नई दिल्ली:
क्या आप लंबे समय तक जीना चाहते हैं? तो खूब लाल मिर्च खाइए, इससे कोलेस्ट्रॉल कम होता है जिससे जिंदगी लंबी होती है. ऐसा शोधकर्ताओं का कहना है. शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि लाल मिर्च के सेवन से मृत्यु दर में 13 फीसदी की कमी आती है जो मुख्यत: हृदय रोग या स्ट्रोक के कारण होती है. जो लोग नियमित रूप से तीखे लाल मिर्च का सेवन करते हैं उनके शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है.
हालांकि शोधकर्ताओं को उस प्रणाली का पता नहीं चल पाया है, जिससे लाल मिर्च खाने से जीवन लंबा होता है. अमेरिका के वरमोंट विश्वविद्यालय के मुस्तफा चोपान ने बताया कि ट्रांसिएंट रिसेप्टर पोटेंसियल (टीआरपी) चैनल्स, जो कैप्सीचीन जैसे एजेंटों के प्राथमिक रिसेप्टर्स होते हैं, जोकि मिर्च का प्रमुख तत्व है. उसकी जीवनकाल को बढ़ाने में कोई भूमिका हो सकती है.
चोपान ने बताया कि माना जाता है कि कैप्सीचीन ही मोटापे को घटाने और धमनियों में रक्त प्रवाह को नियंत्रिण करने में सेलुलर और आणविक तंत्र में अपनी भूमिका निभाता है. साथ ही इसमें माइक्रोबियल विरोधी गुण होते हैं जो 'संभवत: आंतों के माइक्रोबायोटा में बदलाव कर अप्रत्यक्ष तौर पर उस व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाने में योगदान करता है.
मसालों और मिर्ची को शताब्दियों से रोगों के इलाज में लाभकारी माना जाता रहा है. इस शोध के लिए दल ने 16,000 अमेरिकियों का 23 सालों तक अध्ययन किया. यह शोध प्लोस वन जर्नल में प्रकाशित किया गया है.
(एजेंसियों से इनपुट)
हालांकि शोधकर्ताओं को उस प्रणाली का पता नहीं चल पाया है, जिससे लाल मिर्च खाने से जीवन लंबा होता है. अमेरिका के वरमोंट विश्वविद्यालय के मुस्तफा चोपान ने बताया कि ट्रांसिएंट रिसेप्टर पोटेंसियल (टीआरपी) चैनल्स, जो कैप्सीचीन जैसे एजेंटों के प्राथमिक रिसेप्टर्स होते हैं, जोकि मिर्च का प्रमुख तत्व है. उसकी जीवनकाल को बढ़ाने में कोई भूमिका हो सकती है.
चोपान ने बताया कि माना जाता है कि कैप्सीचीन ही मोटापे को घटाने और धमनियों में रक्त प्रवाह को नियंत्रिण करने में सेलुलर और आणविक तंत्र में अपनी भूमिका निभाता है. साथ ही इसमें माइक्रोबियल विरोधी गुण होते हैं जो 'संभवत: आंतों के माइक्रोबायोटा में बदलाव कर अप्रत्यक्ष तौर पर उस व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाने में योगदान करता है.
मसालों और मिर्ची को शताब्दियों से रोगों के इलाज में लाभकारी माना जाता रहा है. इस शोध के लिए दल ने 16,000 अमेरिकियों का 23 सालों तक अध्ययन किया. यह शोध प्लोस वन जर्नल में प्रकाशित किया गया है.
(एजेंसियों से इनपुट)
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