International Mother Language Day 2025: भाषा लोगों की विविध पहचान को बढ़ावा देती है. भाषाएं लोगों को आपस में जोड़ती भी हैं और लोगों को उनकी संस्कृति को संरक्षित रखने का मौका भी देती हैं. यूनेस्को (UNESCO) ने लोगों की इसी विविधता को बढ़ावा देते हुए साल 1999 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय भाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. यूनेस्को के अनुसार, दुनियाभर में 8,324 भाषाएं हैं जिनमें से 7,000 भाषाएं आज भी प्रचलन में हैं और इस्तेमाल की जा रही हैं. लेकिन, ये भाषाएं तेजी से लुप्त होती जा रही हैं. ऐसे में इन लुप्त होती भाषाओं (Languages) को चलन में बनाए रखने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है.
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का इतिहास | International Mother Language Day History
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का इतिहास बांग्लादेश (Bangaldesh) से जुड़ा है. बांग्लादेश भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाकिस्तान का हिस्सा था. इसे पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था. पाकिस्तान ने यहां उर्दू को देश की मातृभाषा घोषित किया था. लेकिन, पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला बोलने वालों की संख्या अधिक थी और नागरिकों ने मांग की कि बांग्ला को मातृभाषा बनाना चाहिए. 21 फरवरी,1952 के दिन बांग्लादेश में मातृभाषा को लेकर हो रहे संघर्ष में पुलिस की गोलीबारी में विरोध कर रहे छात्रों को जान गंवानी पड़ी थी. इसीलिए 21 फरवरी की तारीख का अत्यधिक महत्व है. बांग्लादेश में इस दिन को राष्ट्रीय छुट्टी घोषित किया गया है.
इसके बाद मातृभाषा के महत्व को ध्यान में रखते हुए यूनेस्को ने 1999 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में घोषित किया था. साल 2000 में पहला अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया था. इस साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की 25वीं वर्षगांठ है.
इस साल यूनेस्को "अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का सिल्वर जुबली समारोह" थीम (Theme) पर अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है. इस दिन कविताएं पढ़ने, अलग-अलग भाषाओं में कहानी सुनाने और सांस्कृतिक संगीत से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. यह सेलिब्रेशन यूनेस्को के पेरिस, फ्रांस हेडक्वार्टर्स में हो रहा है.
इस दिन को मनाने का मकसद अलग-अलग भाषाओं का संरक्षण करना, बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना और विविधता के महत्व पर प्रकाश डालना है. बेहतर सीख के लिए स्कूलों में अलग-अलग भाषाएं सीखने पर जोर डाला जाता है. साथ ही, स्वदेशी आबादी के भाषाई अधिकारों की रक्षा करना भी इस दिन को मनाने की एक बड़ी वजह है.