बंधक बनाने वाले से ही प्यार करने लगते हैं लोग, जानें क्या होता है स्टॉकहोम सिंड्रोम

Stockholm Syndrome: स्टॉकहोम सिंड्रोम में लोग अपने ही अपहरणकर्ता से प्यार करने लगता है. यह एक साइकोलॉजिकल कंडीशन है. इससे बाहर निकलना काफी मुश्किल होता है. जानिए इसके कारण, लक्षण और बचाव के उपाय.

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बंधक से ही हो जाता है प्यार

Stockholm Syndrome: मुंबई में पवई के एक स्टूडियो में रोहित आर्या नाम के शख्स ने ऑडिशन के नाम पर 17 बच्चों और दो अन्य लोगों को बंधक बना लिया. जिसके बाद हालात से निपटने के लिए ऑपरेशन शुरू किया गयाऔर इस कार्रवाई के दौरान रोहित को गोली लग गई, जिससे वह घायल हो गया. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. बंधक बनाने की ये भारत में पहली ऐसी घटना थी, इससे पहले लोगों ने फिल्मों में कई ऐसी चीजें देखी हैं. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे सिंंड्रोम के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें पीड़ित लोगों को बंधक बनाने वाले से ही प्यार हो जाता है. इसे स्टॉकहोम सिंड्रोम कहा जाता है. 

स्टॉकहोम सिंड्रोम क्या है

कुछ दिनों पहले सेलिब्रिटी किम कार्दशियन ने भी खुलासा किया है कि उन्हें अपने एक्स-हसबैंड कान्ये वेस्ट के साथ स्टॉकहोम सिंड्रोम फील हुआ था. यह एक ऐसा साइकोलॉजिकल रिस्पॉन्स है, जिसमें किसी बंधक बनाए गए व्यक्ति को अपने अपहरणकर्ता के प्रति सहानुभूति, भरोसा और प्यार जैसी भावनाएं महसूस होने लगती हैं. यह स्थिति तब होती है, जब किसी व्यक्ति को डर, तनाव और धमकी जैसी कंडीशंस में लंबे समय तक रखा जाता है. इससे वह धीरे-धीरे वह खुद को शोषण करने वाले को ही सेफ महसूस करने लगता है.

स्टॉकहोम सिंड्रोम शब्द कहां से आया है

1973 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम (Stockholm) में एक बैंक डकैती के दौरान चार लोगों को छह दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया था. जब पुलिस ने उन्हें छुड़ाया, तो बंधक बने लोगों ने अपने अपहरणकर्ताओं का बचाव किया और कोर्ट में उनके खिलाफ गवाही देने से भी इनकार कर दिया. यहीं से मनोवैज्ञानिकों ने इस अजीब कंडीशन को स्टॉकहोम सिंड्रोम नाम दिया.

स्टॉकहोम सिंड्रोम कैसे होता है 

यह सिंड्रोम अचानक नहीं होता, बल्कि धीरे-धीरे इंसानी दिमाग की सर्वाइवल इंस्टिंक्ट के तहत विकसित होता है. जब कोई खतरे में होता है और भाग नहीं सकता, तो उसका दिमाग उसे सेफ महसूस कराने के लिए एक इमोशनल कंफ्यूजन पैदा करता है. अपहरणकर्ता की छोटी-छोटी अच्छी हरकतें उसे बड़ी लगने लगती हैं. उसे लगता है कि अपहरणकर्ता बुरा नहीं है. धीरे-धीरे वह खुद को उसी के नजरिए से देखने लगता है.

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स्टॉकहोम सिंड्रोम के लक्षण

  • अपहरणकर्ता या शोषक के प्रति सहानुभूति और लगाव
  • उसे नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्ति को गलत नहीं मानना
  • पुलिस या समाज के प्रति नफरत या अविश्वास
  • खुद की स्थिति को सही ठहराने की कोशिश.
  • बंधक बनाए जाने के बाद भी वह संपर्क बनाए रखना चाहता है.

स्टॉकहोम सिंड्रोम कब-कब होता है

स्टॉकहोम सिंड्रोम सिर्फ अपहरण की स्थिति में नहीं, बल्कि कई रिश्तों और कंडीशंस में देखा गया है. जैसे अब्यूजिव रिलेशनशिप, घरेलू हिंसा, टॉक्सिक मैरिज या रिलेशनशिप, कर्मचारियों और बॉस के बीच कंट्रोल वाली कंडीशन यानी जहां भी कोई व्यक्ति अपने शोषण करने वाले को सहारा मानने लगे, वहां यह सिंड्रोम हो सकता है.

स्टॉकहोम सिंड्रोम का इलाज

एक्सपर्ट्स के अनुसार, स्टॉकहोम सिंड्रोम से बाहर निकलना आसान नहीं होता, लेकिन साइकोलॉजिकल थेरेपी, काउंसलिंग और सपोर्ट सिस्टम से इलाज हो सकता है. साइकोथैरेपी, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT), इमोशनल सपोर्ट ग्रुप्स, परिवार और दोस्तों के भरोसे और सपोर्ट से पीड़ित धीरे-धीरे अपनी सोच और इस समस्या से बाहर निकल सकता है.

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