अभियान बसेरा बिहार सरकार की एक ऐसी योजना है, जिसमें सरकार भूमिहीन परिवारों को उनके गांव में घर बनाने के लिए पांच डिसमिल जमीन देती है. इस योजना का पहला चरण 2014 में शुरू हुआ था.पहले चरण में 93 हजार लोगों को पांच-पांच डिसमिल जमीन दी गई थी. चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव से बिहार सरकार को इस योजना की फिर याद आई है. अभियान बसेरा-2 के लिए हुए सर्वेक्षण में एक लाख 30 हजार से अधिक लोगों को फायदा मिलने की उम्मीद है.
क्या कोशिश कर रही है नीतीश कुमार की सरकार
अभियान बसेरा के दूसरे चरण को सरकार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले पूरा कर लेना चाहती है. इसके लाभार्थी आबंटित जमीन पर प्रधानमंत्री आवास योजना या बिहार सरकार की किसी और योजना से घर बनवा सकते हैं. दरअसल बिहार सरकार इस योजना के जरिए अन्य पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग तक पहुंचना चाहती है. यही वर्ग बिहार में सबसे बड़ा वोट बैंक है. नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी इतने बड़े वर्ग को खुश रखने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहती है.
इस योजना के दूसरे चरण में करीब एक लाख 30 हजार परिवारों का सर्वे किया गया है. लेकिन इसमें से 36 हजार 458 परिवारों को इस योजना के लिए फिट नहीं पाया गया है. पिछले दिनों हुई सर्वे की समीक्षा बैठक में मुख्य सचिव ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों के नाम हटाने पर चिंता जताई थी. उनका मानना था कि या तो सर्वे मानक के अनुसार नहीं हुआ है या अनियमित तरीके से नाम हटाए गए हैं. उन्होंने उन लोगों की जांच के आदेश दिए थे, जिनके नाम हटाए गए हैं. इसको लेकर बिहार के सभी 38 जिलों जिलाधिकारियों को आदेश दे दिए गए हैं. सरकार की कोशिश विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने से पहले ही इस योजना को पूरा करने की है.
किस कानून के तहत मिलता है पर्चा
इस अभियान के तहत सरकार पात्र परिवारों को बिहार विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति वासभूमि काश्तकारी अधिनियम, 1947 के तहत पर्चा, गैरमजरूआ खास, आम भूमि और भूदान में मिली जमीनों में से जमीन आवंटित करती है. जमीन का पर्चा मिलने के बाद गरीब परिवारों को आवास योजना का आवंटन आसान हो जाता है. जमीन मिलने के बाद पात्र गरीब परिवार को मकान भी मुहैया कराया जाता है. अगर किसी परिवार का पहले से ही सरकारी जमीन पर घर बना हुआ है,तो उसे उतनी ही जमीन का पर्चा सरकार की तरफ से दे दिया जाता है.
नीतीश कुमार की राजनीति
कहा जा रहा है कि इस योजना का सबसे बड़ा फायदा कमजोर वर्गों को होगा, जिनमें एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी शामिल हैं. अक्तूबर 2023 में आए बिहार जाती सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में ईबीसी की आबादी 36.1 फीसदी तो ओबीसी की आबादी 27.12 फीसदी है. वहीं एससी-एसटी की आबादी करीब 20 फीसदी है.यानी की करीब 85 फीसदी आबादी इस वर्ग में आती है. ऐसे में इतने बड़े वर्ग को नाराज करने का खतरा कौन सा राजनीतिक दल उठा सकता है.नीतीश 2005 से बिहार के सीएम की कुर्सी पर काबिज हैं. वो ओबीसी की कुर्मी जाति से आते हैं. बिहार में कुर्मी की आबादी 2.87 फीसदी है. लेकिन नीतीश कुमार ने कभी कुर्मी वोटों की राजनीति नहीं की. वो शुरू से ही नीतीश ने ओबीसी, ईसीबी और मुसलमानों के सहारे राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने इन जातियों तक अपनी सरकार की योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित की है.वहीं मुसलमानों को अपने साथ बनाए रखने के लिए बिहार को सांप्रदायिकता से मुक्त रखा है.उनकी इस रणनीति का फायदा उन्हें मिलता रहा है. अब अभियान बसेरा योजना से उन्हें कितना फायदा होता है, इसका पता चुनाव परिणाम ही देंगे.