन रेंजर्स के कामों की सराहना की जाती है, जो अपनी जान की परवाह किए बिना खतरों के बीच जंगलों और वन्य जीवों को बचाने का काम करते हैं. साथ ही ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवाने वाले रेंजर्स को श्रद्धांजलि भी इसी दिन अर्पित की जाती है.
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वर्ल्ड रेंजर डे की शुरुआत 31 जुलाई 1992 को इंटरनेशनल रेंजर्स फाउंडेशन (आईआरएफ) की स्थापना के अवसर पर हुई थी. इंग्लैंड के पीक नेशनल पार्क में इंटरनेशनल रेंजर्स फाउंडेशन की स्थापना के बाद कंट्रीसाइड मैनेजमेंट एसोसिएशन (सीएमए), स्कॉटिश कंट्रीसाइड रेंजर्स एसोसिएशन (एससीआरए) और यूएस एसोसिएशन ऑफ नेशनल पार्क रेंजर्स (एएनपीआर) के बीच एक समझौते के बाद पूरी दुनिया में वन रेंजर्स के लिए कुछ किए जाने के बारे में सोचा जाने लगा.
वर्ष 2007 में इंटरनेशनल रेंजर्स फाउंडेशन की स्थापना की 15वीं वर्षगांठ के अवसर पर दुनिया में पहली बार वर्ल्ड रेंजर्स डे (विश्व रेंजर दिवस) मनाया गया. बता दें, रेंजर ट्रेंड सिपाहियों की एक ऐसी फौज होता है, जिसे जंगलों और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण और सुरक्षा का जिम्मा दिया जाता है. इनकी पुलिस की तर्ज पर अपना ड्रेस कोड होता है.
दुनिया में जलवायु परिवर्तन और वन्यजीवों के अवैध शिकार की चुनौतियों के बीच वन रेंजर हमारे पर्यावरण की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. वह वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए दिन-रात काम करते हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि रेंजर पूरी दुनिया में वन्य जीवन और वनों पर सरकार के आंख और कान होते हैं.