World population day 2022: भारत की लगातार विस्फोटक होती जनसंख्या देश के सामने गंभीर चुनौती बनकर खड़ी है. सीमित संसाधनों (Resources) में निर्भर होती असीमित जनसंख्या देश में खाद्यान संकट (Food crisis), पर्यावरण प्रदूषण, रोजगार संकट (Employment crisis), शिक्षा का अभाव और महंगाई जैसी समस्याएं पैदा कर रही है. यह समस्या भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया झेल रही है. इस समस्या से निपटने और इस पर नियंत्रण पाने के लिए 11 जुलाई 1989 को “विश्व जनसंख्या दिवस” (World population day) के आयोजन की शुरुआत हुई. लेकिन क्या भारत को इससे कोई लाभ मिला या नहीं. आज हम इस आर्टिकल में जनसंख्या से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बाते बताने जा रहे हैं. साथ ही भारत के परिप्रेक्ष्य में विश्व जनसंख्या दिवस पर बात करेंगे.
पहली बार कब मनाया गया विश्व जनसंख्या दिवस
साल 1987 में जब विश्व की कुल जनसंख्या पांच अरब के ग्राफ को भी क्रॉस कर गई थी, तब संयुक्त संघ ने चिंता जताई और तमाम देशों के सुझाव और सहमति के बाद 11 जुलाई, 1989 को पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया. संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस को सफल बनाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम और मिशन शुरू किये गये.
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बढ़ती आबादी को लेकर क्या हैं भारत की चिंताएं
विश्व जनसंख्या दिवस के परिप्रेक्ष्य में भारत की चिंता बेमानी नहीं है, क्योंकि भारत के पास दुनिया का सिर्फ 2.4 प्रतिशत भूभाग है, और दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है. आंकड़ों के अनुसार साल 2001 और 2011 की जनगणना के बीच देश में करीब 18 प्रतिशत आबादी बढ़ी है. संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक अगर भारत की आबादी इसी दर से बढ़ती रही, तो 2027 के आसपास भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो देश में और भी बड़े पैमाने पर खाद्यान संकट, बेरोजगारी संकट, चिकित्सा और स्वास्थ्य संकट, जल सकंट खड़ा हो जाएगा. लोग पलायन, भुखमरी से बेहाल हो जाएगे. प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने से भयानक प्राकृतिक आपदाओं का खतरा पैदा हो जाएगा.
भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून और राजनीति
देश की बढ़ती आबादी को लेकर कई दशक पहले चिंता व्यक्त की जाने लगी थी. सत्ता में बैठे दल और विपक्षी दल दोनों ने जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात कही. लेकिन इंदिरा के जमाने से आज पीएम मोदी की सरकार तक ने देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करने की जहमत नहीं उठाई.
विवादों में क्यों फंस जाता है ये कानून
साल 2019 का जनसंख्या नियंत्रण बिल (Population control Law) कहता है कि प्रत्येक कपल टू चाइल्ड पॉलिसी को अपनाएंगे यानी की दो से अधिक संतान नहीं होगी. लेकिन इसका विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि 1969 के डिक्लेरेशन ऑन सोशल प्रोग्रेस एंड डेवलपमेंट के अनुच्छेद 22 के अनुसार कपल इसके लिए स्वतंत्रता है कि वह कितने बच्चे पैदा करे. इस कानून का विरोध करने वाले कहते हैं कि बच्चों की संख्या को नियंत्रित करना अनुच्छेद 16 यानी पब्लिक रोजगार में भागीदारी और अनुच्छेद 21 यानी जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. टू चाइल्ड पॉलिसी बिल को आजादी के बाद से अब तक 35 बार संसद में पेश किया जा चुका है, लेकिन यह हर बार कानूनी दांव-पेंच में फंस जाता है.
भारत में अलग-अलग मजहबों के लोग रहते हैं और इस कानून के प्रावधान जहां उनकी धार्मिक मान्यताओं के विपरीत लगते हैं, तो वो इसका विरोध करते हैं. इसके बाद राजनीति शुरू हो जाती है. कानून के विरोध में अनेक तर्क गढ़ दिये जाते हैं. इससे बाद यह कानून फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत में जनसंख्या वृद्धि नहीं रुकेगी? क्या यून के दावे के अनुसार 2027 तक भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा.
इसका जवाब शायद हां है...क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता का आधार वोट बैंक है. हर राजनेता को अधिक से अधिक वोट चाहिए. इसीलिए राजनेता जातिगत जनगणना कराने की मांग करते है. मतलब साफ है कि सभी दलों के राजनेता बढ़ती जनसंख्या को अपने बढ़ते जनाधार या वोट के रूप में देखते हैं.
भारत में किस आयु वर्ग की कितनी फीसदी आबादी
यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड ने भारत की आबादी को तीन आयु वर्गों में बांटा है. जो कि 0-14 वर्ष, 15-64 वर्ष और 65+ वर्ष से अधिक है. डेटाबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार -
0-14 वर्ष =25% आबादी है.
15-64 वर्ष =68% आबादी है.
65+ वर्ष से अधिक =7% आबादी है.
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