पंजाब में इस समय ऑपरेशन अमृतपाल सिंह चल रहा है. अमृतपाल सिंह के संगठन का नाम 'वारिस पंजाब दे' है. इस ग्रुप के मुखिया अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी अभी तक भले ही न हुई हो, लेकिन इस संगठन के 100 से ज्यादा सदस्यों की गिरफ्तारी हो चुकी है. ये पंजाब पुलिस की बड़ी सफलता है. इससे अमृतपाल सिंह के संगठन की कमर तो टूटी ही है. साथ ही सिखों के लिए अलग देश की मांग करने वाले अमृतपाल सिंह की असली छवि भी सामने आई है. बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर अचानक अमृतपाल सिंह कहां से आ गया?
अमृतपाल सिंह और उसके सदस्यों को पुलिस तलाश रही है. हालांकि, उनके खिलाफ ये पुलिस कार्रवाई अचानक नहीं हुई है. ऑपरेशन अमृतपाल सिंह शनिवार को शुरू हुई, लेकिन इसकी तैयारियां 15 दिन पहले से हो रही थीं. दरअसल, 23 फरवरी को पंजाब के अजनाला पुलिस थाना क्षेत्र में जो हंगामा हुआ था, इसके बाद से ही पंजाब पुलिस ने रणनीति बनानी शुरू कर दी थी. अमृतसर में 15 से 17 मार्च तक जी20 की चल रही बैठकों को देखते हुए सरकार रुकी हुई थी. आइए खोलते हुए अमृतपाल सिंह की कुंडली...
कौन है अमृतपाल सिंह
- 29 साल का अमृतपाल सिंह पंजाब की राजनीति में पिछले कुछ समय से चर्चा में है. अमृतपाल सिंह अमृतसर के जल्लूपुरा खेड़ा गांव का रहने वाला है.
- अमृतपाल सिंह का जन्म 1993 में हुआ था. वह तरसेम सिंह का बेटा है. अमृतपाल सिंह के चाचा का दुबई में ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय था.
- अमृतपाल सिंह खालिस्तान समर्थक है और वह एक्टर-एक्टिविस्ट दीप सिंह सिद्धू की मौत के बाद 'वारिस पंजाब दे' की कमान संभालने के बाद दुबई से लौटा.
- अमृतपाल सिंह 2012 में दुबई काम के लिए गया था. 2022 में वह भारत लौटा, जब दीप सिद्धू की मौत हुई. इसके बाद अमृतपाल सिंह 'वारिस पंजाब दे' का प्रमुख बना और खालिस्तान की मांग को हवा देना शुरू किया.
- इस साल फरवरी में पंजाब के अजनाला थाने पर अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने हमला किया था. इस हमले का मकसद अपने साथी लवप्रीत उर्फ तूफान को रिहा कराना था.
- खालिस्तान की मांग करते हुए अमृतपाल सिंह अपने कट्टरपंथी भाषणों के लिए खबरों में रहता है.
- अमृतपाल सिंह के दबदबे का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पंजाब पुलिस ने अजनाला हिंसा के बाद अमृतपाल के खिलाफ दर्ज इन मामलों को आज तक सार्वजनिक नहीं होने दिया.
खालिस्तान आंदोलन का काला दौर...
क्या अमृतपाल सिंह के उदय से पंजाब में फिर से आतंकवाद और अलगावाद का खतरा है? सन् 1980 के दशक में पंजाब पहले ही खालिस्तान आंदोलन देख चुका है. खालिस्तान आंदोलन का काला दौर 1980 से 1995 यानि डेढ़ दशक तक चली थी. इस 15 साल की हिंसा में पंजाब में 21 हजार 532 लोग मारे गए थे. पुलिस कार्रवाई 8,090 अलगावदी ढेर हुए थे. इस हिंसा में 11,796 आम लोग मारे गए थे. इस दौरान 1,746 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. अमृतपाल सिंह ने अब अपने आप को एक कट्टर सिख नेता साबित करने की कोशिश की है. इसके समर्थकों ने नंगी तलवारें और हथियार लेकर एक थाने पर हमला किया. अब अमृतपाल सिंह फरार चल रहा है और सुरक्षा एजेंसियां उसके पीछे हैं.