दुनिया वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए भारत की ओर देख रही: RSS प्रमुख मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि वर्तमान में विश्व को एकात्म मानव दर्शन के इस धर्म को अपनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारतीयों ने विदेश यात्रा के दौरान कभी भी दूसरों का शोषण या नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि जहां भी गए हैं, वहां सकारात्मक योगदान दिया है.

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सनातन दर्शन ही एकात्म मानव दर्शन है: मोहन भागवत
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  • RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत अब विश्व की वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए निर्भर राष्ट्र बन चुका है
  • भागवत ने दीनदयाल स्मृति व्याख्यान में एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता और उसकी वैश्विक महत्ता पर बल दिया
  • RSS प्रमुख ने कहा कि भारत की आर्थिक ताकत इसकी पारिवारिक संरचना में निहित है
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नई दिल्‍ली:

भारत का वैश्विक स्‍तर पर पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. कई विकसित देश भारत के करीब रहना चाहते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने भी इस बात की सराहना की है. मोहन भागवत ने  शनिवार को कहा कि भारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरा है, जिस पर अब दुनिया वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए निर्भर है. जयपुर में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए भागवत ने कहा कि वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए दुनिया भारत की ओर देख रही है.

भारत की विकास की रफ्तार का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा, "इंच-दर-इंच बढ़ने के बजाय, भारत अब मील-दर-मील बढ़ रहा है. भारत की दुनिया भर में प्रतिष्ठा है." उन्होंने आगे कहा कि भारत के पास दुनिया के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान देने की बौद्धिक क्षमता है. उन्होंने कहा, "भारत के पास दुनिया के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान देने के लिए बुद्धि और विचार दोनों हैं."

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश, काल और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुरूप सनातन दर्शन को एकात्म मानव दर्शन के रूप में प्रस्तुत कर आधुनिक विश्व के लिए उसे अभिव्यक्त किया. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि यद्यपि इस दर्शन को औपचारिक रूप से 60 वर्ष पूर्व प्रस्तुत किया गया था, फिर भी इसकी प्रासंगिकता आज भी विश्व भर में है. मोहन भागवत जयपुर में एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान दे रहे थे. उन्होंने बताया कि एकात्म मानव दर्शन का सार एक शब्द और धर्म में समझा जा सकता है. यह स्पष्ट करते हुए कि धर्म का अर्थ संप्रदाय या पंथ नहीं है, उन्होंने कहा कि यह एक लक्ष्य और एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण का प्रतीक है जो सभी को समाहित करता है.

मोहन भागवत ने कहा कि वर्तमान में विश्व को एकात्म मानव दर्शन के इस धर्म को अपनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारतीयों ने विदेश यात्रा के दौरान कभी भी दूसरों का शोषण या नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि जहां भी गए हैं, वहां सकारात्मक योगदान दिया है. उन्होंने कहा कि भारत में जीवनशैली, खान-पान और पहनावे में समय के साथ बदलाव आया है, फिर भी एकात्म मानववाद का शाश्वत दर्शन अक्षुण्ण बना हुआ है. उन्होंने कहा कि इसका आधार यह विश्वास है कि सुख स्वयं के भीतर निहित है. उन्होंने जोर देकर कहा कि इस आंतरिक आनंद को पहचानने से यह समझ विकसित होती है कि पूरा विश्व एक है. एकात्म मानववाद अतिवाद से मुक्त दर्शन है.

भागवत शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक शक्ति के बारे में बोलते हुए ने कहा कि सभी प्रकार की शक्तियों की सीमाएं होती हैं. उन्होंने आगे कहा कि समय की मांग है कि सभी के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए व्यक्तिगत विकास किया जाए. उन्होंने लगातार वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल का हवाला देते हुए कहा कि भारत अपेक्षाकृत कम प्रभावित होता है, क्योंकि इसकी आर्थिक ताकत इसकी पारिवारिक संरचना में निहित है. भागवत ने तेज वैज्ञानिक प्रगति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भौतिक सुख-सुविधाएं तो बढ़ी हैं, लेकिन शांति और संतुष्टि नहीं बढ़ी है. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नई दवाओं के बावजूद स्वास्थ्य में सचमुच सुधार हुआ है, और बताया कि कुछ बीमारियां कुछ खास इलाजों के कारण होती हैं. उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक आबादी का केवल 4 प्रतिशत ही दुनिया के 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करता है, जिससे विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है.

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