कैसे कराई जाती है कृत्रिम बारिश, बादलों में कैसे भरा जाता है पानी? जानें कितना आता है खर्च

Cloud Seeding: दिल्ली में कुछ ही दिन बाद आर्टिफिशियल रेन कराई जा सकती है, ऐसे में लोगों को ये जानने में सबसे ज्यादा दिलचस्पी है कि आखिर ये कैसे होता है और बादलों को कैसे बरसाया जाता है.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
कैसे करवाई जाती है क्लाउड सीडिंग

दिवाली पर हुई जमकर आतिशबाजी के बाद भारत के तमाम बड़े शहरों की हवा जहरीली हो गई है. राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां एक्यूआई का लेवल 400 के पार है, जो हर उम्र के लोगों के लिए बेहद खतरनाक है. ऐसे में अब दिल्ली सरकार की तरफ से कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी हो रही है. इसका ट्रायल भी पूरा हो चुका है और बताया जा रहा है कि 29 अक्टूबर को दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के जरिए आर्टिफिशियल रेन कराई जाएगी. ऐसे में सवाल है कि आखिर कैसे ये कृत्रिम बारिश कराई जाती है, क्लाउड सीडिंग क्या होती है और इसमें कुल खर्च कितना आता है? आइए आपको इन तमाम सवालों के जवाब देते हैं. 

कैसे होती है बारिश?

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि बारिश कैसे होती है. समुद्र का पानी या पेड़ पौधों के पत्तों से भाप बनकर बादल बनाता है, इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहा जाता है. बादलों का घनत्व काफी कम होता है, इसीलिए ये तैरते रहते हैं. जब दो बादल आपस में जुड़ते हैं तो बारिश होने लगती है. बादल में मौजूद पानी के कण एक दूसरे से लगातार जुड़ते रहते हैं, ये प्रोसेस तब तक चलता रहता है जब तक वजन बढ़ने के चलते बारिश नहीं हो जाती है. 

  • बादल दो तरह के होते हैं, एक आइस क्रिस्टल वाले बादल होते हैं और दूसरे पानी की सूक्ष्म बूंदों से बने होते हैं.
  • अगर नीचे का तापमान गर्म है तो बारिश होती है, अगर तापमान कम है तो बर्फ गिरने लगती है.  

पहली बार कब कराई गई कृत्रिम बारिश?

डॉक्टर विंसेन शेफर्ड नाम के साइंटिस्ट ने 13 नवंबर 1946 को ये कारनामा कर दिखाया था. उन्होंने प्लेन से बादलों पर ड्राई आइस फेंकनी शुरू कर दी, जिसके बाद भारी बर्फबारी और बारिश होने लगी. यहीं से कृत्रिम बारिश जैसी चीज सामने आई और फिर इसका कई बार इस्तेमाल हुआ. इसके बाद साइंटिस्ट डॉ बेरहार्ड फॉनगुड ने दूसरे तरीके से क्लाउड सीडिंग करवाई, उन्होंने इसके लिए सिल्वर आयोडाइड का इस्तेमाल किया और कृत्रिम बारिश करवाई.  

क्या होता हलाल शब्द का असली मतलब? जानें कौन जारी करता है इसका सर्टिफिकेट

क्या होती है क्लाउड सीडिंग?

जैसा कि हमने आपको बताया कि जब दो कम घनत्व वाले बादल आपस में मिलते हैं तो बारिश होती है. क्लाउड सीडिंग में यही काम किया जाता है. इसके लिए सिल्वर आयोडाइड (AgI) का इस्तेमाल किया जाता है, जो बादलों को मिलाकर जबरदस्ती बारिश करवाता है, इससे कंडेंसेशन (संघनन) का प्रोसेस तेज हो जाता है और बादल पानी की बूंदों में बदलकर बरसने लगते हैं. इसी प्रोसेस को क्लाउड सीडिंग कहा जाता है. इस चीज का सबसे ज्यादा इस्तेमाल दुबई और चीन जैसे देश करते हैं. 

कैसे काम करती है ये टेक्नोलॉजी?

अब अगर आपको ये लग रहा है कि क्लाउड सीडिंग के जरिए कहीं भी बारिश करवाई जा सकती है तो आप गलत हैं, क्योंकि इसके लिए बादलों का होना जरूरी है. अगर हवा में वाटर ड्रॉपलेट्स यानी बादल ही नहीं होंगे तो बारिश नहीं करवाई जा सकती है. ये टेक्नोलॉजी सिर्फ बादलों का कंडेंसेशन (संघनन) बढ़ाकर बारिश करवा सकती है, बादल नहीं बना सकती है. 

भारत में कितनी बार हुआ इसका इस्तेमाल?

भारत में कई बार ऐसे क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट लाए गए. भारत में 1983, 1987 में इसका पहली बार इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा तमिलनाडु सरकार ने 1993-94 में ऐसा किया गया था, इसे सूखे की समस्या को खत्म करने के लिए किया गया. साल 2003 में कर्नाटक सरकार ने भी क्लाउड सीडिंग करवाई थी, साथ ही महाराष्ट्र में भी ऐसा किया जा चुका है.  

Advertisement

कैसे कम होता है पॉल्यूशन?

ये बात साफ है कि बारिश होने पर पॉल्यूशन का लेवल कम हो जाता है. कृत्रिम बारिश से हवा में तैर रहे खतरनाक पॉल्यूशन वाले छोटे कण पानी के साथ नीचे जमीन पर आ जाते हैं और हवा साफ होने लगती है. हालांकि इसका असर करीब 7 से 10 दिन तक ही होता है. इसके बाद फिर से हवा में खतरनाक प्रदूषण वाले कण उड़ने लगते हैं और हवा जहरीली हो जाती है.

कितना आता है खर्च?

एक वर्ग किलोमीटर के इलाके में कृत्रिम बारिश करवाने का खर्च करीब एक लाख रुपये से ज्यादा है. अगर पूरी दिल्ली में बारिश करवाई जाती है तो खर्च 15 करोड़ से ज्यादा आ सकता है. वहीं अगर कुछ इलाकों में कृत्रिम बारिश करवाई गई तो खर्च करीब पांच से सात करोड़ तक आ सकता है. 

Advertisement

बिजनेस भी कर रहे लोग

क्लाउड सीडिंग का बिजनेस भी कुछ देशों में शुरू हो चुका है. द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस में जब भी किसी को डर होता है कि उनकी शादी या फिर किसी बड़े इवेंट में बारिश न हो जाए तो एक खास कंपनी से संपर्क किया जाता है, वो कंपनी एक करोड़ रुपये लेकर क्लाउड सीडिंग करवाती है और ये सुनिश्चित करती है कि उस दिन कोई बारिश न हो. यानी इसका पर्सनल यूज भी शुरू हो चुका है. चीन ने भी बीजिंग ओलंपिक के दौरान क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल बारिश को रोकने के लिए किया था. 

Featured Video Of The Day
Bihar Election: Chhapra में Samrat Choudhary के “नचनिया” बयान पर Khesari Lal ने दिया जवाब