न नान है न खटाई फिर क्यों कहते हैं नानखटाई, क्या कारण आप जानते हैं?

क्या आप जानते हैं ‘नानखटाई’ में न नान है न खटाई फिर इसका नाम ऐसा क्यों पड़ा? फारस से सूरत तक फैली इस देसी बिस्किट की कहानी सुनकर आप अगली चाय में इसे एक नए नजरिए से खाएंगे!

विज्ञापन
Read Time: 2 mins
नई दिल्ली:

भारत की इस देसी कुकीज की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है.‘नानखटाई' सिर्फ एक बिस्कुट नहीं, बल्कि सदियों पुरानी रसोई का वो तोहफा है जो हिंदुस्तान और फारस (ईरान) की साझी विरासत को स्वाद के ज़रिए जोड़ता है. ‘नानखटाई' शब्द की जड़ें फारसी भाषा में हैं ‘नान' यानी रोटी और ‘खटाई' यानी बिस्किट. दोनों मिलकर बने ‘रोटी जैसा बिस्किट'!

कैसे पड़ा नानखटाई नाम?

यही है इस नाम की सच्चाई. लेकिन यह नाम पड़ा कैसे? इसका जवाब इतिहास के पन्नों में छिपा है. कहानी शुरू होती है 17वीं सदी के सूरत शहर से. तब यहां डच और पारसी व्यापारियों का जमावड़ा रहता था. डच लोग अपने साथ यूरोपीय ब्रेड और बेकिंग तकनीक लाए थे. लेकिन जब वे भारत छोड़कर गए, तो उनके बेकरी मजदूर बेरोज़गार हो गए. इन मजदूरों ने ब्रेड बनाने की जगह उसमें थोड़ा भारतीय जादू मिलाया घी, मैदा, शक्कर और सूजी. नतीजा ब्रेड की जगह एक मीठा, सुगंधित बिस्किट बना जो जल्द ही लोगों के दिलों में उतर गया यही था “नानखटाई”!

भारत से लेकर ईरान तक फैला है जलवा

धीरे-धीरे यह देसी बेकिंग का सुपरस्टार बन गया. बिना अंडे के बनने वाला, करारा और खुशबूदार. इसे गरीबों की कुकीज भी कहा गया क्योंकि इसे बनाने में महंगे इंग्लिश इंग्रेडिएंट नहीं लगते थे. ईरान और अफगानिस्तान में भी इसे “कुलचा-ए-खटाई” कहा जाता है यानी खटाई बिस्किट. भारत में तो देसी जुबान ने इसे “नानखटाई” कह दिया. यानी नान (रोटी) जैसी दिखने वाली खटाई (बिस्किट).

आज भी हर शहर की बेकरी में इसकी खुशबू वही है बस तंदूर की जगह ओवन आ गया है. पुराने जमाने की देसी बेकरी में जब नानखटाई बनती थी, तो उसकी महक मोहल्ले भर को दीवाना कर देती थी. नानखटाई सिर्फ एक स्नैक नहीं, यह भारत की मिठास और फारसी इतिहास का मीठा संगम है जहां नाम में नान भी है, खटाई भी, और यादें भी.

Featured Video Of The Day
Bihar Elections: Mukesh Sahani DY CM उम्मीदवार तो Tejashwi CM फेस... 6 सवाल शेष | Sawaal India Ka
Topics mentioned in this article