World Kebab Day 2024: आज है विश्व कबाब दिवस, क्या आप जानते हैं कहां से आया है यह लजीज पकवान, जानिए दिलचस्प बातें

हर साल जुलाई के दूसरे शुक्रवार के दिन विश्व कबाब दिवस मनाया जाता है. यहां जानिए इस दिन को मनाने की वजह और कुछ खास बातों के बारे में. 

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क्या आप जानते हैं कबाब से जुड़ी ये बातें.  

World Kebab Day 2024: कबाब खाने की ऐसी चीज है जिसका नाम सुनते ही मुंह में स्वाद घुल जाता है. कबाब स्वादिष्ट होता है, इसमें मसालों की सुगंध और लजीज फ्लेवर होते हैं और चाहे इसे अकेला परोसा जाए या किसी और डिश के साथ खाकर मजा आ जाता है. कबाब (Kebab) आमतौर पर मीट को पीसकर सब्जियों के साथ या सादा ही ग्रिल करके पकाया जाता है. इसी कबाब और इसके स्वाद को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल जुलाई के दूसरे शुक्रवार के दिन विश्व कबाब दिवस मनाया दाता है. इस साल विश्व कबाब दिवस 12 जुलाई के दिन पड़ रहा है. कबाब के उद्भव की बात करें तो इस डिश का जन्मस्थल मिडल ईस्ट या सेंट्रल एशिया को माना जाता है. कहते हैं कि तुर्की में कबाब (Turkey) इजाद हुए थे और सबसे पहले बनाए गए थे. तो अगर आप भी कबाब लवर हैं तो यहां जानिए कबाब से जुड़े ऐसे फैक्ट्स जो आपको अबतक पता नहीं होंगे. 

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कबाब से जुड़े फैक्ट्स | Interesting Facts About Kebabs

कबाब शब्द फारसी से निकला है और अर्बी में इसे कबाब और तुर्की में कबाप कहा जाता है. कबाब को मीट को छोटे टुकड़ों में काटकर या पीसकर मसालों, तेल और नींबू के रस के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है. कई लोग इसे तवे पर पकाते हैं तो बहुत से लोग कबाब को भट्टी में या फिर ग्रिलर के ऊपर रखकर पकाते हैं. इसे लकड़ी, लोहे या फिर स्टील की स्टिक्स पर चिपकाकर पकाया जाता है और कई तरह के कबाब को हाथों से गोल या लंबा आकार दिया जाता है. 

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विश्व के सबसे मशहूर कबाब (Famous Kebab) में डोनर कबाब को गिना जाता है. यह कबाब मीट के टुकड़ों को ग्रिल करके पकाया जाता है, इसमें ज्यादातर लैंब का इस्तेमाल होता है. यह रसदार होता है और फ्रेश हर्ब्स और मसालों को इसमें मिलाया जाता है. इस कबाब के मीट को छोटे टुकड़ों में काटकर ब्रेड, दही या सलाद के साथ परोसा जाता है. 

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भारत का मशहूर कबाब है गलौटी कबाब. गलौटी का अर्थ होता है मुंह में घुल जाने वाला. कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में मिर्जा असद-उल-दौलान, अवध के नवाब वाजिर ने गलौटी कबाब (Galouti Kebab) का आविष्कार किया था. कहते हैं नवाब को मीट खासकर कि कबाब खाना बेहद पसंद था. जब नवाब बूढ़े होने लगे और उनके दांत गिरने लगे तो शाही महल के शेफ ने गलौटी कबाब बनाने शुरू किए थे जिन्हें खाना बेहद आसान था और चबाने में जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती थी. 

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कबाब के लिए कहा जाता है कि यूरोप में मुस्लिम समाज की पहचान के रूप में कबाब को जाना जाता रहा है और कबाब मुस्लिम प्रवासियों का चिन्ह बन गए हैं. कबाब के एक नहीं बल्कि कई प्रकार हैं, इसमें सीख, शमी, रेशमी, बिहारी, टिक्का, चिकन, फिश, चपली, पेशावरी और कीमा आदि शामिल हैं. 

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