प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) को भारत रत्न (Bharat Ratna Award) से सम्मानित करने का ऐलान किया है. मशहूर कृषि वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले स्वामीनाथन (98) का उम्र संबंधी समस्याओं के चलते 28 सितंबर को निधन हो गया था. आइए जानते हैं कि कौन थे एम एस स्वामीनाथन जिन्हें फादर ऑफ ग्रीन रेवोल्यूशन (Father of Green Revolution) कहा जाता था.
एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु में हुआ था. उनका पूरा नाम मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथन था.1972 और 1979 के बीच, डॉ. स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और भारत सरकार में कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के सचिव के रूप में काम किया.
कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे गए
कृषि जगत में उनके अहम योगदान के चलते उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया है, जिनमें 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1987 में विश्व खाद्य पुरस्कार शामिल हैं. उन्हें 1967 में पद्म श्री, 1972 में पद्म भूषण और 1989 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था. अब उन्हें भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई है.
इस वजह से मिली ‘भारतीय हरित क्रांति के जनक' की उपाधि
कृषि और गेहूं की खेती सहित अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में स्वामीनाथन के काम से गेहूं उत्पादन में बेतहाशा वृद्धि हुई और इसने भारत को भोजन की कमी वाले देश से आत्मनिर्भर राष्ट्र में तब्दील कर दिया, जिसके चलते उन्हें ‘भारतीय हरित क्रांति के जनक' की उपाधि दी गई.
किसानों की परेशानियों को दूर करने स्वामीनाथन रिपोर्ट किए पेश
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में डॉ. स्वामीनाथन ने किसानों की परेशानियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को कम करने के लिए उन्होंने किसानों को फसल की औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करने की सिफारिश की थी. जिसे स्वामीनाथन रिपोर्ट कहा गया.
भारत को अकाल संकट से बचाने में दिया अहम योगदान
डॉ.स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि क्षेत्र में कई बड़ा योगदान दिया, जिससे उन्हें "फादर ऑफ इकोलॉजी" की उपाधि दी गई. हरित क्रांति के ग्लोबल लीडर के रूप में स्वामीनाथन ने 1960 के दशक में भारत को अकाल जैसी स्थितियों से बचाने के लिए गेहूं और चावल की उच्च उपज वाली किस्मों को पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
2007 और 2013 के बीच राज्यसभा सांसद के रूप में नामित
इसके अलावा, डॉ स्वामीनाथन ने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन में इकोटेक्नोलॉजी में यूनेस्को की कुर्सी संभाली, जहां उनका काम सस्टेनेबल एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस को जारी रखना था. उन्हें 2007 और 2013 के बीच सांसद के रूप में राज्यसभा के लिए नामित किया गया था.
टाइम्स मैगजीन ने उन्हें 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में से एक के रूप में मान्यता दी.