भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) का आज 94वां जन्मदिन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा उनके घर पहुंचकर बधाई दी है. कभी राजनीति में एक अटल-आडवाणी की जोड़ी की तूती बोल रही थी और कांग्रेस के खिलाफ राजनीति के सबसे बड़े केंद्र बन चुकी इस जोड़ी ने देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई थी और जिसने पूरे पांच साल शासन किया था. लेकिन भारतीय राजनीति में आडवाणी की भूमिका हमेशा मंदिर आंदोलन के लिए याद रखी जाएगी. आडवाणी ऐसे नेता हैं जो राजनीति में 'यात्राओं' का कल्चर लेकर आए थे. अयोध्या में राम मंदिर की मांग को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू की थी जिसकी वजह से देश की राजनीति में हिंदुत्व की राजनीति का उभार हुआ था. हालांकि बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उनको समस्तीपुर में गिरफ्तार करा लिया था. इस कदम ने लालकृष्ण आडवाणी और लालू प्रसाद यादव दोनों को ही राजनीति का हीरो बना दिया था.
शुद्ध और संस्कृतनिष्ठ हिंदी बोलने में माहिर लालकृष्ण आडवाणी कहते हैं कि उनको 20 साल तक हिंदी बोलना नहीं आती थी. वह अक्सर यह भी कहते हैं कि जब वह अटल जी का भाषण सुनते थे तो हमेशा खुद को लेकर कुंठा हो जाती थी. बीजेपी में एक समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से पहले लालकृष्ण आडवाणी को ही चेहरा माना जाता था और वो ही पीएम पद के दावेदार थे. बीजेपी को संगठित करने में भी आडवाणी की अहम भूमिका है. लेकिन बीजेपी अध्यक्ष रहने के दौरान मुंबई के अधिवेशन में लालकृष्ण आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर सबको चौंका दिया था. कहा जाता है कि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी नाराज होकर आडवाणी से यह भी कहा था कि एक बार मुझसे पूछ तो लेते. इस पर आडवाणी ने उनको जवाब दिया था कि पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते यह उनको अधिकार है.
बीजेपी की स्थापना के काफी पहले दोनों नेता राजनीति में आ चुके थे. दोनों ही आरएसएस के प्रचारक के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. अटल जी भी पत्रकारिता से जुड़े थे और लालकृष्ण आडवाणी भी. अटल जी अपने भाषण के दम पर राजनीति में बहुत ही तेजी से जगह बना रहे थे तो आडवाणी राजस्थान के कोटा में संघ के प्रचारक के तौर पर काम रहे थे. जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणशैली से काफी प्रभावित थे. यह दोनों चाहते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी किसी तरह संसद पहुंच जाएं ताकि उनके भाषणों को पूरे देश की जनता सुन पाये. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात लालकृष्ण आडवाणी से कैसे हुई यह कहानी भी बहुत रोचक है. अटल जी एक बार सहयोगी के तौर पर पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ ट्रेन से मुंबई जा रहे थे. मुखर्जी कश्मीर के मुद्दे पर पूरे देश का दौरा कर रहे थे. लालकृष्ण आडवाणी कोटा में प्रचारक थे. उनको पता लगा कि उपाध्याय जी इस स्टेशन से गुजरने वाले हैं तो वह मिलने आ गये. वहीं पर मुखर्जी ने दोनों की मुलाकात करवाई थी.