LL.B और HR में MBA, जानिए- कौन हैं पुष्कर सिंह धामी? बनने जा रहे उत्तराखंड के नए CM

धामी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उन्होंने एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की है. 2017 के चुनावी हसफनामे में उन्होंने अपना पेशा वकालत बताया था.

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पुष्कर सिंह धामी का जन्म 16 सितंबर 1975 को पिथौरागढ़ के डीडी हाट तहसील के टुंडी गांव में हुआ था.
नई दिल्ली:

उत्तराखंड (Uttarakhand) बीजेपी विधायक दल ने युवा नेता पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) को अपना नया नेता चुन लिया है. धामी राज्य के नए मुख्यमंत्री होंगे. धामी कुमाऊं क्षेत्र के उधम सिंह नगर जिले की खटीमा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. वो 45 साल के हैं. संघ से बेहद अच्छे रिश्ते रखने वाले पुष्कर सिंह धामी को केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का करीबी माना जाता है.

धामी पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी भी रह चुके हैं. धामी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. धामी का जन्म 16 सितंबर 1975 को पिथौरागढ़ के डीडी हाट तहसील के टुंडी गांव में हुआ था. उनके पिता सेना में थे, इसलिए बचपन से ही अनुशासित रहे हैं. उन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध विषय में मास्टर डिग्री ली है. उन्होंने एलएलबी की शिक्षा भी प्राप्त की है. साल 2017 के चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपना पेशा वकालत बताया था.

पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे, आरएसएस के हैं बेहद करीबी

धामी ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत बीजेपी की छात्र इकाई ABVP से की थी. साल 1990 से 1999 तक जिले से लेकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे. बाद में वह AVBP के प्रदेश मंत्री बनाए गए. 

उत्तराखंड बनने के बाद उन्होंने सीएम कोश्यारी के  एक अनुभवी सलाहकार के रूप में 2002 तक कार्य किया. धामी 2002 से 2008 तक दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. बेरोजगारी और युवाओं के तकनीकी शिक्षा पर विधानसभा में धामी अक्सर सवाल उठाते रहे हैं.

बता दें कि शुक्रवार की शाम सीएम तीरथ सिंह रावत ने नाटकीय घटनाक्रम में अचानक इस्तीफा दे दिया. बीजेपी ने उनके इस्तीफे को संवैधानिक संकट का परिणाम बताया है. पार्टी की तरफ से सफाई दी गई है कि चुनाव आयोग ने कोरोना संकट को देखते हुए राज्य में उप चुनाव नहीं कराने का फैसला किया था. इसलिए संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था. तीरथ सिंह रावत विधान सभा के सदस्य नहीं थे, जबकि सीएम बनने के छह महीने के अंदर उन्हें विधान सभा का सदस्य बनना था. ऐसी स्थिति में उन्हेंने इस्तीफा देना बेहतर समझा.

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