भारत के ‘मिशन गगनयान' (ISRO Mission Gaganyan) पर तेजी से काम चल रहा है. इसरो का लक्ष्य साल 2025 तक स्पेस में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का है, इसी मिशन का नाम गगनयान है. कौन से चार अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजा जाएगा, इनको पीएम मोदी ने खुद देश के सामने पेश किया. पीएम मोदी ने आज खुद चारों एस्ट्रोनॉट को अपने हाथों से एस्ट्रोनॉट विंग्स पहनाए. इनके नाम प्रशांत नायर, अंगद प्रताप, अजित कृष्णन और शुभांशु शुक्ला हैं.
एस्ट्रोनॉट प्रशांत नायर
प्रशांत नायर का पूरा नाम प्रशांत बालाकृष्णन नायर है, वह केरल के के पलक्कड़ के नेनमारा के रहने वाले हैं. उनको रूस में मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए ट्रेनिंग दी गई है. थी. प्रशांत एयरफोर्स में ग्रुप कैप्टन के रूप में सेवाएं दे रहे हैं.
एस्ट्रोनॉट अजित कृष्णन
एस्ट्रोनॉट अजित कृष्णन वायुसेना के टेस्ट पायलट हैं. वह भी प्रशांत बालाकृष्णन की तरह ही एयरफोर्स में ग्रुप कैप्टन के रूप में कार्यरत हैं.
एस्ट्रोनॉट अंगद प्रताप
मिशन गगनयान के एस्ट्रोनॉट अंगद प्रताप भी वायुसेना में फाइटर और टेस्ट पायलट हैं. वह भी ग्रुप कैप्टन के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं.
एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला वायुसेना में विंग कमांडर के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं. गगनयान मिशन के लिए न जाने कितने पायलटों का टेस्ट हुआ, जिनमें से तीन अन्य के साथ शुभांशु शुक्ला को भी चुना गया.
पीएम मोदी ने क्या कहा?
पीएम मोदी ने कहा कि ये सिर्फ चार नाम और चार इंसान नहीं है, ये 140 करोड़ एस्प्रेशंस को स्पेस में ले जाने वाली चार शक्तियां हैं. उन्होंने कहा कि 40 सालों के बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाने वाला है, लेकिन इस बार टाइम भी हमारा और काउनडाउन भी हमारा होगा औऱ रॉकेट भी हमारा ही है. इसके साथ ही उन्होंने मीडिया से चारों अंतरिक्ष यात्रियों को ज्यादा हाईलाइट न करने की अपील की है.
इसरो का मिशन 'गगनयान'
वायुसेना का फोकस अब स्पेस पर है, उसके मुताबिक अपने तौर तरीके में वह बदलाव कर रही हैं. अगर गगनयान मिशन की बात करें तो इसरों के साथ साथ वायुसेना और नौसेना भी इस मिशन को सफल बनाने में जुट गई है. पहली बार अपनी देश के रॉकेट से कोई आसमान में जाकर रहेगा. बड़ी बात यह भी है कि यह सब इसरो अपने बलबूते करने जा रहा है. कहने भर को इसरो को फ्रांस और रूस से थोड़ी मदद मिली है.
वायुसेना के 100 पायलटों में से मिशन गगनयान के लिए 4 पायलटों को चुना गया है. यह टेस्ट पायलट होने के साथ साथ फाइटर पायलट भी हैं. गगनयान में जाने के लिए वायुसेना के पायलटों को चुनने की वजह यह है कि ये पायलट स्पेस के हालात से वाकिफ होते हैं. उनको उड़ान का खासा अनुभव होता हैं. अंदाजा लगाइए जब आप धरती से आसमान में जाते है तो अचानक आपको चारों तरफ अंधेरा दिखने लगता है.
एस्ट्रोनॉट को दी जा रही कठिन ट्रेनिंग
चुने गए पायलटो की ट्रेनिंग चल रही है, फिजिकल फिटनेस के साथ साथ एस्ट्रोनॉट को कठिन ट्रेनिंग दी जा रही हैं, इसकी वजह मिशन का कठिन होना है. जमीन से 300 से 400 किलोमीटर ऊंचाई पर इनको कैप्सूल में रहना हैं. जब मिशन पूरा हो जाए तो कैसे कैप्सूल को सुरक्षित पानी मे गिराना है इसका भी मेकेनिज्म है. अगर किसी कारणवश इसे समुद्र में सुरक्षित नहीं उतारा जा सके तो उसमें पैराशूट भी लगा होता है, जिससे पायलट सुरक्षित जमीन पर आ सके.
गगनयान मिशन का लक्ष्य 2025 में तीन दिवसीय मिशन के तहत मनुष्यों को 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है. क्रू मॉड्यूल के अंदर ही भारतीय अंतरिक्षयात्री यानी गगननॉट्स बैठकर धरती के चारों तरफ 400 किलोमीटर की ऊंचाई वाली निचली कक्षा में चक्कर लगाएंगे. इसरो अपने परीक्षण यान – प्रदर्शन (टीवी-डी1), एकल चरण तरल प्रणोदन रॉकेट के सफल प्रक्षेपण का प्रयास करेगा. इस क्रू मॉड्यूल के साथ परीक्षण यान मिशन समग्र गगनयान कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.