टीनेजर्स की परवरिश में कभी नहीं करनी चाहिए ये 4 गलतियां, बच्चे रहने लगते हैं कंफ्यूज

Parenting Mistakes: अक्सर ही माता-पिता टीनेज बच्चों की परवरिश में कुछ बातों का ध्यान नहीं रखते हैं. यही गलतियां लंबे समय तक बच्चों को प्रभावित करती हैं. ऐसे में वक्त रहते इन मिस्टेक्स को सुधारना जरूरी होता है. 

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Teenage Parenting Mistakes: किशोर बच्चों की परवरिश में कभी नहीं करनी चाहिए कुछ गलतियां. 

Parenting: सभी माता-पिता का परवरिश का तरीका अलग-अलग होता है. कुछ पैरेंट्स बच्चों के दोस्त बनने की कोशिश करते हैं तो कुछ इतने स्ट्रिक्ट होते हैं कि बच्चे अपने मन की बात कहने से भी घबराने लगते हैं. वहीं, बात अगर टीनेज बच्चों (Teenagers) की हो तो यह स्थिति और ज्यादा बिगड़ जाती है. टीनेज में बच्चे खुद को अक्सर ही अकेला महसूस करते हैं. बच्चों को यह समझने में दिक्कत होती है कि उनके शरीर में, मन और मस्तिष्क में यह जो बदलाव हो रहे हैं, क्यों हो रहे हैं और इनका क्या मतलब है. ऐसे में अगर पैरेंट्स का व्यवहार और रवैया उनके प्रति अच्छा नहीं होता तो बच्चे खुद को टूटा हुआ महसूस करने लगते हैं. यहां पैरेंट्स की कुछ ऐसी ही गलतियों (Parenting Mistakes) का जिक्र किया जा रहा है जो वे टीनेज बच्चों की परवरिश में करते हैं. 

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टीनेज बच्चों की परवरिश में की गई गलतियां 

कम्यूनिकेशन को मुश्किल बनाना 

कई बार पैरेंट्स इतने सख्त हो जाते हैं या फिर बच्चों की बातों का सही तरह से जवाब नहीं देते जिससे बच्चों के लिए अपने माता-पिता से अपने मन की बात कहना मुश्किल हो जाता है. कम्यूनिकेश (Communication) को मुश्किल बनाने का ही परिणाम होता है कि किशोरावस्था में अगर बच्चे किसी मुसीबत में भी हों या किसी बात को लेकर उलझन में हों तब भी माता-पिता से अपने मन की बात नहीं कह पाते. 

बच्चों पर प्रेशर बनाना 

टीनेज में बच्चे अलग-अलग चीजें एक्सप्लोर कर रहे होते हैं, खुद को समझने की कोशिश करते हैं, नए दोस्त बनाते हैं और अपनी बहुत सी पुरानी आदतों को पीछे छोड़ने लगते हैं. लेकिन, इस उम्र में अगर बच्चों पर प्रेशर बनाया जाए या किसी काम को जबरदस्ती करवाने की कोशिश की जाए तो वे खुद पर दबाव महसूस करने लगते हैं. 

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फीलिंग्स को नजरंदाज करना 

किशोरावस्था में बच्चों के मन में कई तरह की बातें होती हैं. बच्चे इस उम्र में अलग-अलग इमोशंस को फील करते हैं और अपने मन की बातों को किसी से साझा करना चाहते हैं. लेकिन, अगर पैरेंट्स बच्चों की भावनाओं को नजरंदाज करते हैं तो इससे बच्चों को दुख पहुंचता है. वे अपने ही मन के ख्यालों में उलझे रह जाते हैं. 

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दूसरे बच्चों से तुलना 

जब बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना की जाती है तो उनके मन को गहरी चोट लगती है. पैरेंट्स की यह एक आदत बच्चों के लिए दुख का सबसे बड़ा कारण बन जाती है और पैरेंट्स को लगता है कि बच्चों को जलन हो रही है. लेकिन, बच्चों की इन भावनाओं (Feelings) को जलन का नाम देना सही नहीं है. बजाय बच्चों की तुलना करने के पैरेंट्स को बच्चों को समझने की कोशिश करनी चाहिए. 

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