खौफ़ का दूसरा नाम था अतीक अहमद, आज सता रहा एनकाउंटर का डर, जानिए- इस बाहुबली की कुंडली

विधायक राजू पाल हत्याकांड के बाद से अतीक अहमद का बुरा वक्त शुरू हो गया था. साल 2007 में यूपी की सत्ता बदली और मायावती मुख्‍यमंत्री बनीं. मायावती ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया और 20 हजार का इनाम रख कर अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया.

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अतीक अहमद के पिता फिरोज अहमद तांगा चलाते थे
नई दिल्‍ली:

बाहुबली अतीक अहमद एक समय पूर्वांचल में खौफ़ का दूसरा नाम हुआ करता था. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की लोकसभा सीट फूलपुर से सांसद रह चुका अतीक पर हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, हत्या के 44 केस दर्ज हैं, जो मामले दर्ज नहीं हो पाए उनकी फेहरिस्‍त और भी लंबी है. अतीक अहमद के खिलाफ यूपी के लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, प्रयागराज के अलावा बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं. आज उसी बाहुबली को अपनी मौत का डर सता रहा है. अतीक अहमद को डर है कि उसका एनकाउंटर हो सकता है. प्रयागराज में हुए उमेश पाल हत्‍याकांड में अतीक अहमद के खिलाफ शिकंजा कस रहा है. उमेश पाल की पत्‍नी जया पाल ने अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ और दो बेटों के खिलाफ केस दर्ज करवाया है.  

अतीक अहमद के पिता चलाते थे तांगा 
अतीक अहमद के पिता फिरोज अहमद तांगा चलाते थे. इसी से वह पूरे परिवार को पालन पोषण करते थे. घर के हालात बेहद ठीक नहीं थे. इस बीच 1979 में अतीक दसवीं कक्षा में फेल हो गया और उसका पढ़ाई से नाता टूट गया. इसके बाद अतीक जुर्म के ऐसे रास्‍ते पर निकल गए, जिसमें वापसी की गुंजाइश नहीं थी. अतीक पर जल्‍द से जल्‍द अमीर बनने का जुनून सवार था. ऐसे में वह लूट, अपहरण और रंगदारी जैसी वारदातों को खुलेआम अंजाम देने लगा. इस दौरान ही अतीक अहमद पर हत्‍या का मामला भी दर्ज हो गया और वह यूपी में जुर्म की दुनिया के बड़े नामों में शुमार हो गया. 

खौफ़ इतना की अतीक के खिलाफ चुनाव लड़ने खड़ा नहीं होता था कोई नेता 
अतीक अहमद साल 1989 में राजनीति में उतर गए. अतीन ने शहर की पश्चिमी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया. इस सीट पर उनका मुकाबला चिर-प्रतिद्वंद्वी चांद बाबा से हुआ। इस चुनाव के दौरान गैंगवार भी हुआ और अंत में बाजी अतीक अहम जीत गए. चुनाव जीतने के कुछ महीनों बाद दिनदहाड़े चांद बाबा की हत्या हो गई. इसका अरोप भी अतीक अहमद पर लगा. ऐसे में अब पूरे पूर्वांचल में अपराधी अतीक खौफ़ बढ़ गया. कोई नेता उनके सामने खड़े होने की हिम्‍मत भी नहीं कर सकता था. कई खौफनाक वारदातों के बाद अतीक का खौफ इतना ज्यादा बढ़ गया कि इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट से कोई नेता चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था. कहते हैं कि पार्टियां जिन नेताओं को अतीक के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए उतारती थी, वे अपना टिकट वापस लौटा देते थे. 

अतीक का दायां हाथ था राजू पाल, 2005 में कर दी गई हत्‍या
अतीक अहम का पूर्वांचल में खौफ़ डंका बज रहा था. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्‍तर प्रदेश की फूलपुर सीट से चुनाव जीता. इसी बीच अतीक का दायां हाथ माने जाने वाले राजू पाल ने अतीक का साथ छोड़ बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया. अक्टूबर 2004 में राजू पाल चुनाव जीत गया और पहली बार अतीक को अपने ही इलाके में टक्कर मिली. विधायक बनने के लगभग 3 महीने बाद राजू पाल की हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड में अतीक अहमद और अशरफ का नाम सामने आया था. राजू पाल की हत्या का उमेश मुख्य गवाह था, जिसकी पिछले दिनों हत्‍या कर दी गई.      

जब 10 जजों ने अतीक अहमद के केस से खुद को अलग कर लिया
विधायक राजू पाल हत्याकांड के बाद से अतीक अहमद का बुरा वक्त शुरू हो गया था. साल 2007 में यूपी की सत्ता बदली और मायावती मुख्‍यमंत्री बनीं. मायावती ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया और 20 हजार का इनाम रख कर अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त अतीक अहमद जेल में ही था. अतीक ने चुनाव लड़ने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दर्ज की. अतीक अहमद का खौफ़ इतना था कि हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. 11वें जज ने सुनवाई की और जमानत मिल गई. हालांकि, इस चुनाव में अतीक अहमद की हार हुई. अतीक अहमद ने इसके बाद 2019 के आम चुनाव में जेल से ही वाराणसी सीट पर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा, इस बार भी उन्‍हें हार का मुंह देखना पड़ा. 

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