यूं ही नहीं किसानों के मसीहा कहलाते 'भारत रत्न' चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा और उनका नेता माना जाता था. उन्होंने (Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh) किसानों के हितों को देखते हुए साल 1954 में उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून पारित कराया.उन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों के उत्थान में लगा दिया.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान.(फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, भारत रत्न (Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh) मिलने जा रहा है. केंद्र सरकार ने जब उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की तो उनके चाहने वालों के चेहरे खुशी से खिल उठे. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को काफी समय से भारत रत्न देने की मांग उठ रही थी. आखिरकार, उन्‍हें अब भारत रत्‍न मिलने जा रहा है. चौधरी चरण सिंह को किसानों को मसीहा कहा जाता है. देश के लोग मानते रहे हैं कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं, विचारधारा का नाम है. उनका जन्म 23 नवंबर 1902 में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नूरपुर गांव में एक जाट परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था. उनका विवाह 5 जून 1925 को गायत्री देवी से हुआ था. चौधरी चरण सिंह 29 मई 1987 को दुनिया से रुखसत हो गए. 

चौधरी चरण सिंह की शिक्षा

चौधरी चरण सिंह ने अपनी कक्षा 4 तक की पढ़ाई अपने ताऊं के घर रहकर भूरगढ़ी के जानी गांव से पूरी की. इसके बाद उन्होंने 8वीं से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई मेरठ से की. पढ़ाई के प्रति उनकी ललक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह गांव भूपगढ़ी से रोजाना पैदल मेरठ पढ़ने जाते थे. साल 2025 में उन्होंने एमए और साल 1926 में उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की. साल 1828 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में वकालत शुरू की. 

चौधरी चरण सिंह 'किसानों के मसीहा'

चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा और उनका नेता माना जाता था. उन्होंने किसानों के हितों को देखते हुए साल 1954 में उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून पारित कराया.उन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों के उत्थान में लगा दिया.वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की. सरकारी नौकरियों में किसानों रे बच्चों को आरक्षण देने की मांग पहली बार चौधरी चरण सिंह ने ही उठाई. 

Advertisement

देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीति में एंट्री स्वाधीनता के समय में हुई. वह जेल में भी रहे. बरेली जेल में रहते उन्होंने दो किताबें भी लिखीं. चौधरी चरण सिंह राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे. स्वतंत्रता के दौरान वह लोहिया के ग्रामीण सुधार आंदोलन से जुड़ गए. 

Advertisement

भ्रष्टाचार के खिलाफ बुलंद की आवाज

स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने चौधरी ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की और आह्वान किया कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है. वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी और प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे.

Advertisement

चौधरी चरण सिंह जब हिंडन नदी पर बनाया नमक 

सन् 1930 में महात्मा गांधी के चलाए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने नमक कानून तोड़ने को डांडी मार्च किया. आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया. इस कारण चरण सिंह को 6 माह कैद की सजा हुई. जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया.

Advertisement

राजनीति के लिए छोड़ी वकालत

चौधरी चरण सिंह 1929 में कांग्रेस से जुड़ गए. युवा चरण सिंह ने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया था. राजनीतिक करियर के लिए चौधरी चरण सिंह ने वकालत छोड़ दी थी. उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी की स्थापना की, 1939 तक इसमें वह कई पदों पर रहे. साल 1967 तक वह कांग्रेस में रहे. साल 1937 के फरवरी महीने में 34 साल की उम्र में छपरौली (बागपत) से पहली बार विधायक चुने गए.

1970 में बने देश के पांचवें प्रधानमंत्री

चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1970 को देश के पाचवें प्रधानमंत्री बने, उन्होंने 14 जनवरी 1980 तक इस पद पर रहकर देश की सेवा की. बता दें कि इससे पहले  चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 को वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इस पद से उन्होंने 17 अप्रैल 1968 को इस्तीफा दे दिया. मध्यावधि चुनाव में बढ़िया सफलता हासिल करने के बाद वह दोबारा 17 फरवरी 1970 को राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए. उन्होंने केंद्र सरकार में गृहमंत्री का पद भी संभाला. देश के गृहमंत्री रहते उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि और  ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की. 28 जुलाई 1979, ये तो पल था, जब चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस (यू) के सहयोग से देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने.