कौन था जरनैल सिंह भिंडरावाले, जिसे लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लिया राजीव गांधी का नाम

Jarnail Singh Bhindranwale: जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम लेते हुए पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बड़ा दावा किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि राजीव गांधी ने भिंडरावाले से मुलाकात की इच्छा जाहिर की थी.

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जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम फिर चर्चा में

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का एक बयान खूब सुर्खियां बटोर रहा है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक वक्त खालिस्तानी आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाले से मुलाकात करने वाले थे. कैप्टन ने कहा कि वो राजीव गांधी और भिंडरावाले की मुलाकात करवाने वाले थे. ऐसे में एक बार फिर जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम चर्चा में आ गया है, आइए जानते हैं कि भिंडरावाले कौन था और कैसे उसने पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन को खड़ा किया. 

कौन था भिंडरावाले?

जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम पहले सिर्फ जनरैल सिंह था, उसका जन्म पंजाब के मोगा में छोटे से गांव रोडे में हुआ था. बचपन से ही जरनैल सिंह काफी अलग था और महज 30 साल की उम्र में उसे सिख धर्म की शिक्षा देने वाली संस्था 'दमदमी टकसाल' का अध्यक्ष चुन लिया गया. इसके बाद उसे जरनैल सिंह भिंडरावाले के नाम से लोग जानने लगे. इस पद पर बैठते ही भिंडरावाले के तेवर तल्ख हो गए और उसने पंजाब में बवाल करना शुरू कर दिया. 

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भिंडरावाले देखते ही देखते एक बड़ा चेहरा बन गया और कई हिंसक झड़पों में उसका नाम सामने आया. उसके भड़काऊ भाषणों ने कई युवाओं को आकर्षित किया और एक अलग तरह का संगठन बनने लगा. पंजाब में हत्याओं का दौर शुरू हो गया और सभी मामलों में भिंडरावाले का ही नाम सामने आया. भिंडरावाले सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त पर बैठकर लोगों को संबोधित करने लगा और भड़काऊ भाषण देने लगा. देखते ही देखते हालात इतने बिगड़ गए कि 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. 

ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत 

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को भिंडरावाले ने अपना घर बना लिया था और अकाल तख्त पर बैठे इस ताकतवर शख्स को हटाना मुश्किल हो गया था. खबर सामने आई कि भिंडरावाले कुछ ही दिनों में खालिस्तान (अलग मुल्क) का ऐलान करने वाला है. यही वजह थी कि राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद इंदिरा गांधी सरकार ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत की, ये ऑपरेशन भिंडरावाले को अकाल तख्त से हटाने और पकड़ने के लिए चलाया गया. 

कई घंटों तक चलती रही गोलियां

पंजाब और खासतौर पर अमृतसर को पूरी तरह से छावनी में तब्दील कर दिया गया और सेना ने घेराबंदी शुरू कर दी. पंजाब जाने वाली बसों और ट्रेनों को रोक दिया गया. 3 जून 1984 को पंजाब में पूरी तरह से कर्फ्यू लगा दिया गया, जिसके बाद चार जून से ऑपरेशन की शुरुआत हुई, देखते ही देखते स्वर्ण मंदिर परिसर में सेना के टैंक और बख्तरबंद गाड़ियां पहुंचने लगीं. भिंडरावाले के समर्थकों और सेना के जवानों के बीच दो दिन तक लड़ाई चली और आखिरकार 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया. इस पूरे ऑपरेशन में करीब 83 भारतीय सैनिक शहीद हुए और सैकड़ों घायल हो गए. वहीं 400 से ज्यादा चरमपंथियों को मार गिराया गया. 

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