हरियाणा के मुख्यमंत्री एक बार फिर से नायब सिंह सैनी (Haryana CM Nayab Saini) बनने जा रहे हैं. चंडीगढ़ में आज उनका शपथ ग्रहण कार्यक्रम है. वह आज राज्य के 20वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. नायब सिंह सैनी हरियाणा में कोई नया नाम नहीं हैं. वह राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री हैं. वह मार्च 2024 से हरियाणा की कमान संभाल रहे हैं. जब बीजेपी-जेजपी का गठबंधन टूटा और मनोहर लाल खट्टर सरकार गिरी उसके बाद बीजेपी ने नायब सिंह सैनी को नए मुख्यमंत्री के तौर पर चुना था. उनके बारे में और भी बहुत कुछ जानिए.
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कहां हुआ नायब सैनी का जन्म?
नायब सिंह सैनी की उम्र 54 साल है. उनका जन्म 25 जनवरी 1970 को अंबाला के पास मिजापुर माजरा के एक गांव में एक माली परिवार में हुआ था.वह मूल रूप से कुरुक्षेत्र के मंगोली जट्टान गांव के रहने वाले हैं. उनका परिवार काफी वक्त पहले अंबाला जिले के मिर्जापुर गांव में आकर बस गया था.
नायब सैनी कितने पढ़े-लिखे हैं?
उन्होंने लॉ में ग्रेजुएशन किया है. मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से उन्होंने एलएलबी की डिग्री हासिल की. इससे पहले उन्होंने बीआर अंबेडकर बी. यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर से बीए किया था.
नायब सैनी का राजनीतिक करियर
- नायब सिंह सैनी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुरुक्षेत्र जिले की लाडवा सीट से जीत हासिल की है. उनके नेतृत्व में बीजेपी लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाने में सफल हो गई.
- साल 2023 में वह हरियाणा बीजेपी के अध्यक्ष थे. वह अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. वह ओबीसी समुदाय के लोकप्रिय बीजेपी नेता हैं.
- नायब सैनी साल 2019 से 2024 तक कुरुक्षेत्र से सांसद रह चुके हैं.2014 से 2019 तक वह अंबाला जिले के नारायणगढ़ से विधायक भी रहे.
- वह साल 2015 से 2019 तक हरियाणा सरकार में राज्य मंत्री के रूप में सेवाएं दे चुके हैं.
कंप्यूटर ऑपरेटर से सीएम तक का सफर
नायब सैनी जब बीजेपी में शामिल हुए थे तो शुरुआत में उन्होंने अंबाला पार्टी कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर के तौर पर काम करना शुरू किया था. बाद में वह हरियाणा बीजेपी किसान मोर्चा के महासचिव बने. फिर वह बीजेपी के अंबाला युवा विंग के एक्टिव मेंबर बन गए. उनको पहचान दिलाने का श्रेय मनोहर लाल खट्टर को जाता है.
गौ रक्षा समर्थक भी रहे नायब सैनी
नायह सैनी हरियाणा में गौ रक्षा समर्थक भी रह चुके हैं. उन्होंने पहली बार साल 2010 में अंबाला जिले के नारायणगढ़ से चुनाव लड़ा, लेकिन रामकिशन गुर्जर से हार गए. लेकिन बीजेपी की अंबाला इकाई में उन्हें ओबीसी चेहरे के रूप में पहचाना जाने लगा.