Parenting: आत्मविश्वास से भरे बच्चे को किसी के सामने अपनी बात रखने में झिझक नहीं होती है. चाहे स्कूल में परफॉर्म करना हो या जीवन की कोई कठिनाई हो, कोंफिडेंट बच्चे (Confident Children) हमेशा आगे रहते हैं. लेकिन, अगर बच्चा कोंफिडेंट ना हो और उसमें कोंफिडेंस की कमी हो तो उसे हर किसी के सामने झेंपना पड़ता है, स्टेज पर पैर रखते ही घबराहट होने लगती है और कई बार तो बच्चे अच्छे मौकों का भी फायदा नहीं उठा पाते हैं. ऐसे में छोटी उम्र से ही बच्चे को कोंफिडेंट बनाने की कोशिश करनी चाहिए. थेरैपिस्ट जेफरी मेल्टजर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से इस वीडियो को शेयर किया है जिसमें वे बता रहे हैं कि किन 7 बातों को ध्यान में रखकर बच्चे को कोंफिडेंट बनाया जा सकता है. आप भी आजमाकर देख सकते हैं थेरैपिस्ट के ये टिप्स.
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कैसे बनाएं बच्चे को कोंफिडेंट
फेलियर हैंडल करना सिखाएंबच्चे को बताएं कि हार सफलता से विपरीत नहीं है बल्कि उसी का एक हिस्सा है. जब बच्चा को खेल हार जाए या फिर टेस्ट में अच्छा नहीं करता तो उसे सुधारने के लिए जल्दबाजी ना करें. बच्चे को इस फेलियर (Failure) से डील करना सिखाएं.
बच्चों को जो बताया जाता है उससे ज्यादा वह उन चीजों से सीखते हैं जिन्हें वे देखते हैं. जब बच्चे आपको स्ट्रेस में देखते हैं कि आप गहरी सांस लेकर खुद से कहते हैं कि मैं इसे ठीक कर लुंगा, तो बच्चे इन बातों को खुद में ढालने लगते हैं. बढ़ों को देखकर बच्चे भी चीजों से बेहतर तरह से जूझते हैं.
प्रॉब्लम सोल्विंग पर जोर देनाबच्चे के सामने अगर कोई मुश्किल आती है तो पैरेंट्स को लगता है कि आगे आकर उनकी मदद करें और उन्हें इस मुश्किल से निकाल दें. लेकिन, थेरैपिस्ट का कहना है कि ऐसा नहीं करना चाहिए. इससे बच्चों की क्रिटिकल थिंकिंग डेवलप नहीं हो पाती है. बच्चे की मुश्किलें सुलझाने की बजाए उसे कहें कि वह खुद से इन सवालों के हल ढूंढने की कोशिश करे और जो भी परिणाम निकले उससे सीखे.
अगर बच्चे को हमेशा उसके कंफर्ट जोन में रखा जाएगा और हर चीज उसके लिए आसान बना दी जाएगी तो वह नई चीजें करने से घबराने लगेगा. इससे बेहतर यह परिवार की आदत बना लें कि अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर कुछ किया जाए. इससे बच्चा सीख जाएगा कि चैलेंजेस से पार पाकर ही ग्रोथ हो पाती है मुश्किल से भागकर नहीं.
फीलिंग्स की पहचान कराएंबच्चे को यह सिखाना जरूरी है कि वह कब कौनसा इमोशन फील कर रहा है. उसे बताना आना चाहिए कि कब वह दुखी है, कब उससे गुस्सा आता है या फिर कब वह खुश है. इससे आत्मविश्वास बढ़ता है.